बाजार के लिए वैश्विक रणनीति

जीएम इंडिया के फैसले में उस तरह की मजबूरियां दिखती हैं जिनका सामना एमएमसी कंपनियों को करना पड़ता था। कंपनी को बैंकरप्सी के साथ-साथ 2008 में वित्तीय संकट का भी सामान करना पड़ा। इसका स्टॉक रुक गया और निवेशकों से अच्छे परिणाम दिखाने का दबाव बनने लगा। इन वैश्विक दबावों के चलते इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फैसले लेने में समय लगता है। दो साल पहले ही कंपनी के बाजार के लिए वैश्विक रणनीति सीईओ मैरी बारा ने कहा था कि रणनीतिक दृष्टि से भारत मह्वपूर्ण बाजार है बाजार के लिए वैश्विक रणनीति और हम उसमें आगे निवेश करते रहेंगे। कंपनी के हालिया फैसले से स्पष्ट है कि वैश्विक दबाव कैसे काम करता है।
अंतरराष्ट्रीय उत्पाद रणनीतिया - international product strategies
अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए वैश्विक रणनीति उत्पाद रणनीतियों से संबंधित निम्न विषयों पर निर्णय लिए जाते हैं एकरूपता बनाम अनुरूपता बाडिग पैकेजिंग निम्नलिखित है:
एकरूपता बनाम अनुरूपता
कुछ वैश्विक कंपनियाँ सभी देशों के लिए एकरूप उत्पाद बनाती हैं। इसमें भेदहीन विपणन रणनीतियां अपनायी जाती है यह दृष्टिकोण संपूर्ण विश्व को एक एकाकी बाजार मानता है। इसमें वैश्विक कंपनी वैश्विक बाजार के लिए प्रमापित उत्पाद का विपणन करती है कंपनी अपने उत्पाद की एक समान छवि प्रस्तुत करते बाजार के लिए वैश्विक रणनीति हुए विश्वव्यापी प्रमापित उत्पाद तैयार करती है जैसे कोकाकोला, पेप्सी सॉफ्ट ड्रिंक्स प्रमापित उत्पाद बनाती है, बस थोड़ा सा मिठास के स्तर में अंतर किया जाता है परंतु समय के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा के बढ़ने से वैश्विक कंपनी भेदभावपूर्ण उत्पाद रणनीति को अपना लेती है।
अर्थात वैश्विक कंपनी विभिन्न देशों के विपणन वातावरण में भिन्नता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न विपणन रणनीतियां अपनाती है। इसमें विभिन्न देशों की स्थानीय आवश्कताओं, रूचि, पसंद, फैशन में अंतर को ध्यान में रखते हुए विभिन्न देशों के अनुरूप उत्पाद बनाए जाते हैं अर्थात अनुरूप उत्पाद रणनीति अपनाई जाती है जैसे मैक्डोनल्ड जो एक अमेरिकन कंपनी है, भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न तरह की खाद्य आदतों संस्कृति, स्वाद को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न तरह के व्यंजन बनाती है यूरोपियन देशों में यह मुख्य तौर पर मांसाहारी व्यंजन बेचती है, जबकि एशियन देशों में मुख्य तौर पर शाकाहारी व्यंजन बेचती है। प्रमापरूपता के पक्ष में तर्क या एकरूपता होती है।
वैश्विक बाजार में मंदी छाई है, भारत में नौकरी करने वालों के बाजार के लिए वैश्विक रणनीति ‘अच्छे दिन’
वैश्विक बाज़ार के हालात इस समय कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। स्वयं को कथित महाशक्ति मानने वाले देश इस वक्त मंदी के सामने घुटने टेकते नजर आ रहे हैं। कोरोना महामारी और उसके बाद रूस-यूक्रेन के कारण वैश्विक बाज़ार को काफी आघात पहुंचा है। अमेरिका, चीन जैसे बड़े बड़े देशों की भी हालत खराब होती चली जा रही है। इस बीच ऐसी खबरें लगातार सामने आ रही है कि मंदी की चपेट में आने के कारण कई कंपनियां बड़ी संख्या में लोगों से रोजगार छिन रही है।
