रणनीति कैसे लागू करें?

Nykaa Bonus Issue: इनवेस्टर्स के लिए क्या हैं नायका के बोनस शेयरों के मायने?
बड़ी गिरावट के बाद बोनस इश्यू ने शेयरों की कीमतों को और गिरने से बचा लिया है। 9 नवंबर को यह शेयर 8 फीसदी गिरा था। बीते एक महीने में यह शेयर करीब 20 फीसदी गिर चुका है
Nykaa ने शेयरों में बड़ी बिकवाली रोकने के लिए दो-तरफा रणनीति अपनाई। कंपनी की यह रणनीति सफल साबित हुई है। लॉक-इन पीरियड खत्म होने पर शेयरों में बड़ी बिकवाली नहीं हुई।
Nykaa Bonus Issue: Nykaa ने बोनस शेयरों (Bonus shares) के लिए रिकॉर्ड डेट उस दिन रखी, जिस दिन उसके शेयरों के लिए लॉक-इन पीरियड (Lock-In period) खत्म रणनीति कैसे लागू करें? हो रहा था। कंपनी ने शेयरों में बड़ी बिकवाली रोकने के लिए यह दो-तरफा रणनीति अपनाई। कंपनी की यह रणनीति सफल साबित हुई है। लॉक-इन पीरियड खत्म होने पर शेयरों में बड़ी बिकवाली नहीं हुई। सवाल है कि आगे क्या होगा?
नायका की यह रणनीति भले ही अभी शानदार दिख रही है, लेकिन इसकी कीमत कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों और प्री-आईपीओ शेयरहोल्डर्स के एक खास वर्ग को चुकानी पड़ी है। प्रमोटर और शुरुआती शेयरहोल्डर्स अब बहुत कम कैपिटल गेंस टैक्स के साथ इस शेयर से बाहर निकल सकते हैं। लेकिन, मैनेजमेंट ने शेयरों से बाहर निकलने की चाहत रखने वाले दूसरे शेयरहोल्डर्स के लिए शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स के रूप में एक बाधा खड़ी कर दी है। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस का रेट सिर्फ 10 फीसदी है, जबकि शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर इनकमट टैक्स का मार्जिनल रेट लागू होता है।
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बड़ी गिरावट के बाद बोनस इश्यू ने शेयरों की कीमतों को और गिरने से बचा लिया है। 9 नवंबर को यह शेयर 8 फीसदी गिरा था। बीते एक महीने में यह शेयर करीब 20 फीसदी गिर चुका है। एक्स-बोनस होने के बाद यह शेयर 171 रुपये पर खुला। फिर, करीब 173 रुपये तक आने से पहले चढ़कर 184 रुपये पर गया। यह 9 नवंबर के बंद स्तर के बराबर बैठता है।
ऐसा लगता है कि जोमैटो के शेयरों में लॉक-इन खत्म होने पर बड़ी गिरावट देखने के बाद नायका ने अपने शेयरों में बड़ी गिरावट रोकने के लिए बोनस इश्यू का दांव चला। जोमैटो के शेयर दो दिन में 30 फीसदी गिर गए थे, जिससे बाजार में अफरातफरी मच गई थी।
बोनस इश्यू ने 10 नवंबर को नायका के शेयरों को बड़ी गिरावट से बचा लिया है। लेकिन, शेयरों के डीमैट अकाउंट में आने के बाद बड़ी गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। अभी इस बार में तस्वीर साफ नहीं है कि बोनस शेयर कब तक इनवेस्टर्स के डीमैट अकाउंट में क्रेडिट होंगे। ब्रोकर्स को उम्मीद है कि करीब दो हफ्ते में ये शेयर डीमैट अकाउंट में आ जाएंगे। कुछ सूत्रों ने 14 नवंबर तक शेयरों के क्रेडिट होने की उम्मीद जताई। लेकिन, यह सिर्फ उपलब्धता का मामला नहीं है।
अब टैक्स के मसले की होगी बड़ी भूमिका
अब टैक्स के मसले की बड़ी भूमिका होगी। शेयर नहीं बेच पाने से नुकसान में रहने वाले निवेशकों को टैक्स के मोर्चे पर फायदा होगा, जबकि ऐसे निवेशक जो अपने कुछ शेयर बेच पाएंगे उन्हें टैक्स के मामले में राहत मिलेगी। यह कैसे होगा? आम तौर पर बोनस से आपके शेयर की वैल्यू घटती या बढ़ती नहीं है। मान लीजिए आप 100 रुपये के प्राइस पर एक शेयर खरीदते हैं। इसका करेंट मार्केट प्राइस भी 100 रुपये है। कंपनी हर एक शेयर पर 5 बोनस शेयर का ऐलान करती है। इससे आपके शेयर की कीमत 16 रुपये (Rs 16X6=100) रुपये पर आ जाती है।
