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अस्थिर ब्याज क्या है?

अस्थिर ब्याज क्या है?

पीपीएफ अकाउंट के नुकसान जानने के बाद ही आप ले पाएंगे निवेश का सही फैसला

प्रमोशन के चलते हुए 99 प्रतिशत कंटेंट में आपके सामने पीपीएफ अकाउंट के नुकसान की बजाय केवल फायदे ही दिखाये जाते हैं। लेकिन जब तक, हम किसी भी चीज के अच्छे और बुरे, दोनों पहलू को नहीं देखते हैं, तब तक हमारी सारी जानकारी अधूरी ही रहती है।

इसलिए हम आपके सामने कुछ पीपीएफ अकाउंट के नुकसान के वे पहलू रख रहे हैं, जिसे जानने के बाद आपकी सोंच में थोड़ा फर्क जरूर आयेगा और आप एक बेहतर फैसला ले पायेगें।

पीपीएफ अकाउंट के नुकसान

“अगर आपको इनकम टैक्स बचाना है और अपना पैसा सुरक्षित रखना है तो आपको PPF में निवेश करना चाहिए!” इस प्रकार की सलाह आपको दी जाती है और यह बात सच भी है!

मगर आपको ये कोई नहीं बताता है कि, अचानक पैसों की जरूरत पड़ जाये तो आप अपने PPF अकाउंट से पैसे नहीं निकाल पायेगें।

इस प्रकार की अन्य कई जरूरी बातें हैं जिनकी जानकारी आपको होनी ही चाहिए यदि आप PPF में निवेश कर चुके है अथवा करने जा रहे हैं।

पीपीएफ अकाउंट के नुकसान

कम और अस्थिर ब्याज दर

पिछले कुछ वर्षों में PPF अकाउंट के ब्याज दर में लगातार कमी आती जा रही है। हालाँकि, वर्तमान 7.1 प्रतिशत की ब्याज दर चल रही है जिसकी समय बीतने के साथ और भी घटने की आंशका बनी हुई है।

पीपीएफ अकाउंट के नुकसान में सबसे बड़ा नुकसान यह है कि, जब आपका ब्याज दर स्थिर नहीं होता है और ब्याज की दर भी कम रहती है, तब हम जरुरत के हिसाब से बचत करने में असमर्थ हो जाते हैं।

फंड का आकार छोटा होना

आप 1 साल में 1.5 लाख से ज्यादा PPF में नहीं डाल सकते है यदि आप भविष्य के लिए बड़े फण्ड का सपना देख रहे हैं तो इसमें निवेश करने से आपका सपना अधूरा रह सकता है।

आप अधिकतम 22.5 लाख रुपये का ही फंड तैयार कर पायेगें।

ज्वाइंट खाता न होना

आप अपने परिवार के सदस्य को पीपीएफ अकाउंट में शामिल नहीं कर सकते हैं।

अधिकतर परिवार में पति-पत्नी या अन्य सदस्य ज्वाइंट अकाउंट खुलवाते हैं जिससे अगर घर के मुखिया के पास पर्याप्त समय न हो, तो अन्य सदस्य खाते को मैनेज कर सकते हैं।

यह सुविधा भी PPF अकाउंट में नहीं मिलती है और इसलिए पीपीएफ अकाउंट के नुकसान में ये भी शामिल है।

एक से अधिक खाते की अनुमति नहीं

दो साल पहले ही सरकार नियम लायी है जिसके तहत 12 दिसंबर 2019 को या उसके बाद के खाते मर्ज आपस में नहीं होगें।

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पीपीएफ अकाउंट, आप एक से अधिक नहीं खुलवा सकते है। दिसम्बर 2019 के पहले यदि आपके पास दो खाते हैं तो वे आपस में मर्ज हो सकते थे लेकिन सरकार ने यह नियम भी बदल दिया।

यदि गलती से आप दो खाते खुलवाते हैं उनमें से एक खाता बंद हो जायेगा।

NRI नहीं खुलवा सकते खाता

वैसे तो NRI कई सरकारी स्कीमों को आसानी से ले सकते हैं किन्तु वे अपना PPF अकाउंट नहीं खुलवा सकते हैं।

निष्कर्ष

पीपीएफ अकाउंट के नुकसान को संक्षेप में समझे तो इसमें लम्बी अवधि अस्थिर ब्याज क्या है? तक पैसा जमा होता है जिसे हम बीच में नहीं निकाल सकते हैं। और न तो हमें इसमें इन्शुरस मिलता है और न ही अन्य कोई विशेष लाभ !