इन सबके बीच भारत ही ऐसा एकमात्र देश है जो सुकून की सांस ले रहा है। मंदी की वजह से पैदा हुए हालातों से भारत अब तक अछूता रहा है। जहां एक तरफ दूसरे देश वैश्विक मंदी के चलते अपने कर्मचारियों को नौकरियों से निकाल रहे हैं, तो वहीं भारतीय कंपनियां ऊंचाइयां हासिल करने के प्रयास में जुटी हुई है। केवल इतना तो नहीं भारत में कर्मचारियों का वेतन तक बढ़ाने का विचार किया जा रहा है और वो भी डबल डिजिट में।
सैलरी में होगी बड़ी वृद्धि
दरअसल, अभी हाल ही में एक रिपोर्ट ऐसी सामने आई है, जो भारतीय कर्मचारियों के चेहरे पर मुस्कान ला सकती है। रिपोर्ट के अनुसार मुद्रास्फीति के बीच और कंपनियों की लाभप्रदता कम होने के बाद भी भारतीय कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि होने की संभावना है। कंपनियां अपने कर्मचारियों की सैलरी में 10.4 फीसदी की वृद्धि कर सकती हैं। अग्रणी वैश्विक पेशेवर सेवा फर्म एओएन पीएलसी के द्वारा भारत में नवीनतम वेतन वृद्धि सर्वेक्षण के अनुसार भारत में वर्ष 2023 में 10.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है। बात पिछले वर्ष की करें तो साल 2022 में अब तक 10.6 प्रतिशत ही वृद्धि हुई थी, जो इससे थोड़ी अधिक है।
देखा जाए तो वर्ष 2022 से दस साल पहले यानी 2012 में भारतीय उद्योग जगत में काम करने बाजार के लिए वैश्विक रणनीति वाले कर्मचारियों की सैलरी डबल डिजिट में बढ़ी थी। इस बार सर्वे में देश में 40 से अधिक उद्योगों की 1,300 कंपनियों का विश्लेषण किया गया। इस वर्ष कर्मचारियों की सैलरी में औसतन 10.6 फीसदी की वृद्धि के साथ भारतीय उद्योग जगत ने दुनिया के कई विकसित देशों की तुलना में अधिक वृद्धि की है। विश्लेषण मे यह बताया गया है साल 2022 की पहली छमाही में नौकरी छोड़ने वाले लोगों की संख्या 20.3 प्रतिशत थी, जो कि साल 2021 में दर्ज 21 प्रतिशत की तुलना में कम है। सर्वेक्षण में ये बात कही गयी है कि यह प्रवृत्ति अगले कुछ महीनों तक ऐसे ही रहने की उम्मीद है।
अलीबाबा ने 10 हजार लोगों को नौकरी से निकाला
चीन की अर्थव्यवस्था को ही देख लें तो साल 2022 की पहली तिमाही में वहां सकल घरेलू उत्पाद (GDP) केवल 0.4 प्रतिशत ही बढ़ी थी, जबकि जीडीपी विकास दर 5.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद की जा रही थी। स्टॉक के विभिन्न आर्थिक विशेषज्ञ, अरबपति, निवेशक और सरकार के अधिकारियों का ऐसा मानना है कि अमेरिकी की अर्थव्यवस्था भी अब गिर रही है। कथित तौर पर अप्रैल 2020 में अमेरिका ने लगभग 20.5 मिलियन नौकरियां खो दी थी। जब से वैश्विक मंदी की खबरें आई है तब से कई बड़ी-बड़ी कंपनियों में छंटनी की भी खबरे चर्चा का विषय बनाई हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की अलीबाबा ने एक साथ 10,000 कर्मचारियों को नौकरियों से निकाल दिया है।