अब इनकम टैक्स के नियम के मुताबिक, आपने जिस कीमत पर शेयर खरीदा है, उसे ऑरिजिनल कॉस्ट के रूप में लिया जाएगा। यह यहां 100 रुपये है। लेकिन, अब एक शेयर की वैल्यू 1/6 रह गई है। इससे आपकी बुक्स में 84 रुपये का लॉस दिखाई देगा। अतिरिक्त सभी शेयरों बोनस शेयरों के इश्यू के लिए कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन जीरो हो जाता है, क्यों उन्हें फ्री शेयर माना जाता है।
अब, मान लीजिए आपका एक्विजिशन कॉस्ट 100 रुपये की जगह 10 रुपये था। बोनस इश्यू ऊपर दिए गए उदाहरण जितना ही रहता है। शेयर का करेंट मार्केट प्राइस 100 रुपये था। अब आपको पहले शेयर के लिए 6 रुपये (Rs 16 ex-bonus price minus the cost of acquisition of Rs 10) का कैपिटल गेंस टैक्स चुकाना होगा। न कि 90 रुपये ( prevailing price of रणनीति कैसे लागू करें? Rs 100 minus cost of acquisition of Rs 10) का।
आपको यह ध्यान में रखना होगा कि यह सिर्फ पहला या ऑरिजनल शेयर है, जिसे आप अपने पास रखते हैं। अगर आप बोनस शेयर सहित सभी शेयरों को बेचने का फैसला करते हैं टैक्स लायबिलिटी में कोई अंतर नहीं पड़ेगा, क्योंकि तीन बोनस शेयरों (कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन जीरो मानने पर) पर आपको ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ेगा, क्योंकि उन्हें पूरी तरह से कैपिटल गेंस माना जाएगा।
नायका के मामले में ज्यादातर प्री-इनवेस्टर्स अपने ऑरिजिनल इनवेस्टमेंट पर बहुत अच्छे मुनाफे पर बैठे हैं। प्राइवेट इक्विटी इनवेस्टर्स का मुनाफा 5 गुना से लेकर 10 गुना तक है। इसका मतलब है कि कुछ इनवेस्टर्स जिनकी एवरेज कॉस्ट एक्स-बोनस प्राइस के मुकाबले बहुत कम है, वे अगर इस साल अपने सिर्फ कुछ शेयर बेचना चाहते हैं तो उनकी टैक्स सेविंग्स बहुत अच्छी रहेगी। अपने बाकी शेयरों को अगर वे बेचते हैं तो उन्हें शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस चुकाना होगा, जो एक सरप्राइज की तरह है।
लेकिन, शुरुआती इनवेस्टर्स के प्रोफाइल को देखते हुए जो ज्यादातर नायर फैमिली के दोस्त या करीब सहयोगी है, अगर वे कुछ शेयर बेचकर कुछ पैसा बनाना चाहते हैं तो यह बहुत अच्छी डील होगी। फिर वे अपने बाकी शेयरों को लंबे समय तक अपने पास रख सकते हैं।
जहां तक प्राइवेट इक्विटी इनवेस्टर्स का मामला है तो उनका एक्विजिशन प्राइस एक्स-बोनस प्राइस के मुकाबले ज्यादा है। उन्हें बोनस स्ट्रिपिंग के रूप में कुछ फायदा हो सकता है। इसमें एक्स-बोनस शेयर प्राटइस कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन से कम होने पर उन्हें कैपिल लॉस बुक करने में मदद मिलेगी और वे इसे दूसरी जगह ऑफ-सेट कर सकते हैं। लेकिन, ओवरऑल इन प्राइवेट इक्विटी इनवेस्टर्स और दूसरे शेयरहोल्डर्स को अतिरिक्त शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स चुकाना होगा, क्योंकि बोनस शेयरों के एक्विजिशन कॉस्ट को जीरो माना जाएगा। पहले इन इनवेस्टर्स को 10 फीसदी का लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस चुकाना होता। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर 15 फीसदी टैक्स लगता है।
WBPSC भर्ती 2022 जूनियर इंजीनियर पदों के लिए अधिसूचना जारी; ऑनलाइन आवेदन कैसे करें, वेतन, पात्रता की जांच करें
WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022: पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग (WBPSC) ने जूनियर . के पदों पर भर्ती के लिए अधिसूचना प्रकाशित की है
पश्चिम बंगाल में इंजीनियर्स (सिविल/मैकेनिकल/इलेक्ट्रिकल) सब-ऑर्डिनेट सर्विस ऑफ इंजीनियर्स। WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022 के तहत, आयोग को पश्चिम बंगाल सरकार के विभिन्न विभागों, निदेशालयों, अन्य कार्यालयों और प्रतिष्ठानों के तहत जूनियर इंजीनियरों (सिविल / मैकेनिकल / इलेक्ट्रिकल) की भर्ती करनी है।
इच्छुक और योग्य उम्मीदवार इन पदों के लिए 07 दिसंबर 2022 तक या उससे पहले आवेदन कर सकते हैं. ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया 16 नवंबर 2022 से शुरू होगी.
आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को ध्यान देना चाहिए कि आयोग जूनियर इंजीनियर (सिविल/मैकेनिकल/इलेक्ट्रिकल) के पदों पर भर्ती के लिए एक संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करेगा। लिखित परीक्षा के परिणाम के आधार पर चयनित उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा।
अधिसूचना विवरण WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022:
विज्ञापन संख्या: 09/2022
महत्वपूर्ण तिथि WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022:
ऑनलाइन आवेदन जमा करने की शुरुआत: 16 नवंबर 2022
ऑनलाइन आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि: 07 दिसंबर 2022
ऑनलाइन के माध्यम से शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि: 07 दिसंबर 2022
ऑफलाइन माध्यम से शुल्क जमा रणनीति कैसे लागू करें? करने की अंतिम तिथि: 08 दिसंबर 2022
रिक्ति विवरण डब्ल्यूबीपीएससी जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022:
नहीं। विभिन्न सेवाओं में रिक्तियों की संख्या और परीक्षा के परिणामों पर भरे जाने वाले पदों की घोषणा बाद में की जाएगी।
पात्रता मानदंड WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022:
शैक्षिक योग्यता
सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा
मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा
आपको सलाह दी जाती है कि पदों के लिए पूर्ण शैक्षणिक योग्यता/पात्रता के विवरण के लिए अधिसूचना लिंक की जांच करें।
वेतनमान: (पीबी-4) रु.9,000-40,500/- + ग्रेड पे रु.4,400/- के अलावा डीए, एमए और एचआरए आदि के अलावा नियमानुसार स्वीकार्य। (पूर्व-संशोधित)
WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022 कैसे डाउनलोड करें
- पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग (WBPSC) की आधिकारिक वेबसाइट -wbpsc.gov.in पर जाएं।
- होम पेज पर व्हाट्स न्यू/सब्जेक्ट सेक्शन में जाएं।
- अधिसूचना लिंक पर क्लिक करें जिसमें लिखा है ‘(विज्ञापन संख्या 09/2022) – विभिन्न विभागों में इंजीनियरों की डब्ल्यूबी सब-ऑर्डिनेट सेवा के लिए जूनियर इंजीनियरों (सिविल/मैकेनिकल/इलेक्ट्रिकल) के पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन, अन्य निदेशालय, सरकार के कार्यालय और प्रतिष्ठान। ऑफ डब्ल्यूबी’ होम पेज पर।
- आपको WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022 की पीडीएफ एक नई विंडो में मिल जाएगी।
- WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022 डाउनलोड करें और भविष्य के संदर्भ के लिए इसे सहेजें।
के लिए यहां क्लिक करें डब्ल्यूबीपीएससी जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022 पीडीएफ
WBPSC जूनियर इंजीनियर भर्ती 2022 कैसे लागू करें:
इच्छुक और योग्य उम्मीदवार इन पदों के लिए 07 दिसंबर 2022 तक या उससे पहले ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं.
मुफ्त ऑनलाइन पश्चिम बंगाल पीसीएस (डब्ल्यूबीपीएससी) 2022 मॉक टेस्ट लें
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कोविड-19 लॉकडाउन में देश में भुखमरी की स्थिति देखने के बाद इसे नकारना अमानवीय है. वैश्विक भुखमरी सूचकांक ने भारत की दुर्दशा बताई, तो केंद्र सरकार ने रिपोर्ट को ही ख़ारिज कर दिया. सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने पिछले आठ सालों में भुखमरी और कुपोषण कम करने के लिए क्या किया है.
