आरंभिक मार्जिन

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आरंभिक मार्जिन
आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) बाजार में तेजी की शुरुआत से ब्रोकरेज हाउसों के दिन भी बदलने लगे हैं।
ब्रोकरेज हाउस मार्जिन फंडिंग के जरिये इस प्रक्रिया से पैसे बनाते हैं। हाल ही में आए महिंद्रा हॉलिडेज और अदाणी पावर के आईपीओ ने इनके लिए उम्मीद जगाई है और इसके और तेजी पकड़ने की उम्मीद है।
सूत्रों का कहना है कि 7 अगस्त को आने वाले सरकारी कंपनी एनएचपीसी के आईपीओ पर ब्रोकरेज हाउस मार्जिन फंडिंग का बड़ा दांव आरंभिक मार्जिन खेलने जा रहे हैं। बताया जा रहा है उच्च आय वर्ग (हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स, एचएनआई) से 14 दिन की अवधि के लिए मार्जिन फंडिंग 12 से 13 फीसदी सालाना की दर पर हो सकती है।
ब्रोकरेज हाउस शेयर खरीदने के लिए अपने ग्राहक को जो वित्त मुहैया कराते हैं इसी प्रक्रिया को ही फंडिंग मार्जिन कहते हैं। लार्सन ऐंड टुब्रो की गैर बैकिंग वित्तीय कंपनी एलऐंटी फाइनैंस, एडलवाइस कैपिटल, कोटक सिक्योरिटीज और एसएमसी ग्लोबल मार्जिन फंडिंग कारोबार के बड़े खिलाड़ी हैं। हाल ही में आए दो कंपनियों के आईपीओ को बाजार ने खुले दिल से गले लगाया।
मुंबई की एडलवाइस कैपिटल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजेश शाह कहते हैं, 'अदाणी पावर के आईपीओ की मार्जिन फंडिंग 200 करोड़ रुपये रही। एनएचपीसी के आने वाले आईपीओ के लिए एचएनआई के लिए 1,000 करोड़ रुपये के आसपास रह सकती है।'
जब सेंसेक्स सरपट दौड़ रहा था तब एनबीएफसी और ब्रोकरेज हाउस आईपीओ सब्सक्राइब करने के बदले 18 से 25 फीसदी का ब्याज वसूल कर रहे थे। लेकिन रिलायंस एनर्जी के आईपीओ की खराब लिस्टिंग से माहौल खराब हो गया। जहां तक एनएचपीसी के आईपीओ की बात है तो इसको सब्सक्राइब करने वाले एचएनआई को शुरुआत में केवल 5 फीसदी राशि ही जमा करानी होगी।
बाकी का इंतजाम ब्रोकरेज हाउस कर देंगे। लेकिन इसकी शर्त यही है कि कम से कम 1 करोड़ रुपये का निवेश करने वाले एचएनआई को ही ब्रोकरेज हाउस ये सहूलियत मुहैया कराएंगे। जानकारों का कहना है कि 50 से 100 करोड़ रुपये के बीच की खरीद करने वाले क्वालिफाइड संस्थागत खरीदारों को भी कुछ ब्रोकरेज हाउस फंडिंग की सुविधा देने को तैयार हैं।
सेबी के नए पीक मार्जिन नोम्र्स इक्विटी की तुलना में कमोडिटीज़ के ट्रेडिंग को अधिक प्रभावित किया है
सेबी द्वारा मार्जिन के नियमों में बदलाव ने पिछल कुछ महीनों में ट्रेडिंग वॉल्यूम को प्रभावित किया है। लेकिन यह बदलाव से इक्विटी की तुलना में कमोडिटीज़ के ट्रेडिंग वॉल्यूम को अधिक प्रभावित किया है।
आइये पहले यह जान लेते हैं कि यह मार्जिन क्या होता है। मार्जिनए एक स्पेसिफीक अमाउन्ट होता है, जोकि ट्रेडर्स को ट्रेड एक्ज़िक्यूट करने से पहले अपने ब्रोकर को देना होता हैए यह अमाउन्ट टोटल टर्नओवर वेल्यू का एक पार्ट ही होता है। मार्जिन अकाउंट में होगा तभी ही ट्रेडर अपना ट्रेड एक्जिक्यूट कर पायेगा और यह अमाउन्ट अपफ्रंट लिया जाता है।
