क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है?

नेपाल के लोग क्यों शॉपिंग करने पहुंच रहे बिहार, भीड़ देख दंग रह जाएंगे आप
नेपाल से लोग रोजमर्रा के सामान खरीदने के लिए बिहार का रुख कर रहे हैं. बोरे में भर भरकर सामान नेपाल (Nepal Economic Crisis) ले जाया जा रहा है. वो भी तब जब नेपाल सरकार की ओर से भारत से जाने वाले खाद्य सामग्री और कॉस्मेटिक सामानों पर प्रतिबंध लगा है. फिलहाल बिहार के कई जिलों में नेपाल के नागरिकों की खचाखच भीड़ देखने को मिल रही है. पढ़ें पूरी खबर..
सीतामढ़ी: बिहार के साथ बेटी-रोटी का रिश्ता रखने वाला पड़ोसी देश नेपाल आर्थिक संकट (Economic Emergency In Nepal) से जूझ रहा है. आर्थिक संकट का हवाला देते हुए नेपाल सरकार ने भारत से जाने वाले खाद्य सामग्री और कॉस्मेटिक सामानों पर प्रतिबंध लगा दिया है. साथ ही तत्काल उन्हें नेपाल ले जाने से रोक दिया गया है. लेकिन इस रोक के बावजूद नेपाल के लोग भारत से जमकर खरीदारी कर रहे हैं. इंडो नेपाल बॉर्डर (indo nepal border)पर लोगों की भीड़ सिर्फ शॉपिंग (Bihar Became Shopping Destination For Nepal) करने के लिए पहुंच रही है. इसके साथ ही एक बार फिर से तस्कर चांदी काट रहे हैं. इस तरह के हालात का कारण क्या है विस्तार से पढ़ें..
नेपाल में चरम पर महंगाई: नेपाल में पिछले 20 दिनों से दवा सहित रोजमर्रा के सामान के दाम बढ़ रहे हैं. पेट्रोल 41 रुपए और डीजल 20 रुपए महंगा हो चुका है. यही नहीं सरसों तेल (15 लीटर टीन) के दाम में 350 रुपए तक की बढ़ाेतरी हुई है. पड़ोसी देश में उपजे इस हालात के कारण बिहार पर भी नया संकट आ गया है. क्योंकि, नेपाल से सटे बिहार के जिलों में वहां के नागरिकों की खरीदारी के लिए भीड़ बढ़ने लगी है. ऐसे ग्राहकों की संख्या में तीन गुना तक की बढ़ोतरी हुई है. इस बीच, नेपाल सरकार ने बुधवार को कुरकुरे, लेज और सभी प्रकार के पैक्ड रेडीमेड फूड आइटम, खिलौने सहित 10 प्रकार सामान के आयात पर अगले दाे महीनाें तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. नेपाल कैबिनेट ने विदेशी मुद्रा की भारी कमी काे देखते हुए यह फैसला लिया है.
बिहार से सस्ते में खरीदारी: नेपाल सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से लोगों की परेशानी बढ़ गयी है. खासकर नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाले लोग जो सीमावर्ती भारत के बाजारों पर अपनी दैनिक उपयोग के सामानों की खरीदारी पर निर्भर रहते हैं, उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. एक तरफ नेपाल में महंगाई और दूसरी तरफ भारत में वही सामान सस्ते में मिलने से लोग रिस्क लेकर भी खरीदारी करने से बाज नहीं आ रहे हैं. इन सबके बीच छोटे तस्कर प्रतिबंधित सामानों को नेपाल पहुंचा रहे हैं. भारत से तस्कर सामान लेकर जाते हैं और ज्यादा कीमत पर उसे बेचते हैं. फिर भी नेपाल के लोगों के लिए वह सस्ता ही होता है. क्योंकि नेपाल में हर वस्तु की कीमत आसमान छू रही है. इन परिस्थितियों में छोटे तस्करों की चांद कट रही है.
प्रतिबंध का बिहार पर असर: नेपाल सरकार के आयात पर रोक के फैसले से सीतामढ़ी सहित उत्तर बिहार में संचालित स्नैक्स फैक्ट्रियाें के कराेड़ाें का टर्न ओवर प्रभावित हाेगा. सिर्फ मुजफ्फरपुर के बियाडा क्षेत्र में स्नैक्स की 25 फैक्ट्रियां हैं. यहां के काराेबारी की मानें ताे स्नैक्स झारखंड, बंगाल के साथ-साथ नेपाल भी भेजा जाता है. इधर, नेपाल ने हालात से निपटने के लिए कई और कदम उठाए हैं. पहला, केंद्रीय बैंक ने नागरिकों को लोन देना बंद कर दिया. दूसरा, पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर नियंत्रण किया जा रहा है. तीसरा, अवकाश के दिन सरकारी वाहनों के परिचालन पर रोक लगाया गया है.