रिटर्न की बात करें तो म्युचअल फण्ड में इससे दोगुने से ज्यादा रिटर्न मिल सकता है।

इतनी कमियाँ बताने के बाद भी मैं आपको PPF में निवेश की सलाह दूंगा क्योंकि इससे आप लॉन्ग टर्म में अच्छी बचत कर लेगें और आपका पैसा भी सुरक्षित रहेगा।

ईटी मनी जीनियस की इन्वेस्टिंग इंटेलिजेंस के साथ निवेशक अस्थिर बाजारों को अब दे सकते हैं मात

ईटी मनी जीनियस की इन्वेस्टिंग इंटेलिजेंस के साथ निवेशक अस्थिर बाजारों को अब दे सकते हैं मात

आपको अपने आस-पास बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो अपने फिटनेस प्‍लान या डाइट पर टिके रहने में विफल रहते हैं। डाइट और फिटनेस रिजाइम फॉलो न कर पाने के ढेरों कारण होते हैं। ऐसे में यदि आप उन लोगों को गहराई से देखें जो सफल हैं तो आपको आपके अनुसार आपको उत्तर मिल जाता है - यदि आप अपने लक्ष्य पर टिके रहें तो आपको उचित परिणाम जरूर मिल सकता है। इसी प्रकार निवेशकों के सामने आने वाली चुनौतियां ज्‍यादा अलग नहीं हैं, लेकिन कुछ अनोखी चुनौतियां होती हैं जिसका निवेशकों को सामना करना पड़ता है। मुख्य रूप से सीमित ज्ञान, बाइसेस और बाजार की हलचल के डर के चलते अधिकांश निवेशकों के लिए वित्तीय निर्णय लेना कठिन होता है।

काफी लोग शेयर बाजार की स्थिति और उतार-चढ़ाव के चलते उससे दूर रहते हैं। इसकी तुलना उस फिक्स्ड रिटर्न से करें जो वे बैंक डिपॉजिट से ब्याज के रूप में कमाते हैं, जो अधिक स्थिर, अनुमानित और सुरक्षित प्रतीत होता है। यदि आप निवेश या लंबी अवधि के लिए निवेशित रहने से बचते हैं तो ये कारण आपको वेल्‍थ गेन करने से दूर कर देते हैं।

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एक आम आदमी के लिए स्टॉक, बॉन्ड, म्यूचुअल फंड और सोना आदि जैसे ढेरों प्रकार के निवेश करने के लिए वित्तीय साधन मौजूद हैं। अब वह शेयर बाजार के अंदर लिस्‍टेड कंपनी या किसी नई कंपनी के शुरुआती सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ) में निवेश कर सकता है। जब म्युचुअल फंड की बात आती है तो घरेलू व अंतरराष्ट्रीय इक्विटी, कई प्रकार के ऋण के साधन और सोना विकल्प के तौर पर आते हैं। वित्तीय साधन तरह-तरह की सामग्री के रूप में नजर आते हैं, पर किसी गोल या वेल्‍थ क्रियेशन का समाधान नहीं होते। इसके बारे में विचार करें तो अधिकांश निवेशक एक सरल, कम रखरखाव और भरोसेमंद निवेश समाधान की तलाश में रहते हैं। ऐसे में हम निवेश से संबंधित हर समस्या के समाधान को लेकर तैयार हैं।

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निवेशकों की जरूरतों का जवाब

टाइम टेस्‍टेड और सक्‍सेसफुल इंवेस्‍टमेंट की स्‍ट्रेटिजी में एसेट, एलोकेशन, डायवर्सिफिकेशन और रीबैलेंसिंग का महत्‍व काफी होता है। ये सुनने में आसान लगता है पर यह ऐसे सिद्धांत पर काम करने वाला कोई तैयार सहज उत्पाद या सेवा नहीं है। इस‍लिए हमने ईटी मनी जीनियस विकसित किया है जो निवेशकों की चिंताओं का समाधान करता है। जीनियस निवेशकों की एसेट, एलोकेशन, डायवर्सिफिकेशन और रीबैलेंसिंग की जरूरत को पूरा करता है।