अब सवाल यह होता है कि यह मार्जिन लिया क्यूं जाता है। कोई भी ट्रांजैक्शन हो, वो कम से कम दो पार्टी के बीच होता है। तो ब्रोकर के पर्सपेक्टीव से काउन्टरपार्टी के जोखिम को कम करने के लिए मार्जिन अमाउन्ट लिया जाता है। ब्रोकर्स अपने नए ग्राहकों को लूभावने के लिए इंट्रा-डे में ट्रेडर्स को लिमिट ज्यादा दे देते थेए वो ऑनऊर करते थे हाई अमाउन्ट ऑफ लिवरेज, जिससे ब्रोकर का जोखिम बढ़ जाता था और ट्रेडर्स भी अपनी कैपेसिटी से ज्यादा का लिवरेज यूज़ करते हुए बड़े ट्रेड करते थे। जिससे ट्रेडर्स का भी जोखिम बढ़ जाता था। तो ब्रोकर और ट्रेडर्स के जोखिम को कम करने के लिए सेबीने नया पीक मार्जिन रूल्स का अमल करना शुरू कर दिया है।
आइए अब जानते हैं कि कितने प्रकार के मार्जिन होते हैं :
1.ङ्कड्डक्र (वार) यानि की वेल्यू एट रिस्क: एसेट क्लास में कुछ दिनों की भाव घटबढ़ को ध्यान में रखकर तय किया जाता है।
2. एक्स्ट्रीम लॉस मार्जिन: एक्स्ट्रीम स्थिति में जो लॉस हो सकता है तो उसे कवर करने के लिए यह मार्जिन लिया जाता है।
3. आरंभिक मार्जिन: एफएंडओ सेगमेंट में वायदा और ऑप्शंस में लॉस को कवर करने के लिए उपयोग किया जाता है। आरंभिक मार्जिन स्पेन और एक्सपोजऱ मार्जिन को एड करके बनता है।
4. स्पेन मार्जिन: जो मिनिमम मार्जिन है जोकि एफएंडओ में ट्रेड करने से पहले अकाउंट में होना ही चाहिए। यह मार्जिन एसेट प्राइस के रिस्क और वॉलेटिलिटी के आधार पर केल्क्यूलेट किया जाता है।
5. एक्सपोजऱ मार्जिन: यह मार्जिन, एक एडहोक मार्जिन होता है, जो केल्यूलेट होता है कि कितना एक्सपोजऱ एक निवेशक ने लिया हुआ है और मार्क-टू-मार्केट नुकसान को मैनेज करने के लिए होता है।
अब एक नजऱ सेबी के नए पीक मार्जिन नोम्र्स पर ड़ाल लेते हैं। 1 दिसंबर 2020 से पहले ब्रोकर्स को दिन के आखिर में एक्सचेंज को मार्जिन्स के बारे में अपडेट करना होता था, जिसे ब्रोकर को दिन में अपने हिसाब से इंट्रा-डे मार्जिन्स तय कर लेने का मौका मिल जाता था। ट्रेडर्स को काफी लिवरेज मिल जाता था और कम अमाउंट में ज्यादा बड़ी पोज़िशन ले सकते थे इसे ब्रोकर्स की भी ब्रोकरेज भी बढ़ जाती थी और ट्रेडर्स का रिस्क रिटर्न ट्रेडओवर भी बढ़ जाता था।
लेकिन अब न्यू रूल्स के मुताबिक क्लियरिंग कॉर्पोरेशंस ब्रोकर के इंट्रा-डे पोज़िशन के अकाउन्ट का रेन्डमली चार बार स्नैप शॉट लेंगे और चारो बार में जो भी पीक या हाइएस्ट अमाउन्ट मार्जिन अकाउंट में होगा वो कन्सीडर किया जाएगा। अब अगर मार्जिन अमाउन्ट कम्प्लायन्स रिक्वायर्मेंट से कम दिख जाता है तो पैनल्टी लगेगी।
यह पीक मार्जिन नए रूल्स चार चरण में लागू होना है। जिसका पहला चरण 1 दिसंबर, 2020 को लागू किया गया था जिसमें पीक मार्जिन की आवश्यक्ता का 25 प्रतिशत मार्जिन को थू्र आउट मैंटेंन करना जरूरी कर दिया गया था। दूसरा चरण 1 मार्च, 2021 से लागू हुआ है। यहां आवश्यक मार्जिन का न्यूनतम 50 प्रतिशत रखना जरूरी है। तीसरा चरण 1 जून 2021 से लागू होगाए जहाँ पर न्यूनतम मार्जिन आवश्यक्ता का 75 पर्संट रखना जरूरी हो जाएगा और चौथा चरण 1 सितंबरए 2021 से शुरू होगाए यहां पर 100 पर्संट मार्जिन ब्रोकर्स को अपने अकाउन्ट में मैंटेन करना होगा।