भारत सरकार को करोड़ों के राजस्व का चूना: भारत से नेपाल सामानों की तस्करी करने से भारत सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का चूना लग रहा है. तस्करों के खौफ के कारण स्थानीय पत्रकारों के द्वारा इन खबरों को नहीं दिखाया जा रहा है. ऐसी खबरें दिखाने वाले कई पत्रकारों के साथ बदसलूकी भी हो चुकी है. एक तरफ नेपाल सरकार खाद्य सामग्री और कॉस्मेटिक सामान पर रोक लगा रही है तो दूसरी तरफ तस्कर राजस्व का चूना लगाकर उन सामानों को भारत से नेपाल ले जा रहे हैं.
छोटे तस्करों की बल्ले बल्ले: खाद्य सामग्री और कॉस्मेटिक सामानों पर नेपाल सरकार के रुख के बाद छोटे तस्करों की मौज हो गई है. तस्कर खाद्य सामग्री और कॉस्मेटिक सामानों को एक बोरी में रखकर उसे अपने सर पर रखकर बॉर्डर पार करते हैं. इस दौरान एसएसबी के जवान और नेपाल बॉर्डर पर तैनात नेपाल पहरी उन्हें रोक पाने में असफल साबित हो रहे हैं. ईटीवी भारत के पास एक वीडियो है जिसमें आप देख सकते हैं कि किस तरह से लोग सामानों को लेकर बड़े आराम से बॉर्डर पार कर रहे हैं और इन्हें रोकने में बॉर्डर पर तैनात सुरक्षाकर्मी नाकाम साबित हो रहे हैं.
नेपाल से इन जिलों में खरीदारी करने आ रहे लोग: आपको बता दें कि नेपाल के दैनिक उपयोग के 99% सामानों की आपूर्ति भारत से होती है. ऐसे में अगर भारत से सामान जाना बंद हो जाए तो नेपाल भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगा. वैसे तो एक कहावत है नेपाल और भारत में बेटी और रोटी का संबंध है. हालांकि इस संबंध को लेकर बैरगनिया बॉर्डर पर तैनात कस्टम सुपरिटेंडेंट से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनके द्वारा फोन नहीं उठाया गया. आपको बता दें कि बीते दिनों आलू के ट्रक को नेपाल कस्टम ने पकड़ा था. आरोप लगाया गया था कि तस्करों के द्वारा मिलीभगत कर एक रुपए किलो के रेट से आलू नेपाल भेजा जा रहा है. जबकि भारत में एक रुपए किलो आलू मिलता ही नहीं है. वर्तमान कस्टम सुपरिटेंडेंट के द्वारा भी इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई. सीतामढ़ी के अलावा पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मोतिहारी, मधुबनी, किशनगंज और सुपौल ऐसे जिले हैं जिनकी सीमा नेपाल से लगती है. हालांकि नेपाल के लोग मुख्य रूप से मधुबनी, जयनगर, सीतामढ़ी, रक्सौल इलाके में शॉपिंग के लिए आते हैं.
नेपाल में आर्थिक संकट का कारण: रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है. भारत के साथ नेपाल भी इससे अछूता नहीं है. भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी है इसलिए यहां की सरकार उसे झेल पा रही है. जबकि नेपाल छोटा देश है इसलिए वहां इसका प्रतिकूल असर दिख रहा है. युद्ध के चलते पेट्रोलियम उत्पाद का आयात शुल्क बढ़ने के चलते दवाइयों से लेकर खाने-पीने के सामान महंगे हो गए हैं. महंगे दर पर विदेशों से सामान आयात करने के चलते नेपाल की विदेशी मुद्रा भंडार में 17 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इसके अलावा कोविड की वजह से पर्यटन कारोबार को भी गहरा धक्का लगा है, जिसके चलते नेपाल में आर्थिक संकट के हालात बने हैं.
नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी: नेपाल में मार्च 2022 के मध्य में देश का विदेशी मुद्रा भंडार महजज 975 करोड़ डॉलर रह गया. जुलाई 2021 में ये 1175 करोड़ डॉलर था. करीब सात महीनों में नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 200 करोड़ डॉलर यानी 24 हजार करोड़ नेपाली रुपये कम हो गए हैं. किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा योगदान होता क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है? है. देश का केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा और अन्य परिसंपत्तियों को अपने पास रखता है. विदेशी मुद्रा को ज्यादातर डॉलर में रखा जाता है. जरूरत पड़ने पर इससे देनदारियों का भुगतान भी किया जाता है. जब कोई देश निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा करता है तो विदेशी मुद्रा भंडार नीचे गिरने लगता है.पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम 7 महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए. नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार की क्षमता इस वक्त 6.7 महीने की है जो चिंता का विषय है. कम होते विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर कुछ लोग नेपाल की तुलना श्रीलंका से भी करने लगे हैं.
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OctaFX ट्रेडिंग के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, ईडी ने फ्रीज किया 21.14 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस
नई दिल्ली (उत्तम हिन्दू न्यूज): प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार को कहा कि, उसने फेमा के तहत ऑक्टाएफएक्स ट्रेडिंग ऐप और वेबसाइट ऑक्टाएफएक्स.कॉम के माध्यम से अवैध ऑनलाइन विदेशी मुद्रा व्यापार के मामले में ऑक्टाएफएक्स और संबंधित संस्थाओं के 21.14 करोड़ रुपये के बैंक बैलेंस को फ्रीज कर दिया है। इससे पहले, ईडी ने ऑक्टाएफएक्स ट्रेडिंग ऐप और वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.ऑक्टाएफएक्स.कॉम के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय दलालों के जरिए अवैध ऑनलाइन विदेशी मुद्रा व्यापार के मामले में फेमा के प्रावधानों के तहत ऑक्टाएफएक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के अलग-अलग परिसरों में तलाशी ली थी। फेमा की जांच से पता चला कि ऑनलाइन ट्रेडिंग ऐप और वेबसाइट भारत स्थित इकाई ऑक्टाएफएक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से भारत में काम कर रही हैं।
अधिकारी ने कहा कि इस विदेशी मुद्रा व्यापार मंच को सोशल नेटवकिर्ंग साइटों पर व्यापक रूप से प्रचारित किया जाता है और उपयोगकर्ताओं को अपने प्लेटफॉर्म पर आकर्षित करने के लिए रेफरल-आधारित प्रोत्साहन मॉडल का इस्तेमाल किया जाता था। ईडी ने दावा किया, यह देखा गया है कि मुख्य रूप से यूपीआई, स्थानीय बैंक ट्रांसफर के माध्यम से उपयोगकर्ताओं से धन एकत्र किया जाता है और डमी संस्थाओं के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। इन निधियों को विभिन्न डमी संस्थाओं के बैंक खातों में जमा किया जाता है और लेयरिंग के उद्देश्य से घरेलू स्तर पर अन्य बैंकों में स्थानांतरित किया जाता है और बाद में सीमा पार लेनदेन किया गया है।
ईडी ने कहा कि उसे क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है? अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन विदेशी मुद्रा व्यापार दलालों और उनके भारतीय भागीदारों/एजेंटों के बीच सांठगांठ के बारे में पता चला है। ऐप (ऑक्टाएफएक्स) और इसकी वेबसाइट को आरबीआई द्वारा फॉरेक्स ट्रेडिंग में डील करने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। विदेशी मुद्रा व्यापार का संचालन (मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर नहीं किया जा रहा है) अवैध है, और फेमा नियमों का भी उल्लंघन करता है।
जांच के दौरान यह सामने आया है कि विभिन्न भारतीय बैंकों के कई खातों को निवेशकों, उपयोगकर्ताओं को ऑक्टाएफएक्स ट्रेडिंग ऐप/डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.ऑक्टाएफएक्स.कॉम पर विदेशी मुद्रा व्यापार की सुविधा की आड़ में धन एकत्र करने के लिए दिखाया जा रहा था। निवेशकों को धोखा देने के बाद इन्हें एक साथ कई ई-वॉलेट खातों जैसे कि नेटेलर, स्क्रिल या डमी संस्थाओं के बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिया गया।
अधिकारी ने कहा, हमें पता चला है कि इस ट्रेडिंग ऐप पर धोखाधड़ी की गई राशि का एक बड़ा हिस्सा जानमाई लैब्स प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से क्रिप्टो मुद्राओं को खरीदने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
यहां एक डॉलर=75 रुपये
Lucknow: यह है प्रदेश का इंटरनेशनल एयरपोर्ट. सौदेबाजों ने यहां अपने ही देश की करेंसी की औकात और गिरा दी है. बुधवार को नेशनल लेवल पर एक डॉलर का रेट 59.47 पैसे था, वहीं लखनऊ के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक डॉलर की वैल्यू 75 रुपये थी.
