एक दिन के व्यापारी की मूल बातें

एक दिन के व्यापारी की मूल बातें
गुजरात, जहां दिसंबर के पहले सप्ताह में चुनाव होने वाले हैं, को एक समृद्ध और विकसित राज्य माना जाता है। सभी राज्यों के मुक़ाबले यह दूसरा उच्च आर्थिक उत्पादन (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) वाला राज्य है, जो महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर आता है। यह स्थिति मुख्य रूप से मजबूत औद्योगिक आधार की वजह से है, जिसमें जीएसडीपी का लगभग 43 प्रतिशत सेकंडरी क्षेत्र से पैदा होता है। इसके कारण भी इसके इतिहास में ही निहित हैं - प्रारंभिक औद्योगीकरण, पर्याप्त कृषि उत्पादन, इसका भूगोल, और मजबूत व्यापारिक लोकाचार, आदि इसमें शामिल हैं। यह सब 1990 के दशक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्य में सत्ता में आने से पहले मौजूद था।
लेकिन 1995 के बाद से भाजपा के लगभग बेरोकटोक शासन की जो विशेषता रही है, वह यह है कि राज्य में श्रमिक वर्ग पूरी तरह से हाशिए पर चले गए हैं। सभी तरह के श्रमिक – फिर चाहे कृषि या ग्रामीण गैर-कृषि श्रमिक हों या फिर औद्योगिक या शहरी अनौपचारिक श्रमिक हों - को उनके श्रम के बदले कम मजदूरी मिल रही है, जो हक़ीक़त में आर्थिक उत्पादन पैदा करते हैं और जिन पर हर कोई गर्व करता है। जबकि, कम वेतन वाली व्यवस्था भूमि और औद्योगिक उत्पादक क्षमता वाले मालिकों के मुनाफे की एक स्थिर उच्च दर सुनिश्चित करती है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हर उद्योगपति अपने संयंत्र लगाने के लिए गुजरात जाना चाहता है।
जब एक दिन के व्यापारी की मूल बातें महान 'गुजरात मॉडल' की बात की जाती है, वह भी खासकर चुनावों के दौरान, तो गुजरात के मेहनतकश लोगों के कम वेतन, कम हकदारी वाले जीवन की चर्चा आमतौर पर कभी नहीं की जाती है।
यहां सबसे कम औद्योगिक मजदूरी है
नीचे दिया गया चार्ट विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित और उपलब्ध ऑनलाइन नवीनतम न्यूनतम मजदूरी दरों को दर्शाता है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित केंद्रीय क्षेत्र (केंद्र सरकार द्वारा संचालित उद्यमों में श्रमिकों की मजदूरी) की मजदूरी दर भी शामिल है।
सबसे खास बात यह है कि दो-तीन राज्यों को छोड़कर, अन्य सभी राज्यों में आश्चर्यजनक रूप से कम न्यूनतम मजदूरी की घोषणा की गई है, जो लगभग 10,000 रुपये प्रति माह से लेकर लगभग 7,000 रुपये तक का कम वेतन है। गुजरात इन राज्यों में से एक है, जो इस श्रृंखला में काफी नीचे है। इसमें प्रति माह केवल 9,438 रुपये का न्यूनतम वेतन है।
यह भी याद रखने की जरूरत है कि ये अधिसूचित मजदूरी हैं न कि भुगतान की जाने वाली मजदूरी है। हक़ीक़त यह है कि सभी राज्यों में, घोषित की गई न्यूनतम मजदूरी अधिकांश श्रमिकों को नहीं मिलती हैं। जर्जर प्रवर्तन मशीनरी, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और आक्रामक नियोक्ताओं का यह संयोजन यह सुनिश्चित करता है कि श्रमिकों को बहुत कम वेतन पर काम दिया जाए। लगातार बेरोजगारी भी मजदूरी को कम रखने में मदद कर रही है - ऐसे सैकड़ों हताश मजदूर हैं यदि मौका दिया जाए तो वे कम मजदूरी पर काम करने को तैयार हो जाएंगे।
गुजरात को जो बात खास बनाती है वह यह है कि यह न तो गरीब राज्य और न ही कम औद्योगीकृत राज्य है। फिर भी मजदूरी कम है। बड़े उद्योगों पर नजर डालें तो स्थिति कुछ ऐसी ही नजर आती है। सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा किए गए उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) ने 2019-20 के अपने नवीनतम परिणामों में खुलासा किया है कि गुजरात में प्रति कर्मचारी वेतन 14,858 रुपये प्रति माह था, जो अखिल भारतीय औसत 14,608 रुपये से थोड़ा ही अधिक है, और झारखंड (20,602 रुपये), ओडिशा (19,720 रुपये), छत्तीसगढ़ (18,033 रुपये) जैसे कई तथाकथित पिछड़े राज्यों से गुजरात बहुत नीचे है और निश्चित रूप से, यह महाराष्ट्र (18,472 रुपये), कर्नाटक (17,663 रुपये) आंध्र प्रदेश (15,755 रुपये) और केरल (15,726 रुपये) से भी पीछे हैं। एएसआई उन फ़ैक्टरियों को कवर करता है जो फ़ैक्टरी अधिनियम के अंतर्गत आती हैं, जो मुख्य रूप से बड़े कारखाने हैं।