इस नए मार्जिन नियमों लागू होने से इक्विटी और कमोडिटी के वॉल्यूम्स में इसका प्रभाव देखने मिलना शुरू हो गया है। लेकिन इक्विटी की तुलना में कमोडिटी के वॉल्यूम पर इसका अधिक प्रभाव देखने मिला है। एनएसई का ऑप्शंस में मजबूत वृद्धि के साथ डेरिवेटिव्स में औसत दैनिक ट्रेडिंग वॉल्यूम जो दिसंबर में रु.30.6 लाख करोड़ का था, वो ऊछलकर मार्च में रु. 44.4 लाख करोड़ का हुआ हैए जबकि एमसीएक्स का औसत दैनिक टर्नओवर मार्च में मन्थ-ऑन-मन्थ आधार पर 24 प्रतिशत की गिरावट के साथ रु.36,800 करोड़ से घटकर रु.27,800 करोड़ पर पहुंच गया है।
एमसीएक्स के कमोडिटी कनेक्ट के अप्रैल के न्यूज़लेटर में दर्शाए गए आंकड़ों के मुताबिक कमोडिटी वायदा सेगमेंट में सोना का औसत दैनिक टर्नओवर जो मार्च-2020 में रु.11]196 करोड़ का था वो घटकर मार्चं-2021 में रु.5]969 करोड़ का और वॉल्यूम की दृष्टि से इसी अवधी में 27 टन सोने का वॉल्यूम घटकर 13 टन का हो गया है। जबकि चांदी की बात करें तो चांदी में 1,354 टन का वॉल्यूम घटकर 876 टन हुआ है। इसी अवधी में बुलियन का औसत दैनिक टर्नओवर रु.16,728 करोड़ से घटकर रु.11,965 करोड़ तक पहुंच गया है। इसी तरह ऊर्जा सेगमेंट की बात करें तो कच्चे तेल में औसत दैनिक टर्नओवर जो रु.11,294 करोड का और वॉल्यूम 43,826 बैरल्स का था वो घटकर रु.4,556 करोड़ का और वॉल्यूम 10,061 बैरल्स का हो गया है। एनर्जी सेगमेंट का औसत दैनिक टर्नओवर इसी अवधी में रु.13,729 करोड़ का था वह घटकर रु.8,166 करोड़ का हुआ है। बेस मेटल्स की बात करते हैं तो निकल का वॉल्यूम इसी अवधी में 23,036 टन से घटकर 13,524 टन और जस्ता का वॉल्यूम 50,211 टन से घटकर 43,769 टन का हो गया है।
गैर-प्रतिभागी पॉलिसी पर जोर से एलआईसी बनेगी निजी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती: रिपोर्ट
मुंबई, 20 फरवरी (भाषा) आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने जा रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) आने वाले समय में अपने कारोबार को गैर-प्रतिभागी पॉलिसी की दिशा में मोड़कर निजी बीमा कंपनियों को तगड़ी चुनौती दे सकती है। स्विस ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस ने आईपीओ की मंजूरी के लिए बाजार नियामक सेबी के पास दायर आवेदन ब्योरे का विश्लेषण करने के बाद तैयार एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है। रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी की कारोबारी प्रमुखता में बदलाव का सबसे ज्यादा असर एसबीआई लाइफ, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, एचडीएफसी लाइफ और मैक्स लाइफ जैसी जीवन
नई दिल्ली: आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) लाने जा रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) आने वाले समय में अपने कारोबार को गैर-प्रतिभागी पॉलिसी (non-participating policies) की दिशा में मोड़कर निजी बीमा कंपनियों को तगड़ी चुनौती दे सकती है। स्विस ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) ने आईपीओ की मंजूरी के लिए बाजार नियामक सेबी के पास दायर आवेदन ब्योरे का विश्लेषण करने के बाद तैयार एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है।