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ईटी मनी जीनियस में सबसे पहले निवेशक एक रिस्‍क एसेस्‍मेंट करते हैं। यह एक डायनेमिक टूल चेंन जो इन्‍वेस्‍ट को एक रिजिड प्रोफाइल देने की बजाय उन्‍हें उनकी रिस्‍क लेने की क्षमता से रूबरू करवाता है। एक जीनियस की कार्यप्रणाली सफल निवेश गुरुओं के सिद्धांतों पर और उनके द्वारा निर्मित निवेश मॉडल पर आधारित होता है, पर उन्‍हें हर निवेशक के लिए पर्सनलाइज किया जाता है।

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ईटी मनी जीनियसके तहत 6 अस्थिर ब्याज क्या है? पोर्टफोलियो (शील्ड, स्टेबल, बैलेंस्ड, बैलेंस्ड प्लस, ग्रोथ और हाई ग्रोथ) मिलते हैं जो एक निश्चित निवेश समय सीमा, वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम प्रोफाइल पर आधारित होते हैं। ईटी मनी शिल्‍ड पोर्टफोलियो कम जोखिम वाले विकल्प के साथ अल्पकालिक लक्ष्यों के लिए उपयुक्त कवच है, वहीं लंबी अवधि के लक्ष्यों जैसे रिटायरमेंट व धन सृजन के लिए हमारे पास हाई ग्रोथ ऑप्‍शन भी मौजूद हैं। इनके अलावा कई और वैरियेंट और च्‍वाइसेस देते हैं। जिस प्रकार से व्यक्तिगत प्रशिक्षण और डाइट लोगों के लिए काम कर सकता है, वैसे ही व्यक्तिगत निवेश समाधान भी काम करेगा।

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जीनियस को शेयर बाजार की पास्‍ट की अलग-अलग सिचुएशन में टेस्‍ट किया गया है। हम भरोसे के साथ कह सकते हैं कि यह निवेशक के चिंताओं के समाधान में सबसे खास है। यह निवेशकों को जोखिम के प्रति उनकी सहूलियत के अनुसार मदद करता है। इसके अलावा निवेश लक्ष्यों और समय सीमा के अनुरूप पोर्टफोलियो का सुझाव देता है। निवेश के प्रबंधन के साथ व्‍यवस्थित रूप से रीबैलेंसिंग पर भी गौर करता है। वेल्‍थ मैनेजमेंट में वैयक्तिकरण की यह अवस्‍था अभूतपूर्व है जो एक टैप के जरिये आपके मोबाइल पर मौजूद है।

हम निवेशकों के साथ उनकी निवेश यात्रा के दौरान हर वक्‍त बने रहते हैं। जीनियस के प्रभावकारी सहयोग से ग्रोथ और आत्मविश्वास में इजाफा होता है। इससे निवेशक इन्‍वेस्‍टेड रहते हैं और अपनी इन्‍वेस्‍टमेंट से बेहतरीन रिस्‍क-एडजस्‍टेड रिटर्न कमाते हैं।

बाजार अस्थिर होने के कारण लंबी अवधि के निवेशकों के लिए मौका, लॉन्ग टर्म में उतार-चढ़ाव कम

यूटिलिटी डेस्क. कोरोनावायरस का प्रर्कोप पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है। अब तक यह 175 देशों में फैल चुका है। इससे विश्व अर्थव्यवस्था की रफ्तार मंद पड़ने की आशंका से न सिर्फ तेल की कीमतों, बल्कि दुनिया के शेयर बाजार में भारी गिरारावट के साथ उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। इन्वेस्टमेंट एडवाइजर जिग्नेश गोपानी (हेड, इिक्वटी, एक्सिस एएमसी) एनएसई का निफ्टी इंडेक्स एक महीने में 31.85% नीचे आ चुका है। 19 फरवरी को यह 12,125.90 पर था। 19 माचर् तक यह 3,862.45 अंक गिरकर 8,263.45 पर आ चुका है। सऊदी अरब और रूस मे प्राइज वॉर छिड़ने के बीच बीते एक माह में ब्रेंट क्रूड की कीमत 52.52% घट चुकी है। 19 फरवरी को यह 58.72 डॉलर प्रति बैरल थी। 19 मार्च को यह 27.88 डॉलर प्रति बैरल रह गई। कोरोनावायरस संक्रमण का विश्व अर्थव्यवस्था पर प्रभाव अंदेशे से अधिक हो सकता है। कई देशों ने यात्रा पर प्रतिबंध लगाए हैं।