एयरपोर्ट पर हो रही मनमानी
लखनऊ एयरपोर्ट से ट्रैवल करने वालों की मजबूरी का फायदा करेंसी एक्सचेंज काउंटर पर बैठे लोग दोनों हाथों से उठा रहे क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है? हैं । ना सिर्फ डॉलर बल्कि दिरहम के रेट पर भी जमकर कमाई होती है । लखनऊ से डेली चार से पांच फ्लाइट गल्फ से आती और जाती हैं । हजारों डॉलर , रियाल और दिरहम एयरपोर्ट पर ही कन्वर्ट कराये जाते हैं । ऐसे में डेली हजारों रुपये का सीधा मुनाफा यहां के लोगों को होता है ।
खरीदने और बेचने में बीस रुपये का फर्क
डॉलर अगर खरीद रहे हैं तो इसके लिए आपको 72 रुपये से 75 रुपये वसूले जा रहे हैं , जबकि अगर आपके पास डॉलर है और उसे रुपये में कन्वर्ट कराना है तो इसके लिए 48 रुपये से 52 रुपये का रेट लगाया जाता है ।
मोटे मुनाफे के कई हिस्सेदार
एयरपोर्ट पर करेंसी एक्सचेंज में हो रहे हेरफेर के कई हिस्सेदार हैं । सोर्सेज की मानें तो इसके लिए इमीग्रेशन और कस्टम ड्यूटी पर लगे अधिकारियों की मदद से ही यह धंधा एयरपोर्ट कैंपस में फल फूल रहा है ।
रियाल और दिरहम के रेट में भी फर्क
ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ डॉलर के रेट को ही बढ़ा कर बेचा जा रहा है या कम रेट में खरीदा जा रहा है बल्कि यूएई की करेंसी दिरहम और सऊदी रियाल की कीमत पर भी एक्स्ट्रा चार्ज लिया जा रहा है । बुधवार को दिरहम की वैल्यू 16.18 रुपये थी जबकि रियाल की वैल्यू 15.85 थी जबकि अमौसी एयरपोर्ट पर इसकी कीमत 20 रुपये से 22 रुपये तक वसूले जा रहे हैं ।
अवैध रकम होती है एक्सचेंज
इस बारे में बात करने पर एयरपोर्ट अथॉरिटी के अधिकारियों का कहना है कि एयरपोर्ट पर जो भी करेंसी एक्सचेंज की जाती है उसकी रसीद दी जाती है । वहीं नाम ना छापे जाने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि अक्सर ऐसी करेंसी इललीगल होती है जिसे एक्सचेंज कराने के लिए रसीद नहीं लेते ।
जरूर लें रसीद
अगर एयरपोर्ट पर किसी को करेंसी एक्सचेंज में करेंट रेट से ज्यादा पैसे लिये जाते हैं तो इसकी शिकायत एयरपोर्ट डायरेक्टर से की जा सकती है । लेकिन ऐसे केसेस में फारेन करेंसी एक्सचेंज कराते समय ली गयी रसीद दिखाना जरूरी है .
यह है रेट़स
नीचे दिया गया रेट बुधवार का है । इसमें मामूली फेरबदल हो सकता है ।
यूएस डॉलर
सेल - 59.47 रुपये
यूई दिरहम
सेल - 16.18 रुपये
सऊदी रियाल
सेल - 15.85 रुपये
क्या कहते हैं अधिकारी
यूएस डॉलर , यूएई दिरहम या सऊदी रियाल पर अगर मौजूदा रेट से ज्यादा चार्ज किया जा रहा है तो यह गलत है । इसकी जांच करायी जाएगी और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी । किसी भी पैसेंजर से फॉरेन करेंसी एक्सचेंज के समय अगर कोई एक्स्ट्रा चार्ज लिया गया है और उसके पास रसीद है तो इसकी शिकायत उनके आफिस में की जा सकती है .