कृषि एक दिन के व्यापारी की मूल बातें श्रमिकों की दयनीय स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात में 68.39 लाख भूमिहीन खेतिहर मजदूर थे। तब से बाद के दशक में उनकी संख्या में जरूर वृद्धि हुई होगी। इनके अलावा, अनुमानित पाँच लाख प्रवासी श्रमिक, 15 लाख निर्माण श्रमिक और अन्य ग्रामीण गैर-कृषि श्रमिक हैं। उनमें से अधिकांश के पास न्यूनतम वेतन सुरक्षा नहीं है। श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित कृषि श्रमिक मजदूरी दरों से उन्हें किस प्रकार की मजदूरी आय प्राप्त होती है, इसका एक संकेत मिलता है।
नवीनतम आंकड़े सितंबर 2022, के लिए उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक पुरुषों और महिला कृषि श्रमिकों के लिए दैनिक मजदूरी दरों को नीचे दो चार्ट में संकलित किया गया है। गुजरात स्पष्ट रूप से एक खराब और अस्वीकार्य स्थिति में है, जो 18 प्रमुख राज्यों में पुरुष श्रमिकों के लिए दूसरे सबसे निचले स्थान पर आता है। गुजरात में पुरुष श्रमिकों के लिए दैनिक मजदूरी केवल 244 रुपये प्रति दिन है। जबकि, भारत की औसत मजदूरी 344 रुपये प्रति दिन है। गुजरात उससे एक तिहाई कम है।
आमतौर पर राज्यों में महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन से कम होता है। गुजरात में अंतर बहुत अधिक नहीं है क्योंकि मजदूरी पहले से ही निचले स्तर पर है। गुजरात में महिला कृषि श्रमिकों को प्रति दिन मात्र 243 रुपये का भुगतान किया जाता है।
फिर यह नमूना सर्वेक्षण के माध्यम से एकत्र की गई औसत मजदूरी हैं। वास्तविक मजदूरी, जैसा कि विभिन्न अन्य स्रोतों द्वारा बताया गया हैअकसरक्सर कम होती है, या मजदूरी कृषि अपशिष्ट से ईंधन के लिए अनाज़ के अपशिष्ट के भुगतान से बंधी होती है।
ग्रामीण नौकरी गारंटी कार्यक्रम (मनरेगा) के श्रमिकों को दी गई औसत मजदूरी इस बात की पुष्टि करती है कि गुजरात में मजदूरी ऐसी ही है। चालू वर्ष में, मनरेगा श्रमिकों के लिए औसत मजदूरी 213.88 रुपये प्रति दिन थी। पिछले साल यह रेट 205.66 रुपए प्रतिदिन था।
मेहनतकश लोग नई राह की तलाश में
सत्तारूढ़ भाजपा मजदूर वर्ग की इस दयनीय स्थिति की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है, जिसे वह पूरे देश के लिए एक 'मॉडल' के रूप में बड़े गर्व से पेश करती है। राज्य सरकार न केवल उच्च मजदूरी को अधिसूचित कर सकती है बल्कि यह सुनिश्चित कर सकती है कि इससे लागू करने के लिए एक बेहतरीन प्रवर्तन तंत्र हो जो सुनिश्चित कर सके कि घोषित वेतन दरें मजदूरों को मिले। बड़े उद्योगपतियों को सरकार की तरफ से पूरा समर्थन देते हुए - और इसके विपरीत भी - यह उन्हें वेतन बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
लेकिन, हक़ीक़त में, गुजरात सरकार श्रमिकों को बेहतर वेतन या बेहतर काम की स्थिति की उनकी मांग को हतोत्साहित करती रही है। मजदूरों के प्रति इस किस्म की कठिन शर्तों को सरकार द्वारा 'व्यापार करने में आसानी' में योगदान के रूप में सराहना की जाती है।
आने वाले विधानसभा चुनावों में मेहनतकश जनता गुजरात में वर्षों से चली आ रही शोषण की इस कठोर व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रही है। क्या यह खोज सफल होगी, यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
केरल में गौतम अडाणी के विझिंजम पोर्ट का विरोध जारी
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में गौतम अडाणी के निर्माणाधीन विझिंजम मेगा पोर्ट की मुख्य सड़कों पर मछुआरे लंबे समय से डटे हुए हैं. यहां ईसाई मछुआरा समुदाय द्वारा बनाए गए शेल्टर की वजह से मुख्य प्रवेश द्वार ब्लॉक हो गया है. इस वजह से पोर्ट का निर्माण कार्य रुका हुआ है. अगस्त महीने से यहां मछुआरे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यह शेल्टर लोहे की छत से बना है और करीब 1,200 वर्ग फीट में फैला हुआ है. देश के पहले कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह के निर्माण कार्य के बीच अगस्त के बाद से यह बाधा बनकर खड़ी है.