अगले कुछ हफ्तों तक बनी शॉट टर्म में उतार-चढ़ाव की स्थ
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जहां तक शेयर बाजारों की बात है शॉट टर्म में उतार-चढ़ाव की स्थिति अगले कुछ हफ्तों तक बनी रह सकती है। एक चिंता यह है कि यदि हालात जल्द नहीं सुधरे तो मौजूदा मंदी का दौर लंबे समय तक भी चल सकता है। हालांकि आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिए विथिन्न देशों के केंद्रीस बैंकों ने ब्याज दरों में आक्रामक कटौती का ऐलान किया है। लेकिन इसका शॉर्ट टर्म में जितनी जरूरत है उतना प्रभावी असर नहीं होगा। वजह जब तक कोरोनावायरस का खौफ पूरी तरह खत्म नहीं होता, तब तक प्रोडक्ट्स की मांग कमजोर रहेगी। भारत में अभी कोरोनावायरस के बहुत कम मामले सामने आए हैं। इसके प्रकोप से बचाव के लिए उठाए जाने वाले एहितयाती कदमों से एयरलाइंस, पयर्टन सेक्टर जैसे कुछ क्षेत्रों की मांग प्रभावित हुई है।

बैंको की हालत भी कमजोर
बाजार की एक चिंता यह भी है कि कंपिनयों पर भारी कर्ज है और उन्हे कर्ज देने वाले बैंको की हालत एनपीए की वजह से कमजोर है। यस बैंक को बचाने के लिए जिस तरह से योजना लाई गई इससे यह मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। सरकार और रिजर्व बैंक क्रेडिट मार्केट में फिर से भरोसा कायम करने के लिए क्या कदम उठाते है, बाजार की धारणा में स्थिरता लाने में इनकी अहम भूमिका होगी।

लॉन्ग टर्म में उतार-चढ़ाव कम
शॉर्ट से मीडियम टर्म शेयर बाजारों में अस्थिरता बनी रह सकती है, लेकिन जहां तक उद्योग-धंधों की बात है लॉन्ग टर्म में इतनी अस्थिरता नहीं आएगी। हां, मौजूदा चुनौतियों से निपटने के दौरान एक-दो तिमाही तक इनकी गितिविधियों में उतार चढ़ाव देखने को मिल सकता है।

शेयरों में तीन से पांच साल का लक्ष्य लेकर निवेश करें
शेयर बाजार में जारी मौजूदा बिकवाली से फिलहाल दूरी बनाकर रखनी चाहिए। बाजार की इस गिरावट को अच्छे शेयरों को कम कीमत पर खरीदने के मौके के रूप में देखना चाहिए। कम से कम तीन से पांच साल का लक्ष्य लेकर निवेश करना चाहिए। तीन से छह माह की अविध में नियिमत आधार पर निवेश करना चाहिए।

फाइनेंशियल स्टॉक ने मार्केट को नीचे खींचा। अस्थिरता जारी – पोस्ट मार्केट एनालिसिस

निफ्टी 108 पॉइंट्स के गैप-डाउन के साथ 17,609 पर खुला। 17,600 के शुरुआती निचले स्तर पर पहुंचने के बाद इंडेक्स में कुछ तेजी दिखी। लेकिन, फिर इसमें तेज गिरावट देखी गई और यह एक दिन के निचले स्तर 17,532 पर पहुंच गया। 17.520-530 क्षेत्र एक प्रमुख सपोर्ट है और इसने बाउंस बैक किया। आखिरकार, इसने रेजिस्टेंस की प्रवृत्ति को तोड़ दिया और शुरुआती उच्च से ऊपर की वसूली की गति खो दी। निफ्टी 88 पॉइंट्स या 0.50% की गिरावट के साथ 17,629 पर बंद हुआ।

बैंक निफ्टी ने दिन की शुरुआत 314 पॉइंट्स के गैप-डाउन के साथ 40,889 पर की। 41,159 के शुरुआती स्तर से, इंडेक्स तेजी से गिर गया और दिन के निचले स्तर 40,360 पर पहुंच गया। वहां से इसने 560 पॉइंट्स की रिकवरी की, लेकिन 40,900 रेजिस्टेंस को नहीं तोड़ सका। बैंक निफ्टी 572 पॉइंट्स या 1.39% की गिरावट के साथ 40,630 पर बंद हुआ।

