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मुख्य प्रकार के सिक्के

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DhanterasShopping: ज्‍वैलरी का आकर्षण हुआ कम, धनतेरस पर लोगों ने खूब खरीदे सोने चांदी के सिक्‍के- India TV Hindi

यूके ने किंग चार्ल्स III की विशेषता वाले नए सिक्कों का अनावरण किया!

शुक्रवार की सुबह अपने ट्विटर हैंडल पर, ब्रिटिश सिक्कों के आधिकारिक निर्माता, द रॉयल मिंट ने कहा: “हमें किंग चार्ल्स III के पहले आधिकारिक सिक्का चित्र का अनावरण करने पर गर्व है, जिसे मार्टिन जेनिंग्स एफआरएसएस द्वारा मुख्य प्रकार के सिक्के डिजाइन किया गया है और व्यक्तिगत रूप से महामहिम द्वारा अनुमोदित किया गया है।

“पुतले को प्रदर्शित करने वाले पहले सिक्के महामहिम महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के स्मारक संग्रह का हिस्सा हैं।”

बीबीसी के मुख्य प्रकार के सिक्के अनुसार, सिक्के सदियों की परंपरा का पालन करते हैं, जिसमें सम्राट मुख्य प्रकार के सिक्के अब बाईं ओर है, अपने पूर्ववर्ती के विपरीत।

पिछले ब्रिटिश राजाओं की तरह, और रानी के विपरीत, वह कोई ताज नहीं पहनता।

पुतले के चारों ओर पूरा शिलालेख “चार्ल्स III – डी – जी – रेक्स – एफ – डी – 5 पाउंड – 2022” पढ़ता है, जो लैटिन से छोटा है, जिसका अनुवाद “किंग चार्ल्स III, भगवान की कृपा से, विश्वास के रक्षक” है।

सपा और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू, दोनों के बीच सांठगांठ: मायावती

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10 का सिक्का न लेने वालों पर करायें एफआईआर

भरथना, संवाद सहयोगी : 10 मुख्य प्रकार के सिक्के रुपये के सिक्कों को स्वीकार न करने वालों के खिलाफ भारतीय मुद्रा के अपमान के तहत दंडात्मक कार्यवाही अमल में लायी जायेगी। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये गये 10 रुपए के सिक्के पूर्ण रूप से वैध हैं। रिजर्व बैंक द्वारा इनके चलन पर किसी प्रकार की कोई रोक नहीं लगायी गई है। इस समस्या से पीड़ित कोई भी व्यक्ति संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज या 100 नंबर पर सूचना देकर 10 रुपए की मुद्रा को स्वीकार न करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करा सकता है।

इस सम्बन्ध में कस्बा के सरोजनी रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा के प्रबंधक आलोक कुमार ने बताया कि यदि कोई भी व्यक्ति मुख्य प्रकार के सिक्के भारतीय मुद्रा नोट या सिक्कों को चलन से बाहर करते हुए फर्जी बताकर उसे स्वीकार नहीं करता है तो पीड़ित व्यक्ति सिक्का न लेने वाले व्यक्ति पर भारतीय मुद्रा का अपमान करने के क्रम में भारत सरकार के लीगल टेंडर एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराकर या 100 नंबर पर सूचना देकर करा सकता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक स्रोत सर्वाधिक प्रमाणिक हैं। जहां साहित्यिक स्रोतों से स्थिति स्पष्ट नहीं होती वहां पुरातात्विक सामग्री हमारे लिए सबसे अधिक उपयोगी हैं। पुरातात्विक स्रोत में अभिलेख, भूमि अनुदान पत्र, मुद्राएं, स्मारक एवं भवन, मूर्तियां, चित्रकला एवं उत्खनन में प्राप्त अन्य सामग्री आती हैं।

ये अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तंभों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं एवं प्रतिमाओं पर उत्खनित हैं। सबसे प्राचीन अभिलेख जिसे पढ़ा जा सका है अशोक के हैं। अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत है। कर्नाटक राज्य के रायचूर के पास स्थित मस्की तथा गुज्जर्रा (दतिया) मध्य प्रदेश से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है। उसे प्राय: देवानाम पिय पियदस्सी ( देवताओं का प्रिय, प्रियदर्शी) राजा कहा गया है। अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राम्ही लिपि में हैं, जो बाएं से मुख्य प्रकार के सिक्के दाएं लिखी जाती थी। पश्चिमोत्तर प्रांत से प्राप्त उसके अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं जो दाएं से बाएं लिखी जाती थी। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से प्राप्त अशोक के शिलालेखों में यूनानी और अमराइक लिपियों का प्रयोग हुआ है। अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम सफलता (1837 ईसवी में) जेम्स प्रिंसेप को मिली। सबसे अधिक प्राचीन अभिलेख 2500 ईसापूर्व की हड़प्पा काल के हैं जो मोहरों पर भावचित्रात्मक लिपि में अंकित हैं जिनका प्रामाणिक पाठ अभी तक नहीं हो पाया है; चाहे कितने भी दावे क्यों न किए मुख्य प्रकार के सिक्के जाते हों।