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
हाल में जारी हुई ग्लोबल हंगर रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूख की स्थिति गंभीर है और अधिकांश देशों से बद्तर (121 देशों में 107वां स्थान). हालांकि, 2006 से हर साल निकलने वाली इस रिपोर्ट अनुसार देश की स्थिति हमेशा चिंताजनक ही रही है, लेकिन तब से 2014 के बीच कुपोषण व भुखमरी की स्थिति में सुधार हुआ था. पर पिछले कुछ वर्षों में सुधार नगण्य है.
पिछले साल की तरह इस वर्ष भी केंद्र सरकार ने रिपोर्ट को गलत बताकर खारिज कर दिया है.
इस रिपोर्ट में भूख की गणना के लिए चार सूचकांक प्रयोग किए जाते हैं – उम्र अनुसार कम लंबाई वाले बच्चों का अनुपात, लंबाई अनुसार कम वज़न वाले बच्चों का अनुपात, बच्चों का मृत्यु दर और कम कैलरी खाने वाली आबादी का अनुपात.
पहले तीन सूचकांक सरकार के खुद के आंकड़े हैं और चौथा सरकार द्वारा दी गई जानकारी अनुसार FAO का आकलन है. भूख के आकलन के लिए कौन से सबसे उपयुक्त सूचकांक होंगे या क्या प्रणाली विज्ञान होगा, यह चर्चा का विषय हो सकता है. लेकिन भारत में व्यापक कुपोषण, गरीबी और भुखमरी को किसी हालत में नकारा नहीं जा सकता है.
सरकार के अपने विभिन्न आंकड़े (जिनमें से कुछ को सरकार ने प्रकाशित करना ही बंद कर दिया है) सहित अनेक शोध संस्थाओं के आकलन इस ओर ही इंगित करते हैं. शहर की बस्तियों या गांवों में जाकर देखने से भी सच्चाई स्पष्ट हो जाती है. नाक को सीधे पकड़े या हाथ घुमाकर, नाक का स्थान व रूपरेखा वही रहती है.
2019-21 में हुए राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 5 के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग एक तिहाई बच्चों का उम्र अनुसार वज़न और लंबाई कम हैं. 2015-16 के सर्वेक्षण की तुलना में बहुत कम सुधार हुआ है. कुछ राज्यों, जैसे झारखंड व बिहार, में तो भयावह स्थिति है.
कोविड-19 लॉकडाउन ने देश में भुखमरी की स्थिति का खुलासा कर दिया था. कुछ दिन रोज़गार न मिलने के कारण हाशिये पर रहने वाले करोड़ों लोगों को महज़ पेट भरने के लिए खाने के लाले पड़ गए थे. इन दो सालों का कुपोषण पर हुए प्रभाव का तो अभी तक सही से आकलन हुआ ही नहीं है. ऐसी स्थिति में कुपोषण और भुखमरी को नकारना अमानवीय है. सवाल यह है कि मोदी सरकार ने पिछले आठ सालों में इन्हें कम करने के लिए क्या किया.
पिछले कई दशकों के जन संघर्ष के कारण यूपीए सरकार के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण रणनीति कैसे लागू करें? खाद्य व सामाजिक सुरक्षा कानून व योजनाएं लागू हुई थी, मुख्यतः मनरेगा व राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून. 2001 में शुरू हुए भोजन के अधिकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों एवं 2013 में पारित खाद्य सुरक्षा कानून से जन वितरण प्रणाली, आंगनवाड़ी सेवाएं, मध्याह्न भोजन और मातृत्व लाभ को क़ानूनी ढांचा मिला और इनका विस्तार हुआ. साथ ही, सामाजिक सुरक्षा पेंशन का भी विस्तार हुआ था. देश की एक बड़ी आबादी के लिए ये योजनाएं जीवनरेखा समान हैं.
यह समझने के लिए किसी विशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं है कि आंगनवाड़ी में अगर बच्चों, गर्भवती महिलाओं व धात्री माताओं को नियमित रूप से अंडा, मांस-मछली, फल, दूध, दाल व सब्जी आदि के साथ संपूर्ण आहार मिले, तो कुपोषण कम होगा. लेकिन आंगनवाड़ी से मिलने वाले पोषण के विस्तार के बजाय मोदी सरकार के कार्यकाल में आंगनवाड़ी परियोजना का बजट घटते-घटते 2022-23 में 2014-15 की तुलना में 38% कम हो गया है.