मौजूदा समय में हर क्षेत्र में भारत का दबदबा देखने को मिल रहा है। बीते कुछ सालों में भारतीय आईटी क्षेत्र से काफी तरक्की हुई। भारतीय टेक कंपनियों और स्टार्टअप ने अपनी मजबूत प्रदर्शन किया है। विभिन्न तरह की सरकारी योजनाएं जैसे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत इसमें काफी सहयोग कर रही है। भारत एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। भारत के विकास में अपना योगदान देने के लिए टाटा समूह भी आगे आया है। टाटा समूह की योजना भारत में आईफोन का निर्माण करने की है।
वैश्विक बाजार बाजार के लिए वैश्विक रणनीति में सॉफ्टवेयर स्थानीयकरण का महत्व
स्थानीयकरण उस विकास प्रक्रिया को संदर्भित करता है जहां उत्पादों को विदेशी देशों की भाषा और संस्कृति के अनुसार विकसित किया जाता है। यह किसी भी कंपनी के लिए सबसे अधिक आयात सॉफ्टवेयर है जो वैश्विक बाजार में प्रवेश कर रहा है या विदेशी ग्राहकों के साथ संवाद करने का मौका मिला है। यह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सफल होने की कुंजी है। इसे मुख्य रणनीति के रूप में माना जाता है जब कोई कंपनी किसी विदेशी देश में एक नए बाजार में प्रवेश करना चाहती है।
लक्ष्य बाजार की जानकारी को वेबसाइटों के रूपांतरण में परिवर्तित करने से, सॉफ्टवेयर स्थानीयकरण सुनिश्चित करता है कि संगठन यह समझने में सक्षम है कि उपभोक्ता क्या चाहते हैं और तदनुसार सेवाओं के साथ उपभोक्ता की मदद करने में सक्षम हैं। कई कंपनियों ने सॉफ्टवेयर स्थानीयकरण के बिना वैश्विक बाजार में प्रवेश किया है, और सांस्कृतिक उदासीनता और ग्राहकों के उत्पाद से संबंधित नहीं होने के कारण उन्हें नुकसान हुआ है। इसलिए, स्थानीयकरण के साथ बाजार में प्रवेश करने वाली कंपनियां लक्षित वैश्विक बाजार में उत्पाद और कंपनी की वृद्धि का प्रदर्शन कर रही हैं। यूजर इंटरफेस बाजार में एक विश्वास और ग्राहक आधार बनाए रखने बाजार के लिए वैश्विक रणनीति में मदद करता है और देश में नए बाजार में और विस्तार करने में मदद करता है।
रणनीति की कमी और वैश्विक दबावों के चलते जनरल मोटर्स ने भारतीय बाजार से बाहर जाने का फैसला लिया
इसके अलावा भी कई समस्याएं थीं। इसके इंडियन बिजनस में लगातार उठापटक चलती रही। भारत में अपने 21 वर्ष के कारोबार में कंपनी ने नौ सीईओ बदले, एक सीईओ का कार्यकाल औसतन 2.5 साल रहा। मारुति ने 35 वर्ष के कारोबार में अभी तक केवल पांच सीईओ ही बदले। कंपनी के लिए नेतृत्व में स्थिरता एक बड़ी समस्या रही।
जनरल मोटर्स का कई देशों में कारोबार है। भारत कंपनी के साउथ-पसिफ़िक ऑफिस के क्षेत्र में आता है। यहां से भारत में कंपनी के कामकाज के कई आयामों को नियंत्रित किया जाता है। भारत के सीईओ को कंपनी की कई कमिटियों में शामिल होना पड़ता था और वह भारत में डीलर नेटवर्क के साथ कम समय बिताते थे। इससे स्पष्ट है कि भारत में कंपनी की प्रॉडक्ट स्ट्रैटिजी और मार्केटिंग में सामंजस्य की कमी रही। भारत में जीएम ओपेल ब्रैंड के ऑस्ट्रा और कोर्सा कारों के साथ आई थी। इन कारों ने भारत में मीडियम मार्केट बनाया था। 2003 में कंपनी सेवरले ब्रैंड के साथ आई और 2012 के बाद वह चीनी मॉडल भारत में ले आई।