प्रदर्शनकारियों ने यहां बैनर लगाए हैं और विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले लोगों के बैठने के लिए 100 के करीब कुर्सियां रखी गईं हैं. यहां बैनर भी लगाए हैं जिनपर लिखा है, "अनिश्चित दिन और रात का विरोध." हालांकि किसी एक दिन धरना में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों की संख्या आमतौर पर बहुत कम ही होती है.
डीडब्ल्यू की टीम ने इस इलाके का दौरा किया था और वहां प्रदर्शन कर रहे मछुआरों से बात की. 49 साल के जैक्सन थुम्बक्करन हर रोज अपने परिवार के साथ प्रदर्शन में शामिल होते हैं.
जैक्सन ने डीडब्ल्यू से कहा, "मेरा घर समुद्र के किनारे पर स्थित है और पिछले साल हमने बोरी में रेत भरकर किसी तरह से अपना घर बचाया था. अब, अगर इस बंदरगाह के कारण पानी बढ़ता है तो मैं अपना घर और परिवार खो दूंगा. इसलिए हम यहां विरोध कर रहे हैं."
सड़क की दूसरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों और दक्षिणपंथी समूहों सहित बंदरगाह के समर्थकों ने अपने खुद के टेंट लगाए हुए हैं. बीजेपी शुरू से ही अडाणी ग्रुप की इस परियोजना के समर्थन में है.
जब यहां प्रदर्शनकारियों की संख्या कम होती है, तब भी स्थिति की सावधानीपूर्वक निगरानी के लिए 300 पुलिसकर्मी हर वक्त मौजूद रहते हैं. केरल हाईकोर्ट द्वारा बार-बार आदेश देने के बावजूद कि निर्माण बिना रुके आगे बढ़ना चाहिए, पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रही है, इस डर से कि ऐसा करने से बंदरगाह पर सामाजिक और धार्मिक तनाव की आग भड़क जाएगी.
दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स अडानी के लिए 7,500 करोड़ एक दिन के व्यापारी की मूल बातें रुपये की लागत वाली यह परियोजना इस विरोध प्रदर्शन के चलते लंबे समय से विवादों में है, जिसका कोई साफ और आसान समाधान नहीं मिल पाया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बंदरगाह के विरोधियों और उसके समर्थकों के इंटरव्यू लिए हैं. अडाणी समूह की इस परियोजना का विरोध का नेतृत्व कैथोलिक पादरी और स्थानीय लोग कर रहे हैं. विरोध करने वाले लोगों का आरोप है कि दिसंबर 2015 से बंदरगाह के निर्माण के परिणामस्वरूप तट का महत्वपूर्ण क्षरण हुआ है और आगे का निर्माण मछली पकड़ने वाले समुदाय की आजीविका पर असर डाल सकता है. मछुआरे समुदाय का कहना एक दिन के व्यापारी की मूल बातें है कि यहां उनकी संख्या करीब 56,000 है. वे चाहते हैं कि सरकार समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर बंदरगाह के निर्माण से होने वाले प्रभाव के अध्ययन का आदेश दे.
अदाणी समूह ने एक बयान में कहा कि यह परियोजना सभी कानूनों का पालन करती है और हाल के वर्षों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और अन्य संस्थानों द्वारा किए गए कई अध्ययनों ने तटरेखा क्षरण के लिए परियोजना की जिम्मेदारी से संबंधित आरोपों को खारिज कर दिया है.
विझिंजम पोर्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश झा ने डीडब्ल्यू से कहा कि यह बंदरगाह राज्य और देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है. झा के मुताबिक, "अब यहां सभी रोजगार, स्थानीय रोजगार का एक बड़ा हिस्सा मछुआरा समुदाय के पास जाएगा, इसलिए वे रोजगार के मामले में और आर्थिक लाभ के मामले में अहम लाभार्थी होंगे."
केरल सरकार जो प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत कर रही है उसका तर्क है कि चक्रवात और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण क्षरण हुआ है.