2018 में बड़े धूमधाम से शुरू किया गया पोषण अभियान केवल प्रचार-प्रसार और आंगनवाड़ी सेवाओं में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की योजना है और न कि पोषण सेवाओं के विस्तार का. यही हाल मध्याह्न भोजन का भी है. बच्चों में कुपोषण कम करने के लिए मातृत्व लाभ योजना का विशेष योगदान हो सकता है. लेकिन सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत अधिकार के विपरीत प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना को केवल पहले जीवित बच्चे तक सीमित कर दिया.
कोविड के दौरान जन दबाव व सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बाद केंद्र सरकार ने राशन कार्डधारियों को 5 किलो प्रति व्यक्ति अतिरिक्त मुफ्त अनाज देना शुरू किया. पिछले दो वर्षों से चल रही इस इस योजना की अवधि का राज्यों के चुनाव की तिथि अनुसार विस्तार किया जाता रहा. लेकिन जन वितरण प्रणाली में कार्डधारकों की संख्या, जो अब भी 2011 की जनगणना पर आधारित है, को वर्तमान जनसंख्या अनुसार विस्तारित नहीं किया जा रहा है.
एक आकलन अनुसार, इस कारण देश के लगभग 10 करोड़ योग्य लोग राशन से वंचित हैं. जन वितरण प्रणाली में दाल व तेल देने पर भी सरकार में चुप्पी है. साथ ही, केंद्र सरकार बहुत कम बुज़र्गों को पेंशन देती है, वह भी महज़ 200 रु (कुछ ख़ास मामलों में 500 रु) प्रति माह.
ये कुछ चंद उदाहरण मात्र हैं जो पिछले आठ सालों में मोदी सरकार की खाद्य, पोषण व सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाते हैं. साथ ही, इस दौरान इन योजनाओं को आधार आधारित बायोमीट्रिक प्रणाली से जोड़ने के तानाशाही फ़रमान के कारण लाखों लोग अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हुए और कई तो भुखमरी के शिकार भी हो गए.
बायोमीट्रिक प्रणाली से लोगों को हो रही परेशानी के बावज़ूद सरकार ने बड़ी धूमधाम से ‘एक राष्ट्र, एक राशन’ योजना को शुरू किया जो इसी प्रणाली पर आधारित है. तकनीकी समस्याओं के अलावा इस योजना अंतर्गत न जन वितरण प्रणाली से छूटे हुए प्रवासी मज़दूरों को फायदा है और न ही अधिकारों का विस्तार किया गया है.
पिछले कुछ सालों में कई राज्य सरकारों ने अपनी राशि लगाकर खाद्य व सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार किया है. उदाहरण के लिए, झारखंड ने 2021-22 में जन वितरण प्रणाली में 15 लाख छूटे हुए लोगों को जोड़ने के लिए राज्य खाद्य सुरक्षा योजना लागू की एवं पेंशन योजनाओं का दायरा बढ़ाया. तमिलनाडु ने 2022 में विद्यालयों में 1-5 क्लास के छात्रों के लिए मुफ्त नाश्ता शुरू किया, केरल ने इस वर्ष आंगनवाड़ी में बच्चों को दूध और अंडा देने की घोषणा की. अधिकांश राज्यों ने धीरे-धीरे अपनी ओर से पेंशन की राशि बढ़ाई आदि.
लेकिन राज्य के सीमित संसाधनों में ऐसी पहल करने की सीमा है. उल्लेखनीय है कि एक ओर केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर लगातार हस्तक्षेप कर राजनीतिक-आर्थिक केंद्रीकरण में लगी हुई है और दूसरी ओर कुपोषण व भुखमरी की लड़ाई में अपने हाथ खींचकर राज्यों के ऊपर जिम्मेदारी डाल देती है.
देश में बढ़ती महंगाई व बेरोज़गारी की मार अधिकांश लोगों पर पड़ रही है. ऐसी परिस्थिति में भी केंद्र सरकार का ध्यान देश में व्यापक कुपोषण व भुखमरी को ख़त्म करने के बजाय कॉरपोरेट घरानों के क़र्ज़ माफ़ी, कंपनियों को सब्सिडी व टैक्स छूट देने एवं सरकारी सेवाओं के निजीकरण पर है.
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कैसे बना 23 वर्ष की उम्र में प्रोफेसर।मेरे संघर्ष और सफलता की कहानी। youngest professor's real story
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23 वर्ष की उम्र में प्रोफेसर बनने की कहानी। youngest professor's real story. Follow me on Instagram:- .