- सुरेश चंद्र होता
डायरेक्टर , सीसीएसआई एयरपोर्ट , लखनऊ
बैंक का काम जिस रेट में डॉलर उसे मिला उसी रेट में बेचने का होता है । अगर इसमें कोई घपला करता है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई इंफोर्समेंट डिपार्टमेंट करता है । एयरपोर्ट पर जो रेट लिया जा रहा है उसकी जांच इंफोर्समेंट डिपार्टमेंट को करनी चाहिए .
डीके वाजपेयी
स्पोक पर्सन , इलाहाबाद बैंक .
हैदराबाद: विदेश में आपकी नौकरी का ऑफर हो सकता है घोटाला
धोखाधड़ी करने वाली कंपनियां अक्सर अपनी विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए काफी हद तक जाती हैं। हैदराबाद पुलिस के मुताबिक, ऐसी कई कंपनियों के मेडिकल टेस्ट और इंटरव्यू लेने के मामले सामने आए हैं। कुछ ने तो ऑफर लेटर भी भेजे।
आमतौर पर धोखेबाज व्यक्ति से मोटी रकम की मांग करके आगे बढ़ते हैं। सभी वीजा प्रसंस्करण और अन्य संबंधित औपचारिकताओं को पूरा करने के नाम पर।
हैदराबाद में एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, साइबर अपराधी, विशेष रूप से भारत के उत्तर में, नौकरी चाहने वालों द्वारा विभिन्न प्रसिद्ध नौकरी पोर्टलों पर पोस्ट किए गए रिज्यूमे को देखते हैं। जॉब पोर्टल्स से रिज्यूमे खरीदने के बाद, ऐसे धोखेबाज नौकरी चाहने वालों से सीधे संपर्क करते हैं, उन्हें विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उच्च-भुगतान वाली नौकरियों का आश्वासन देते हैं।
देखने के लिए आम लाल झंडे
यदि आप भारत में रहते हुए विदेशों में काम करने के विकल्प तलाश रहे हैं, तो कुछ लाल झंडे हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए कि क्या कोई आपको विदेश में नौकरी की पेशकश करता है। हमेशा ध्यान रखें कि -
- कोई भी वास्तविक नियोक्ता आपको कभी भी साक्षात्कार के लिए पैसे देने के लिए नहीं कहेगा।
- उन लोगों से मिलें जो आपको विदेश में नौकरी की पेशकश कर रहे हैं, उनके कार्यालय में।
- किसी भी बैक-डोर जॉब ऑफर को कभी भी स्वीकार न करें।
- व्यक्तिगत रूप से साक्षात्कार में भाग लें।
- कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट से क्रॉस-चेक करें कि क्या वास्तव में कोई रिक्ति है जो आपको दी जा रही है।
- कोई भी राशि ट्रांसफर करने से पहले अपने परिवार और दोस्तों से चर्चा करें।
सब कुछ कहा और किया, ऐसी स्थितियों में पालन करने का नियम है: अत्यधिक सावधानी के साथ आगे बढ़ें जब भी आपको किसी भी अच्छे-से-सच्चे सौदे की पेशकश की जा रही हो।
जब आप भारत से विदेश में नौकरी की तलाश कर रहे हैं, तो संदेह से परे स्थापित होने वाली पहली चीज कंपनी की वास्तविकता या प्रामाणिकता है। अब, आप एक विदेशी नियोक्ता की प्रामाणिकता के बारे में कैसे सुनिश्चित हो सकते हैं? किसी भी विदेशी नियोक्ता से केवल विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से संपर्क करके।
आधिकारिक स्रोतों के माध्यम से हमेशा विदेशों में काम की तलाश करें, जैसे - कनाडा सरकार द्वारा कनाडा में नौकरियों के लिए "जॉब बैंक"; और "मेक इट इन जर्मनी", जर्मनी की संघीय सरकार की आधिकारिक वेबसाइट।
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RSS का स्वदेशी जागरण मंच क्या है और कितना असरदार है?
आखिर स्वदेशी जागरण मंच का सरकार पर असर क्यों है, जबकि आर्थिक मामलों में सीधे तौर पर मंच का कोई दखल नहीं है
देश के सियासी गलियारों में स्वदेशी जागरण मंच (SJM) का नाम अक्सर सुर्खियों में आता रहा है. हाल में एक बार फिर ये नाम खबरों में था. बताया गया कि सुभाष चन्द्र गर्ग का करियर समय से पहले खत्म करने में इस मंच का हाथ था. गर्ग, मार्च से जुलाई 2019 तक, यानी सिर्फ पांच महीने भारत के वित्त सचिव रह पाए. इसके बाद उनका तबादला ऊर्जा मंत्रालय में हो गया.
