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वित्तीय प्रणाली के कार्य

वित्तीय प्रणाली के कार्य

वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (Financial Action Task Force -FATF)

आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने में विफल होने के लिए पाकिस्तान को जून 2018 में FATF द्वारा ग्रे सूची में रखा गया था। पेरिस स्थित FATF द्वारा मनी-लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण नियमों का पालन ण करने वाले देशों की सूची में शामिल होने से बचने के लिए यह FATF का विरोध कर रहा है। इस सूची में शामिल होने पर देशों की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँच सकता है।

इस कदम के प्रभाव:

  • पाकिस्तानी विश्लेषकों का कहना है कि FATF की ग्रे सूची में बने रहने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है, जिससे विदेशी निवेशकों और कंपनियों के लिए देश में व्यापार करना मुश्किल वित्तीय प्रणाली के कार्य हो जाएगा।
  • पाकिस्तान को निगरानी सूची में रखना प्रतिशोधात्मक होगा क्योंकि इससे आतंकवाद से लड़ने की उसकी क्षमता को चोट पहुंचेगी। इसके अलावा, ग्रे लिस्ट में वापस आने से पाकिस्तान की रिस्क प्रोफाइल बढ़ जाएगी और कुछ वित्तीय संस्थान पाकिस्तानी बैंकों और समकक्षों के साथ लेन-देन से सावधान हो जाएंगे।
  • FATF वॉचलिस्ट पर रखे जाने से कोई प्रत्यक्ष कानूनी प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन नियामकों और वित्तीय संस्थानों से अतिरिक्त जांच होती है जो व्यापार और निवेश को प्रभावित कर सकते हैं और लेनदेन की लागत में वृद्धि कर सकते हैं।

FATF के विषय में :

यह क्या है?

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) G7 की पहल पर 1989 में स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय है। यह एक “नीति-निर्माता निकाय” है जो विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय विधायी और नियामक सुधार लाने के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति उत्पन्न करने के लिए काम करता है। FATF सचिवालय पेरिस में OECD मुख्यालय में स्थित है।

उद्देश्य: FATF का उद्देश्य मानकों को निर्धारित करना और मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता हेतु अन्य संबंधित खतरों से निपटने के लिए कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।

कार्य: FATF, आवश्यक उपायों को लागू करने में अपने सदस्यों की प्रगति की निगरानी करता है, धन शोधन और आतंकवादी वित्तपोषण तकनीकों की समीक्षा करता है और विरोधी-उपाय करता है तथा विश्व स्तर पर उपयुक्त उपायों को अपनाने और लागू करने को बढ़ावा देता है। अन्य अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के सहयोग से, FATF अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को दुरुपयोग से बचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर की कमजोरियों की पहचान करने के लिए काम करता है।

ब्लैकलिस्ट और ग्रेलिस्ट क्या हैं?

FATF ,देशों की दो अलग-अलग सूचियों को बनाए रखता है: जिन लोगों की एएमएल / सीटीएफ व्यवस्था में कमी होती है, लेकिन वे इन खामियों को दूर करने के लिए एक कार्य योजना बनाते हैं, और वे जो ऐसा नहीं करते हैं। । पूर्व को आमतौर पर ग्रे सूची के रूप में जाना जाता है और बाद की सूची को ब्लैक लिस्ट के रूप में जाना जाता है।

एक बार जब किसी देश को ब्लैकलिस्ट किया जाता है, तो एफएटीएफ अन्य देशों से आह्वान करता है कि वह उचित देयता और विरोधी उपायों को लागू करे, देश के साथ व्यापार करने की लागत बढ़े और कुछ मामलों में यह पूरी तरह से अलग हो जाए। अब तक ब्लैकलिस्ट में केवल दो देश हैं – ईरान और उत्तर कोरिया – और ग्रे सूची में सात देश हैं, जिनमें पाकिस्तान, श्रीलंका, सीरिया और यमन शामिल हैं।

भारतीय वित्त प्रणाली UPSC NOTES IN HINDI

1. करेंसी नोटों का निर्गमन, 2. सरकारी बैंकर का काम, 3. बैंकों के बैंकों का काम, 4. विदेशी विनिमय को नियंत्रित करना, 5. साख नियंत्रण एवं 6. आकड़ो का संग्रहण और प्रकाशन।विकास संबंधी और प्रवर्तन कार्य के अधीन भारतीय रिज़र्व बैंक के निम्न कार्य किये जाते है–