निफ्टी बैंक (-1.3%), निफ्टी फिनसर्व (-1.3%), निफ्टी FMCG (+1.3%) और निफ्टी मीडिया (+1.8%) आज 1% से अधिक मूव हुए।

प्रमुख एशियाई बाजार लाल निशान में बंद हुए। यूरोपीय बाजार लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं।

प्रमुख गतिविधियां -

सोने के गहनों के निर्माण के लिए Manappuram Finance (-1%) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद टाटा समूह का Titan (+2.6%) निफ्टी 50 टॉप गेनर के रूप में बंद हुआ।

PowerGrid(-3%) ने गिरावट जारी रखी और निफ्टी 50 टॉप लूजर के रूप में बंद हुआ।

फाइनेंशियल स्टॉक- Axis Bank (-2.1%), Bajaj Fiance (-1.6%), HDFC Bank (-2.1%), HDFC (-1.7%), ICICI Bank (-1.2%) और Kotak Bank (-1.3%) लाल रंग में बंद।

FMCG स्टॉक- HUL (+2.6%), Britannia (+1.8%), Dabur (+2.5%), ITC (+1.2%) और Marico (+2.6%) आज हरे निशान में बंद हुए।

Fortis (-14.7%) भारी गिर गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने IHH के खुले प्रस्ताव पर रोक लगा दी। Metropolis (+5.5%) अच्छी तरह से ऊपर चला गया।

आगे का अनुमान -

कल, यूएस फेड ने उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 75 bps की बढ़ोतरी की घोषणा की। पॉवेल ने कहा, कि इस कैलेंडर वर्ष में ही दरों में और बढ़ोतरी की जाएगी और इससे अमेरिकी बाजारों में भारी गिरावट आई।

इस हफ्ते हम भारी उतार-चढ़ाव देख रहे हैं, निफ्टी ऊपर और नीचे जा रहा है। कभी-कभी हमें लगता है कि बाजार गिर रहा है। तब यह एक सुपर ब्रेकआउट रिकवरी करता है और अंत में हम महसूस करते है कि यह एक झूठा टिपिकल अस्थिर बाजार सेनारिओ था।

निफ्टी ने आज वी-शेप की अच्छी रिकवरी दी, लेकिन दोपहर 2 बजे के बाद यह खराब हो गया। रेजिस्टेंस ट्रेंडलाइन बाजार को ऊपर नहीं जाने दे रही है। निगेटिव साइड पर, हम 17,480,420 और 180 पर सपोर्ट की उम्मीद कर रहे हैं।

इस सोमवार से बैंक निफ्टी में हर दिन किसी न किसी समय 0.7-1% की गिरावट देख रहे है। यदि 40,280 का स्तर टूटता है, तो हम 40,000 की ओर गिर सकते हैं।

HDFC बैंक अपनी ताकत खो रहा है और 1500 के स्तर से नीचे बंद हुआ है। अगला सपोर्ट 1479 पर है।

इंफोसिस ने आज 52 सप्ताह का नया स्तर छुआ और लाल निशान में बंद हुआ।

रूस के मेदवेदेव ने कहा, कि देश सामरिक परमाणु हथियारों सहित हर तरह से अपने साथ जोड़े गए क्षेत्रों की रक्षा के लिए तैयार है।

बैंक ऑफ इंग्लैंड ने ब्याज दर 75 bps से बढ़ाकर 2.25% कर दी।

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कच्चा तेल बढ़ाएगा संकट

महंगाई की मौजूदा तकलीफ वैसे ही कम नहीं हो रही। कच्चा तेल अब इसमें नई तकलीफ जोड़ने वाला है। यह नई तकलीफ आमजन तक सीमित नहीं रहने वाली, यह अर्थव्यवस्था को भी कमजोर करेगी।