इन कंपनियों पर होगा असर
रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी की कारोबारी प्रमुखता में बदलाव का सबसे ज्यादा असर एसबीआई लाइफ (SBI Life), आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल (ICICI Prudential), एचडीएफसी लाइफ (HDFC Life) और मैक्स लाइफ (HDFC Life) जैसी जीवन बीमा कंपनियों को उठाना पड़ेगा।
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बढ़ा एलआईसी का मार्जिन
रिपोर्ट के मुताबिक, एलआईसी पहले ही अपने मार्जिन को सात फीसद अंक बेहतर करते हुए 9.9 फीसद पर पहुंचा चुकी है। सरकार ने एलआईसी के अधिशेष एवं लाभ वितरण नियमों में बदलाव कर इसके मार्जिन में बढ़ोतरी का रास्ता आसान बनाया है। इसकी वजह से एलआईसी अपने कारोबार में भागीदार पॉलिसी के साथ गैर-प्रतिभागी पॉलिसी को भी 10 फीसद जगह दे सकेगी, जो फिलहाल महज चार फीसद है। इससे एलआईसी अपने मार्जिन को 20 फीसद तक भी लेकर जा सकती है।
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जानिए क्या मिलते हैं लाभ
क्रेडिट सुइस का यह अनुमान इस संकल्पना पर आधारित है कि एलआईसी का बीमा कारोबार पूरी तरह नए अधिशेष वितरण की तरफ स्थानांतरित हो जाएगा। प्रतिभागी बीमा पॉलिसी के तहत पॉलिसीधारकों को बोनस या लाभांश वितरण के रूप में गारंटीशुदा एवं बिना गारंटी वाले दोनों लाभ दिए जाते हैं। वहीं, गैर-प्रतिभागी पॉलिसी में पॉलिसीधारक को अमूमन गारंटीशुदा फायदे मिलते हैं, लेकिन उन्हें लाभ या लाभांश नहीं दिया जाता है।
गैर-प्रतिभागी पॉलिसी से सिर्फ 4% प्रीमियम
फिलहाल एलआईसी का अपने नए कारोबार प्रीमियम का सिर्फ चार फीसद ही गैर-प्रतिभागी पॉलिसी से आता है। इसके उलट निजी क्षेत्र की शीर्ष बीमा कंपनियों का यह अनुपात 20 से 45 फीसद तक है। रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी का गैर-प्रतिभागी पॉलिसी का मार्जिन अपने ही प्रतिभागी पॉलिसी कारोबार से अधिक है आरंभिक मार्जिन और निजी कंपनियां भी इस मामले में उससे पीछे हैं।
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जानिए कितनी है एलआईसी की बाजार हिस्सेदारी
देश में उदारीकरण की नीतियों की शुरुआत के 21 साल बाद भी एलआईसी का नई बीमा पॉलिसी कारोबार में बाजार हिस्सेदारी 66 फीसद है। इसकी बड़ी हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एलआईसी के बाद दूसरे स्थान पर मौजूद कंपनी से उसकी प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियां 16 गुना अधिक हैं।
LIC IPO लाने के साथ कारोबारी मॉडल में करने जा रही बड़ा बदलाव, दूसरी इंश्योरेंस कंपनियों की बढ़ेगी मुश्किल
रिपोर्ट के मुताबिक, एलआईसी पहले ही अपने मार्जिन को सात प्रतिशत अंक बेहतर करते हुए 9.9 प्रतिशत पर पहुंचा चुकी है। सरकार ने एलआईसी के अधिशेष एवं लाभ वितरण नियमों में बदलाव कर इसके मार्जिन में बढ़ोतरी का रास्ता आसान बनाया है।
Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: February 20, 2022 18:05 IST
Photo:FILE
Highlights
- स्विस ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस ने यह संभावना जताई