1. मुद्रा बाजार पर प्रतिबंधात्मक नियंत्रण, 2. बचतो को बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से उत्पादन के लिए उपलब्ध कराना, 3. लोगों में बैंकिंग की आदत बढ़ाने के लिए प्रयास करना आदि।2. भारतीय पूंजी बाजार, मुद्रा बाजार से इस बात से भिन्न है कि मुद्रा बाजार अल्पावधि की वित्तीय व्यवस्था का बाजार है, जबकि पूंजी बाजार में मध्यम तथा दीर्धकाल के कोष का आदान–प्रदान किया जाता है।

भारतीय पूंजी बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जाता है– गिल्ड एंड बाजार और औधोगिक प्रतिभूति बाजार।

गिल्ड एंड बाजार में रिज़र्व बैंक के माध्यम से सरकारी और अर्द्व–सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय–विक्रय किया जाता है।

गिल्ड एंड बाजार में सरकारी और अर्द्व–सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य स्थिर रहता है।

औधोगिक प्रतिभूति बाजार में नये स्थापित होने वाले या पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयर और डिबेंचर का क्रय– विक्रय किया जाता है।

यदि पूंजी बाजार में निजी निगम क्षेत्र के नये अंशों और डिबेंचर, सरकारी कंपनी की प्राथमिक प्रतिभूति या नयी प्रतिभूतियॉं तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बांड्स के निर्गमों का क्रय–विक्रय किया जाता है, तो ऐसे बाजार को प्राथमिक पूंजी बाजार कहते है।

द्वितीयक पूंजी बाजार के अंतर्गत स्टॉक एक्सचेंज में होने वाले क्रय–विक्रय तथा गिल्ड एंड बाजार में होने वाले क्रय–विक्रय आते है ।भारतीय पूंजी बाजार में पूंजी के स्रोत है:

अंश पूंजी, ग्रहण पत्र, मर्चेंट बैंक, म्यूच्यूअल फण्ड, लीजिंग कंपनी, जोखिम पूंजी कंपनी आदि।

महत्वपूर्ण तथ्य एवं शब्दावली

भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। रिज़र्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है, इसका मुख्यालय मुंबई में है। भारतीय रिज़र्व बैंक का लेखा वर्ष 1 जुलाई से 30 जून है।

भारत में मौद्रिक निति एवं साख नीति रिज़र्व वित्तीय प्रणाली के कार्य बैंक द्वारा ही बनायी जाती है और लागू की जाती है।

भारत के विदेशी व्यापार से सम्बंधित आंकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एकत्रित तथा प्रकाशित होते है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक दर में कमी के कारण बाजार में तरलता में वृद्धि होती है।

सार्वजनिक बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक समूह सबसे बड़ा है जो कुल बैंक जमा का लगभग 29% का नियंत्रण किया जाता है।

राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण बैंक देश में कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली शीर्ष संस्था है।

भूमि विकास बैंक मूलतः दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराने वाली संस्था है भूमि विकास बैंक का आरम्भ भूमि बंधक बैंक के रूप में 1919 ई. में हुआ था।

भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना 1 फेब्रुअरी 1964 ई. में हुआ था।

माइक्रो फाइनेंस की बढ़ती हुई माँग एवं उपयोगिता को देखते हुए इसके विनियमित विकास बैंक के लिए राष्ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक को नियामक निकाय बनाने का सरकार का विचार है।

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण द्वारा बीमा कंपनी पर नियंत्रण किया जाता है और उनकी गतिविधियों पर नजर रखता है।मौद्रिक दरें:

1- सी.आर.आर.(नकद वित्तीय प्रणाली के कार्य आरक्षण अनुपात):- सी.आर.आर. वह धन है जो बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास गारंटी के रूप में रखना होता है.

2-बैंक दर :- जिस दर पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है बैंक दर कहलाती है.

3- वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.):- किसी आपात देनदारी को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक बैंक अपने प्रतिदिन कारोबार नकद सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में एक खास रकम रिजर्व बैंक के पास जमा कराते है जिस एस.एल.आर. कहते है..

4- रेपो रेट:- रेपो दर वह है जिस दर पर बैंकों को कम अवधि के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज मिलता है. रेपो रेट कम करने वित्तीय प्रणाली के कार्य से बैंको को कर्ज मिलना आसान हो जाता है.

5- रिवर्स रेपो रेट:- बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपना धन जमा करने के उपरांत जिस दर से ब्याज मिलता है वह रिवर्स रेपो रेट है..