भूमि अनुदान पत्र

ये प्रायः तांबे की चादरों पर उत्कीर्ण हैं। इनमें राजाओं और सामंतों द्वारा भिक्षुओं, ब्राह्मणों, मंदिरों, विहारों, जागीरदारों और अधिकारियों को दिए गए गांवों, भूमियों और राजस्व संबंधी दानों का विवरण है। ये ताम्रपत्र प्राकृत, संस्कृत, तमिल एवं तेलुगु भाषाओं मुख्य प्रकार के सिक्के में लिखे गए हैं। भारी मात्रा में पूर्व मध्यकालीन भूमि अनुदान पत्र प्राप्त होने से यह निष्कर्ष निकाला गया कि पूर्व मध्यकालीन भारत (600 से 1200 ईसवी) में सामंती अर्थव्यवस्था स्थापित हो गई थी‌।

206 ईसा पूर्व से लेकर 300 ईस्वी तक के भारतीय इतिहास मुख्य प्रकार के सिक्के का ज्ञान हमें मुख्य रूप से मुद्राओं की सहायता से ही प्राप्त हो पाता है। इसके पूर्व के सिक्कों पर लेख नहीं मिलता और उन पर जो चिन्ह बने हैं उसका ठीक-ठीक ज्ञान नहीं है। ये सिक्के आहत सिक्के या पंच मार्क सिक्के कहलाते हैं। धातु के टुकड़ों पर ठप्पा मारकर बनाई गई बुद्धकालीन आहत मुद्राओं पर पेड़, मछली, सांड, हाथी, अर्धचंद्र आदि वस्तुओं की आकृतियां होती थीं। बाद के सिक्कों पर राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियां भी उल्लेखित हैं। इस प्रकार की मुद्राओं के आधार पर अनेक राजवंशों के इतिहास का पुनर्निर्माण संभव हो सका है, विशेषकर उन हिंद-यूनानी शासकों के इतिहास का जो उत्तरी अफगानिस्तान से मुख्य प्रकार के सिक्के भारत पहुंचे थे और ईसा पूर्व द्वितीय से प्रथम शताब्दी ईसापूर्व तक यहां शासन किये। मुद्राओं का उपयोग दान-दक्षिणा, क्रय-विक्रय तथा वेतन-मजदूरी के भुगतान में होता था। शासकों की अनुमति से व्यापारिक संघ (श्रेणियों) ने भी अपने सिक्के चलाए थे। सर्वाधिक मात्रा में मुद्राएं मौर्योत्तर काल में मिली हैं जो सीसा, पोटीन, तांबा, कांसे, चांदी तथा सोने की हैं। कुषाण शासकों द्वारा जारी स्वर्ण सिक्कों में जहां सर्वाधिक शुद्धता थी, वहीं गुप्त शासकों ने सबसे अधिक मात्रा में स्वर्ण सिक्के जारी किए। मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक दशा तथा संबंधित राजाओं की साम्राज्य सीमा का भी ज्ञान हो जाता है। कनिष्क के सिक्कों से उसका बौद्ध धर्म का अनुयायी होना प्रमाणित होता है। समुद्रगुप्त के कुछ सिक्कों पर यूप (यज्ञ स्तंभ) बना है जबकि कुछ अन्य सिक्कों पर अश्वमेध पराक्रम: शब्द उत्कीर्ण है, साथ ही उसे वीणा बजाते हुए भी दिखाया गया है। इंडो-यूनानी तथा इंडो-सीथियन शासकों के इतिहास के मुख्य स्रोत सिक्के ही हैं। सातवाहन राजा शातकर्णी की एक मुद्रा पर जलपोत अंकित होने से उसके द्वारा समुद्र विजय का अनुमान लगाया गया है। चंद्रगुप्त द्वितीय की व्याघ्र शैली की चांदी की मुद्राओं में उसके द्वारा पश्चिम भारत के शकों पर विजय सूचित होती है।

मूर्तिकला

कुषाण काल, गुप्त काल और गुप्तोत्तर काल में जो मूर्तियां निर्मित की गईं उनसे जनसाधारण की धार्मिक आस्थाओं और मूर्तिकला का ज्ञान मिलता है। कुषाणकालीन मूर्तियों में जहां विदेशी प्रभाव अधिक है, वही गुप्तकालीन मूर्तिकला में स्वाभाविकता परिलक्षित होती है जबकि गुप्तोत्तर कला में सांकेतिकता अधिक है। भरहुत, बोधगया, सांची और अमरावती की मूर्ति कला में जन सामान्य मुख्य प्रकार के सिक्के के जीवन की यथार्थ झांकी मिलती है।

अजंता गुफा में उत्कीर्ण माता और शिशु तथा मरणासन्न राजकुमारी जैसी चित्रों की अर्थवत्ता सर्वकालिक है जिनसे गुप्तकालीन कलात्मकता और तत्कालीन जीवन की झलक मिलती है।

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