एक दिन के व्यापारी की मूल बातें
मूलांक 1 के जातकों में गजब की नेतृत्व क्षमता होती है। ये कुछ जिद्दी व अहंकारी भी होते हैं। ये अति महत्वाकांक्षी, सुंदर और अपने कार्य में दक्ष और सही फैसले लेने वाले होते हैं। ये कर्म प्रधान, बात के धनी और अडिग माने जाते हैं। ये लोग किसी के अधीन रहकर काम करना पसंद नहीं करते हैं। ये निडर, साहसी और स्वाभिमानी होते हैं। ये जीवन में कठिन परिस्थितयों से घबराते नहीं है। ये कुछ काम बिना स्वार्थ के भी करते हैं, इनके इसी गुण के कारण जल्दी सफलता हासिल होती है। कैसी होती है आर्थिक स्थिति मूलांक 1 वालों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। इन्हें कभी धन का अभाव नहीं होता है। जब भी इन्हें पैसों की जरूरत होती है ये अपने रिश्तेदारों या मित्रों से जमा कर लेते एक दिन के व्यापारी की मूल बातें हैं। ये शान-शौकत में काफी पैसे खर्च करते हैं।
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आदित्यपुर : नगर निगम क्षेत्र में होर्डिंग्स पर अवैध कब्जे को लेकर टकराव की स्थिति
नगर निगम को टैक्स देकर लगाते हैं होर्डिंग, दबंग लोग जबरन कर ले रहे हैं कब्जा.
नगर निगम क्षेत्र में लगे होर्डिंग की तस्वीर.
Adityaour (Sanjeev Mehta) : आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में शिक्षित बेरोजगार युवकों द्वारा नगर निगम क्षेत्र में निगम कार्यालय को विधिवत टैक्स देकर होर्डिंग्स लगाई गई है. लेकिन वे इन एक दिन के व्यापारी की मूल बातें दिनों इस बात से परेशान हैं कि उनके होर्डिंग को दबंग लोग अवैध कब्जा कर ले रहे हैं, और उन्हें भय दिखाकर चुप करा दिया जा रहा है. जबकि नगर निगम को इससे लाखों का टैक्स हर महीने प्राप्त होता है. ये शिक्षित बेरोजगार युवकों द्वारा जब नगर निगम प्रशासन से इस बात की शिकायत की जा रही है तो उन्हें यह कहकर टरका दिया जा रहा है कि निगम प्रशासन इस मामले में कुछ एक दिन के व्यापारी की मूल बातें नहीं कर सकता यह आपका निजी व्यवसाय है. ऐसे में इन बेरोजगार युवकों के पास कोई रास्ता नहीं बचता है.
बेरोजगार युवकों परेशान किया जा रहा है
नगर निगम क्षेत्र में लगे होर्डिंग की तस्वीर
ऐसे होर्डिंग्स का व्यवसाय करने वाले युवक कहते हैं कि अगर इस बात की शिकायत थाना में भी करते हैं तो भी उन्हें राहत नहीं मिलती है. रविवार को एक पीड़ित युवक आल इंडिया तृण मूल कांग्रेस के युवा जिलाध्यक्ष के पास इस बात की शिकायत लेकर पहुंचा, उसने बताया कि उसके होर्डिंग पर एक कंपनी का होर्डिंग लगा था जिसपर आधी रात को आदित्यपुर के एक दबंग जनप्रतिनिधि ने जबरन बगैर किसी सूचना के अपना होर्डिंग चढ़ा दिया, पूछने पर उन्हें धमकी मिला कि 10 दिनों तक उसे छूना भी मत वरना अंजाम बुरा होगा. जानकारी देते हुए युवा टीएमसी जिलाध्यक्ष बाबू तांती ने कहा कि आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में शिक्षित बेरोजगार युवकों को इस तरह से परेशान किया जा रहा है.
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होर्डिंग लगा कर जीविका चला रहे हैं
बेरोजगार युवक होर्डिंग बोर्ड लगवा कर अपना और अपने परिवार का जीविका चला रहे हैं. परंतु विभिन्न पार्टी के नेताओं जनप्रतिनिधियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा उनकी होर्डिंग बोर्ड पर अवैध कब्जा जमा लिया गया है. ऐसे में उनके रखे होर्डिंग के ग्राहक भी भाग खड़े हो रहे हैं. ऐसे में उन लोगों का परिवार कैसे चलेगा. आनेवाले दिनों में नगर निकाय के चुनाव होने हैं अगर यही स्थिति रही तो मामला खून खराबा तक पहुंच सकता है. उन्होंने कहा कि स्थिति अब यहां तक बन आई है कि इसके वजह से टकराव, मारपीट, और खून खराबा तक की नौबत आ पड़ी है. अगर निगम प्रशासन होर्डिंग्स धारकों को संरक्षण नहीं देती है तो बात बिगड़ भी सकती है.