लीड बैंक योजना :- जिलों कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से इस योजना का प्रारंभ १९६९ में किया गया. जिसके तहत प्रत्येक जिले में एक लीड बैंक होगा जो कि अन्य बैंकों कि सहायता के साथ साथ कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय संस्थाओ के बीच समन्वय स्थापित करेगा.

निष्पादन बजट:वित्तीय प्रणाली के कार्य - कार्यों के परिणामों या निष्पादन को आधार बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट है इसे कार्यपूर्ति बजट भी कहते है.

जीरोबेस बजट:- इस बजट में किसी विभाग या संगठन कि प्रस्तावित व्यय मांग के प्रत्येक मद को शुन्य मानते हुए पुनर्मूल्यांकन किया जाता है. भारत में इसे सर्वप्रथम “काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CISR)” में लागू किया गया और १९८७-८८ से सभी विभागों व मंत्रालयों में लागू हो गया.

आउटकम बजट :- इसके तहत प्रत्येक विभाग/ मंत्रालय के भौतिक लक्ष्यों को अल्प अवधि में निरीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए रखा जाता है.

जेंडर बजट :- इस बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का प्रावधान बजट में करती है.

प्रत्यक्ष कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और करदाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है. अर्थात जिसके ऊपर कर लगाया जा रहा है सीधे वही व्यक्ति भरता है.

अप्रत्यक्ष कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और भुगतानकर्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात जिस व्यक्ति/संस्था पर कर लगाया जाता है उसे किसी अन्य तरीके से प्राप्त किया जाता है.

राजस्व घाटा :- सरकार को प्राप्त कुल राजस्व वित्तीय प्रणाली के कार्य एवं सरकार द्वारा व्यय किये गए कुल राजस्व का अंतर ही राजस्व घाटा है.

राजकोषीय घाटा :- सरकार के लिए कुल प्राप्त राजस्व, अनुदान और गैर-पूंजीगत प्राप्तियों कि तुलना होने वाले कुल व्यय का अतिरेक है अर्थात आय(प्राप्तियों) के सन्दर्भ में व्यय कितना अधिक है.

बॉण्ड अथवा डिबेंचर :- ऐसे ऋण पत्र होते है जिन्हें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा कोई संसथान जारी करता है इन ऋण पत्रों पर एक निश्चित अवधि पर निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है.

प्रतिभूति :- वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयर, डिबेंचर, व अन्य ऋण पत्रों के लिए संयुन्क्त रूप से प्रतिभूति शब्द का प्रयोग किया जाता है. बैंकिग में भी ऋणों कि जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग वित्तीय प्रणाली के कार्य होता है.

कोरोना वायरस के बीच RBI ने तैयार किया ‘वार रूम’, जानें कैसे सुरक्षित है वित्तीय प्रणाली

rbi

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कोरोना वायरस के संक्रमण से देश की वित्तीय प्रणाली को सुरक्षित और चाक चौबंद रखने के लिये आपात स्तर पर एक ‘युद्ध-कक्ष’ तैयार किया है. इस कक्ष में रिजर्व बैंक के 90 महत्वपूर्ण कर्मचारी काम कर रहे हैं. एक अधिकारी के अनुसार, रिजर्व बैंक ने यह कक्ष ‘आकस्मिक कार्य योजना (बीसीपी)’ के तहत तैयार किया है. यह 19 मार्च से काम कर रहा है और 24 घंटे सक्रिय है.

अधिकारी ने बताया कि इस कक्ष में रिजर्व बैंक के 90 सबसे महत्वपूर्ण लोग काम कर रहे हैं. इनके अलावा बाहरी वेंडरों के 60 मुख्य कर्मी तथा अन्य सुविधाओं के करीब 70 लोग भी कक्ष के लिये काम कर रहे हैं. रिजर्व बैंक के कर्मचारियों के साथ ही देश की वित्तीय प्रणाली की सुरक्षा के लिये कक्ष का परिचालन इस तरह नियंत्रित है कि किसी भी समय एक साथ सिर्फ 45 कर्मचारी ही काम कर रहे हैं, शेष 45 को काम का बोझ बढ़ने की स्थिति के लिये सुरक्षित रखा जा रहा है.