कच्चा तेल बढ़ाएगा संकट

सरोज कुमार

पहले से सुस्त अर्थव्यवस्था का यह एक नया चरण होगा। ऊंची महंगाई दर और बेरोजगारी के बीच समाज का आचरण भी बदलेगा। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि भविष्य की तस्वीर कैसे संकट लिए होगी। महामारी के हालात सुधरने के बाद आर्थिक गतिविधियां शुरू ही हुई थीं कि रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ गया। आपूर्ति शृंखला एक बार फिर बाधित हुई। यूरोप, अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में महंगाई आसमान पर पहुंच गई। इसी बीच पश्चिमी देशों ने रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए।

रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है। इसलिए कच्चे तेल की कीमतें चढ़ती गईं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय हिस्से की जो कीमत अप्रैल 2022 में 102.97 डालर प्रति बैरल थी, वह जून 2022 आते-आते 116.01 डालर प्रति बैरल पहुंच गई। अमेरिका में महंगाई पर लगाम लगाने फेडरल रिजर्व मैदान में उतरा। उसने ब्याज दर बढ़ानी शुरू की।

मार्च 2022 से अब तक फेड की ब्याज दर छह बार में 3.50 फीसद बढ़ कर चार फीसद तक हो चुकी है। यह सिलसिला हाल-फिलहाल थमने वाला नहीं। दिसंबर 2022 में एक और वृद्धि का संकेत है। फेड की ब्याज दर बढ़ने से जहां डालर मजबूत होता गया, वहीं भारत सहित अन्य देशों की मुद्राएं कमजोर होती गईं। डालर में भुगतान के कारण आयात महंगा होता गया। इससे महंगाई बढ़ती गई।

ईंधन अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य अवयव है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और अपनी जरूरत का पिच्यासी फीसद कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि सीधे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। आयात महंगा होगा अस्थिर ब्याज क्या है? तो निश्चित तौर पर महंगाई बढ़ेगी। महंगाई बढ़ेगी तो अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।

भारत के लिए अच्छी बात यह रही कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से अपनी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए रूस सस्ते दर पर कच्चा तेल बेचने को राजी हो गया। भारत ने इसका लाभ भी उठाया। अप्रैल 2022 से अगस्त 2022 के दौरान रूस से कच्चे तेल का आयात पिछले साल की तुलना में पांच गुना बढ़ कर कुल आयात का लगभग सोलह फीसद हो गया। सितंबर 2022 में हालांकि इसमें दो फीसद की गिरावट आई, फिर भी मौजूदा समय में भारत रूसी कच्चे तेल का चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा खरीददार है। रूसी तेल ने आयात बिल में काफी राहत दी।

इसी दौरान दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देश चीन में महामारी से बचाव के सख्त उपायों के कारण आर्थिक गतिविधियां थम गर्इं और कच्चे तेल की मांग घट गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत नीचे आने लगी।

भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की औसत कीमत जुलाई 2022 में घट कर 105.49 डालर प्रति बैरल हो गई, अगस्त में 97.40 डालर, सितंबर में 90.71 डालर और अक्तूबर में औसत कीमत 91.70 डालर प्रति बैरल पर आ गई। लेकिन सरकार ने आम जनता को इसका कोई लाभ नहीं दिया। जून 2022 से अब तक पेट्रोल, डीजल की घरेलू कीमतें यथावत बनी हुई हैं।

दुनिया में मंदी की आहट के बीच कच्चे तेल की कीमत और नीचे आने की उम्मीद थी। यदि ऐसा होता तो कम से कम सरकार को राजस्व के मोर्चे पर राहत मिलती। क्योंकि भारत अभी भी कच्चे तेल का सबसे ज्यादा आयात इराक से और उसके बाद सऊदी अरब से करता है। लेकिन तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक प्लस को सस्ता तेल बेचना मंजूर नहीं था।

दुनिया में कच्चे तेल की आपूर्ति में करीब अस्सी फीसद से अधिक की हिस्सेदारी रखने वाले तेईस देशों के इस समूह ने मांग घटने के साथ ही उत्पादन घटाने का निर्णय ले लिया, ताकि कच्चे तेल की कीमत नीचे न आने पाए। ओपेक प्लस के प्रतिनिधियों की चार अक्तूबर को वियना में हुई बैठक में नवंबर 2022 से उत्पादन बीस लाख बैरल प्रतिदिन घटाने का निर्णय लिया गया और अगले ही दिन नवंबर के लिए कच्चे तेल का वायदा 0.15 फीसद बढ़ गया।

मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर संचालित बाजार में आपूर्ति कम होगी तो कीमत हर हाल में बढ़ेगी। ऐसे में मजबूत डालर और महंगा तेल महंगाई को किस ऊंचाई तक ले जाएंगे, उसे देखने के लिए हमें गर्दन ऊंचा करने का अभ्यास अभी से शुरू कर देना चाहिए। सरकार ने सस्ते तेल का लाभ आमजन के साथ भले साझा नहीं किया हो, लेकिन महंगे तेल का बोझ वह हर हाल में साझा करना चाहेगी।

महंगाई की मौजूदा मार ही आम आदमी की कमर तोड़ रही है। जेब में पैसे नहीं तो भला बाजार कौन, क्यों और कैसे जाए! जब मांग घटेगी तो विनिर्माण को नीचे आना ही है। सितंबर 2022 में विनिर्माण का पीएमआइ (पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स) अगस्त के 56.2 से घट कर 55.1 पर आ गया।

अक्तूबर में हालांकि इसमें सुधार हुआ और यह 55.3 पर दर्ज किया गया। लेकिन इसी महीने बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.77 फीसद हो गई। इससे इस संभावना को बल मिलता है कि अक्तूबर का विनिर्माण पीएमआइ त्योहारी मांग का परिणाम था। इसकी असल परीक्षा नवंबर के आंकड़े से हो जाएगी।

ऐसा नहीं कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) महंगाई को लेकर चिंतित नहीं हैं। लेकिन उनकी चिंता का कोई परिणाम निकल रहा हो, ऐसा भी नहीं है। महंगाई पर नियंत्रण के लिए आरबीआइ मई 2022 से लेकर अब तक अपनी नीतिगत ब्याज दर में 190 आधार अंकों की वृद्धि कर चुका है। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात।

लगातार तीन तिमाहियों यानी नौ महीनों से महंगाई दर आरबीआइ की लक्षित अधिकतम सीमा छह फीसद से ऊपर बनी हुई है। नतीजा यह हुआ कि केंद्रीय बैंक को आरबीआइ अधिनियम,1934 की धारा 45 जेडएन और आरबीआइ एमपीसी एवं मौद्रिक नीति प्रक्रिया अधिनियम,2016 के नियम 7 के तहत एमपीसी की एक विशेष बैठक बुलानी पड़ी और सरकार को रपट भेजनी पड़ी।

रपट में क्या है, फिलहाल खुलासा नहीं हो पाया है। लेकिन नियम कहता है, यदि महंगाई दर तीन तिमाहियों तक लक्षित अधिकतम सीमा के ऊपर बनी रहती है तो आरबीआइ को अपनी विफलता के कारण और उसके निवारण के उपाय सरकार को लिखित में बताने होंगे।

आरबीआइ की इस रपट पर सरकार क्या कुछ कदम उठाती है, यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल समझने वाली बात यह है कि सरकार के पास महंगाई पर लगाम लगाने के लिए राजकोषीय उपाय के अलावा कोई रास्ता है नहीं। और राजकोष की क्या हालत है?

इबारत साफ लिखी हुई है। कई वस्तुओं पर जीएसटी दर बढ़ाने और खाने-पीने के सामान पर भी जीएसटी लगाने के बावजूद मौजूदा वित्त वर्ष (2022-23) की प्रथम छमाही का राजकोषीय घाटा 6.20 लाख करोड़ रुपए दर्ज किया गया है। जबकि साल भर पहले इसी अवधि का राजकोषीय घाटा 5.27 लाख करोड़ रुपए था। आर्थिक अस्थिरता के मौजूदा दौर में विनिवेश के जरिए राजस्व जुटाना सरकार के लिए कितना कठिन है, वह अच्छी तरह समझ चुकी है।

कारपोरेट कर बढ़ाने का उसका कोई इरादा नहीं है। ऐसे में सरकार का सारा जोर अप्रत्यक्ष कर वसूली पर है। महंगाई के रूप में सरकार को कर भुगतान आमजन की मजबूरी है। महंगा कच्चा तेल इस महंगाई में आग लगाएगा। इस अग्नि-परीक्षा में कौन खरा उतरेगा? इस सवाल का जवाब समय देगा। फिलहाल सरकार को अपनी भूमिका तय करनी है कि वह इस आग पर पेट्रोल डालना चाहती है, या पानी।

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