कहा जाता है कि RSS और SJM अधिकारियों ने सलाह-मशविरा करने के लिए सरकार से मुलाकात की. मुद्दा था कि भारत को विदेशी मुद्रा हासिल करने के लिए देश से बाहर बॉन्ड बेचने चाहिए या नहीं. पुराने समय में RBI के गवर्नरों ने हमेशा इस प्रस्ताव को खारिज किया था.
पहले इस योजना का समर्थन कर रही बीजेपी सरकार ने इसपर “दोबारा विचार” करने का फैसला किया है.
SJM के राष्ट्रीय संयोजक अश्विनी महाजन ने मीडिया को उस बैठक के बारे में बताने से इनकार कर दिया. बॉन्ड के जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने के बारे में उन्होंने कहा, “ये खतरा मोल नहीं लिया जा सकता. ये एक मूर्खतापूर्ण विचार है.”
इस घटना को छोड़ भी दें, तो पिछले ही साल SJM ने सरकार से एयर इंडिया का विनिवेश न करने को कहा था. उन्होंने RBI से कहा था कि सरकार को इसके फायदे मिलते हैं. इसके अलावा उन्होंने वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट समझौता न करने को कहा था. दूसरी मांगों के साथ प्रधानमंत्री को ये भी लिखा था कि चीन को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म किया जाए.
आखिर स्वदेशी जागरण मंच क्या है? सरकार पर उनका असर क्यों है, जबकि आर्थिक मामलों में सीधे तौर पर मंच का कोई दखल नहीं है? आइए जानते हैं.
संगठन का जन्म कैसे हुआ?
1991 में स्थापित SJM को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का आर्थिक विभाग कहा जाता है. ठीक उसी प्रकार, जैसे बीजेपी, संघ का राजनीतिक विभाग है.
संगठन खुद को स्वदेशी जागरण का वंशज मानता है, जो भारत की आजादी की जंग का अहम हिस्सा था और जिसका मकसद भारतीय राष्ट्रीयता का विकास करना था.
स्वदेशी आंदोलन और इसकी विचारधारा के समर्थक बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी जैसे दिग्गज थे. इस विचारधारा में घरेलू उत्पादन पर जोर दिया जाता था और ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया जाता था.
आजादी के बाद आर्थिक रूप से भारत की हालत नाजुक रही और 1991 में तो सरकार करीब-करीब दिवालिया हो गई. एक समझौते के तहत IMF ने भारत को 500 मीलियन अमेरिकी डॉलर दिये और बदले में समाजवादी विचारधारा के अनुरूप चलने वाली अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोलना पड़ा.
उसी साल 22 नवम्बर को नागपुर में पांच राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने बैठक की और स्वदेशी जागरण मंच का गठन किया, ताकि आम लोगों को बताया जा सके कि सरकार का ये कदम आर्थिक साम्राज्यवाद है.
बैठक में शामिल होने वाले संगठन थे - भारतीय मजदूर संघ (BMS), RSS का युवा मोर्चा एबीवीपी, भारतीय किसान संघ (BKS), अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत (ABGP) और सहकार भारती. नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डॉ. एमजी बोकारे को मंच का पहला राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया.
SJM ने नई आर्थिक उदारीकरण की नीति और भारतीय बाजार में नए-नए आने वाले बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कथित आर्थिक साम्राज्यवाद का विरोध करना शुरू कर दिया. इनमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों का बहिष्कार भी शामिल था. बहिष्कार की नीति अब भी अपनाई जाती है.
अपने मकसद के प्रचार के लिए संगठन ने अपना साहित्य छापना और बांटना शुरु किया. RSS के तहत SJM फलता-फूलता रहा और उसे विद्या भारती और राष्ट्रीय सेविका समिति जैसे हममिजाज संगठनों का साथ मिलने लगा.
2014 के आम चुनावों में बीजेपी के सत्ता आने के बाद सरकार पर SJM का असर पहले से काफी बढ़ गया. संगठन को RSS की छत्रछाया मिलने के कारण उसे इस काम में फायदा पहुंचा.