अधिकारी ने पीटीआई -भाषा से कहा, ‘‘यह पहली बार है जब दुनिया के किसी भी केंद्रीय बैंक ने इस तरह की बीसीपी पर अमल किया है. यह हमारे इतिहास में भी पहली बार है क्योंकि दूसरे विश्वयुद्ध के समय भी हमने इस तरह की व्यवस्था नहीं की थी.’’ यह कक्ष जिन महत्वपूर्ण क्रियाकलापों को संभाल रहा है, उनमें ऋणपत्र प्रबंधन, भंडार प्रबंधन और मौद्रिक परिचालन शामिल है. बीसीपी के तहत रिजर्व बैंक के अन्य डेटा सेंटर स्ट्रक्चर्ड फाइनेंशियल मैसेजिंग सिस्टम (एसएफएमएस), रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (एनईएफटी) जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं संभाल रहे हैं.

इनके अलावा ई-कुबेर की भी व्यवस्था की गयी है, जिसके तहत केंद्र तथा राज्य सरकारों के लेन-देन और एक बैंक से दूसरे बैंक के लेन-देन आदि को संभाला जा रहा है. अधिकारी ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा मॉडल है जिसे हमारी वित्तीय प्रणाली में तथा संभवत: पूरी दुनिया में पहली बार अमल में लाने का प्रयास किया जा रहा है. सामान्य बीसीपी सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर की दिक्कतों, आग लगने तथा प्राकृतिक आपदाओं के लिये होता है. इस तरह की योजना किसी के पास नहीं है जैसी रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस महामारी के लिये तैयार की है.’’

सामान्यत: रिजर्व बैंक अरबों लेन-देन का प्रबंधन करता है और इसके केंद्रीय व 31 क्षेत्रीय कार्यालयों में करीब 14 हजार लोग काम करते हैं। जिन महत्वपूर्ण सेवाओं को कक्ष से संभाला जा रहा है, इनका प्रबंधन करीब 1,500 लोग मिलकर करते हैं. आरबीआई के कर्मचारी संगठन के सूत्रों के अनुसार, एक सप्ताह से अधिक समय से केंद्रीय कार्यालय में महज 10 प्रतिशत कर्मचारी ही आ रहे हैं.

जीएसटी पर राज्यों का रुख

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए कि गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) प्रणाली के भीतर मौजूद कमियों का तुरंत दुरुस्त किया जाना चाहिए, अन्यथा सभी राज्यों को पुरानी आर्थिक प्रणाली में लौटने पर विचार वित्तीय प्रणाली के कार्य करना चाहिए। लेकिन श्री ठाकरे को भी राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए यह विचार व्यक्त करना चाहिए था। महाराष्ट्र देश के भीतर पसंदीदा औद्योगिक और वाणिज्यिक राज्य और केंद्रीय राजस्व में इसकी हिस्सेदारी लगभग 35 प्रतिशत है, इसलिए इसे अक्सर सभी राज्यों द्वारा मुंबई से आवाज़ लाने के लिए एक प्राकृतिक कार्रवाई माना जाता है।

वास्तव में, जीएसटी टैरिफ प्रणाली की स्थापना के साथ, यह आशा की गई थी कि देश भर में विभिन्न उपभोक्ता और औद्योगिक वस्तुओं पर एक समान कर लगाया जाए, भारत की पूरी बाजार प्रणाली को एकीकृत किया जाएगा, जो वित्तीय प्रणाली को समन्वित कर सकती है जैसे कि भारत के प्रत्येक राज्य में कुछ ऐसा होगा जिससे कमोडिटी की कीमत बनी रहे, राज्यों ने अपने वित्तीय अधिकार केंद्र के पक्ष में साहस दिखाया और इस धारणा को व्यक्त किया कि 1 राज्य का उत्पादक राज्य और दूसरा अविकसित या उपभोग वाला राज्य होने का भेदभाव समाप्त होने जा रहा है और औद्योगिक उत्पादन समाप्त होने वाला है। लेकिन सिर्फ एक विशेष राज्य को लाभकारी नहीं माना जाएगा।

इसका इरादा अक्सर यह माना जाता है कि यह पूरे देश के भीतर वाणिज्यिक समानता और समानता का वातावरण बनाने में मदद करेगा। लेकिन जाहिर है, यह कार्य बहुत आसान नहीं था, विशेष रूप से उत्पादक राज्यों को अधिक राजस्व का आग्रह करने के लिए प्रलोभन देना आसान नहीं था। इसलिए इस कार्य को सरल और सरल बनाने के लिए, मध्य आगे बढ़ गया और अपने कंधों पर यह जिम्मेदारी ले ली कि इस तकनीक की शुरूआत के बाद के पांच वर्षों तक राज्यों को हुए नुकसान की भरपाई करेगा।