- मार्जिन बढ़ाने पर जीवन बीमा निगम का जोर
- नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी में एलआईसी की हिस्सेदारी बहुत कम
नई दिल्ली। आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने जा रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) आने वाले समय में अपने कारोबार को नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी की दिशा में मोड़कर निजी बीमा कंपनियों को तगड़ी चुनौती दे सकती है। स्विस ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस ने आईपीओ की मंजूरी के लिए बाजार नियामक सेबी के पास दायर आवेदन ब्योरे का विश्लेषण करने के बाद तैयार एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है। रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी की कारोबारी प्रमुखता में बदलाव का सबसे ज्यादा असर एसबीआई लाइफ, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, एचडीएफसी लाइफ और मैक्स लाइफ जैसी जीवन बीमा कंपनियों को उठाना पड़ेगा।
मार्जिन बढ़ाने पर जीवन बीमा निगम का जोर
रिपोर्ट के मुताबिक, एलआईसी पहले ही अपने मार्जिन को सात प्रतिशत अंक बेहतर करते हुए 9.9 प्रतिशत पर पहुंचा चुकी है। सरकार ने एलआईसी के अधिशेष एवं लाभ वितरण नियमों में बदलाव कर इसके मार्जिन में बढ़ोतरी का रास्ता आसान बनाया है। इसकी वजह से एलआईसी अपने कारोबार में भागीदार पॉलिसी के साथ गैर-प्रतिभागी पॉलिसी को भी 10 प्रतिशत जगह दे सकेगी जो फिलहाल महज चार प्रतिशत है। इससे एलआईसी अपने मार्जिन को 20 प्रतिशत तक भी लेकर जा सकती है। क्रेडिट सुइस का यह अनुमान इस संकल्पना पर आधारित है कि एलआईसी का बीमा कारोबार आरंभिक मार्जिन पूरी तरह नए अधिशेष वितरण की तरफ स्थानांतरित हो जाएगा। वर्तमान में नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी सौ फीसदी और प्रतिभागी पॉलिसी 10 प्रतिशत है। प्रतिभागी बीमा पॉलिसी के तहत पॉलिसीधारकों को बोनस या लाभांश वितरण के रूप में गारंटीशुदा एवं बिना गारंटी वाले दोनों लाभ दिए जाते हैं।
नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी की हिस्सेदारी बहुत कम
वहीं गैर-प्रतिभागी पॉलिसी में पॉलिसीधारक को अमूमन गारंटीशुदा फायदे मिलते हैं लेकिन उन्हें लाभ या लाभांश नहीं दिया जाता है। फिलहाल एलआईसी का अपने नए कारोबार प्रीमियम का सिर्फ चार प्रतिशत ही नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी से आता है। इसके उलट निजी क्षेत्र की शीर्ष बीमा कंपनियों का यह अनुपात 20 से 45 प्रतिशत तक है। रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी का गैर-प्रतिभागी पॉलिसी का मार्जिन अपने ही प्रतिभागी पॉलिसी कारोबार से अधिक है और निजी कंपनियां भी इस मामले में उससे पीछे हैं। देश में उदारीकरण की नीतियों की शुरुआत के 21 साल बाद भी एलआईसी का नई बीमा पॉलिसी कारोबार में बाजार हिस्सेदारी 66 प्रतिशत है। इसकी बड़ी हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एलआईसी के बाद दूसरे स्थान पर मौजूद कंपनी से उसकी प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियां 16 गुना अधिक है।