इस युग के दौरान पांच साल की अवधि तय की गई थी कि जीएसटी प्रणाली राज्यों के बीच वित्तीय उथल-पुथल को संभाल लेगी और तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के इस अंतर को पाटने में मदद करेगी। 2017 में, यह उम्मीद की गई थी कि 2022 तक, भारत की अर्थव्यवस्था 10 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ेगी, जो कि जीएसटी राजस्व संग्रह में वृद्धि के कारण घाटे वाले राज्यों को स्वचालित रूप से ऑफसेट कर सकती है।

लेकिन यह अनुमान गलत साबित हुआ और 2017 के बाद भारत की आर्थिक प्रक्रिया दर में गिरावट जारी रही। जहां 2016-17 में यह 8.3 प्रतिशत थी, वहीं 2019-20 में यह 4.2 प्रतिशत थी। इसके बाद, कोरोना महामारी ने तबाही मचाई। अब फेडरल रिजर्व बैंक स्वयं अपने नकारात्मक ऋण की पतझड़ को वर्तमान वित्तीय वर्ष में 10 प्रतिशत तक स्वीकार कर रहा है, जिसकी बदौलत जीएसटी संकट पैदा हुआ है। वित्तीय क्षेत्र के भीतर महाराष्ट्र की हिस्सेदारी अक्सर इस तथ्य से आंकी जाती है कि केंद्र सरकार को जीएसटी खाते से 38 हजार करोड़ रुपये देने हैं। मध्य के राजस्व संग्रह में कमी के लिए धन्यवाद, सभी राज्यों की वर्तमान देनदारियां 67 हजार करोड़ रुपये हैं।

जबकि वर्तमान वित्तीय वर्ष की कोरोना अवधि का लेखा-जोखा अभी बाकी है। जीएसटी के बारे में एक तथ्य यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि देश के 2 प्रमुख राष्ट्रीय दल, भाजपा और इसलिए कांग्रेस, सैद्धांतिक रूप से विभिन्न तकनीकी मुद्दों पर इसका विरोध करने के हकदार हैं, जबकि बीच में एक दूसरे पर शासन करते हैं।

जीएसटी का पहला विचार स्वयं। इसे अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के दौरान रखा गया था, जिसे बाद में मनमोहन सरकार ने अपनाया और इस पर प्रदर्शन शुरू किया। इस अवधारणा को लागू करने की प्राथमिक शर्त यह थी कि संविधान में संशोधन करके राज्यों के वित्तीय अधिकारों को सीमित किया जाना चाहिए। यह काम मोदी सरकार के दौरान किया गया था। लेकिन ऐसा करने से पहले, एक रोडमैप तैयार किया गया था कि शुल्क संरचना के भीतर परिवर्तन को संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर कैसे निकाला जाएगा।

इसके लिए, जीएसटी परिषद या परिषद का गठन किया गया था और इसलिए शक्तियों को इस शुल्क संरचना को व्यवस्थित करने के लिए मिला। यह कार्य प्रणब मुखर्जी से लेकर श्री पी. चिदंबरम और बाद में अरुण जेटली ने वित्त मंत्री के रूप में किया। परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री ने की थी और राज्यों के वित्त मंत्रियों को इसका सदस्य बनाया गया था। क्योंकि यह भारत की संघीय संरचना की प्रेरणा को हिला सकता है जिसके तहत राज्यों को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने का अधिकार दिया जाता है। तब कांग्रेस पार्टी ने इसका जोरदार विरोध करते हुए कहा था कि जीएसटी परिषद मूल रूप से राज्यों की परिषद होगी और इस परिषद के दौरान उनकी सहमति के बिना कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है। इससे राज्यों के अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा होने वाली है।

जब भाजपा सत्ता में आई, तो संसद में बैठी कांग्रेस ने पंचायती राज कानूनों की दुहाई देकर इसका विरोध करने की कोशिश की। लेकिन अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री ठाकरे को इस प्रणाली से पुरानी प्रणाली में लौटने के लिए हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि अधिकांश राज्यों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। इसे जीएसटी परिषद की आपात बैठक बुलाकर और जीएसटी प्रणाली को निर्बाध रूप से कार्य करने की अनुमति देकर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

यद्यपि केंद्रीय वित्त मंत्री ने राज्यों को बकाया देने की विधि शुरू की है और छह हजार करोड़ की प्राथमिक किस्त जारी की है, जीएसटी प्रणाली का संबंध इसके अतिरिक्त भारत की सरकार के रंगीन स्वरूप की अखंड प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि राज्य अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं और सभी ने मिलकर जीएसटी प्रणाली को मंजूरी दी है।

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