एक सीमा आदेश क्या है

कार्यालय आदेश
का.आ.96 (अ)-यत: केन्द्र सरकार नारकोटिक औषधियों एवं स्वापक पदार्थों के दुरुपयोग और उनके अवैध व्यापार के दुरुपयोग और उनके अवैध व्यापार का प्रभावकारी रुप से निवारण करने और निपटने के प्रयोजन से एक प्राधिकरण एक सीमा आदेश क्या है का गठन करना आवश्यक और समीचीन समझती है;
अत: स्वापक औषधियाँ एवं मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 ( 1985 का 61) की धारा 4 उप-धारा (3) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केन्द्र सरकार एतद्दारा ‘स्वापक नियंत्रण ब्यूरो’ नामक प्राधिकरण का गठन करती है, जो कि केन्द्र सरकार के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के अध्यधीन उक्त धारा की उप-धारा (एक सीमा आदेश क्या है एक सीमा आदेश क्या है 2) में उल्लिखित निम्नलिखित मामलों के संबंध में उपाय करने का उपबंध करती है, यथा:
- मुख्य अधिनियम के तहत, सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52), औषधियाँ एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23) और मुख्य अधिनियम के प्रवर्तन के संबंध में तत्समय प्रवृत्त कोई अन्य कानून विभिन्न अधिकारियों, राज्य सरकारों और अन्य प्राधिकारियों के कार्यों में समन्वय।
- अवैध व्यापार रोधी उपायों के संबंध में बाध्यताओं का कार्यान्वयन निम्नानुसार है:
- स्वापक औषधियों पर एकल अभिसमय, 1961
- उपर्युक्त अभिसमय का संशोधन करने वाला 1972 का प्रोटोकॉल
- मन:प्रभावी पदार्थों पर अभिसमय, 1971 और
- कोई अन्य अन्तरराष्ट्रीय अभिसमय अथवा प्रोटोकॉल अथवा स्वापक औषधियों अथवा मन: प्रभावी पदार्थों संबंधी किसी अन्तरराष्ट्रीय अभिसमय को संशोधित करने वाला अन्य दस्तावेज/लिखत जिसे इसके पश्चात् भारत का अनुसमर्थन अथवा मंजूरी प्राप्त हो।
- स्वापक नियंत्रण ब्यूरो का मुख्यालय नई दिल्ली में एक सीमा आदेश क्या है होगा और इसके जोनल कार्यालय मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई और वाराणसी में होंगे
- ब्यूरो का शीर्ष पदाधिकारी मुख्यालय में महानिदेशक होगा और जोनल कार्यालयों में केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर नियुक्त किए गए अधिकारी होंगे
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एक सीमा आदेश क्या है
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स्वतंत्रता की एक सीमा है
हमारे देश में नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों में कोई भी असीम नहीं है। जैसे अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को 19(2) में सीमाओं में बांधा गया है। संविधान के मसौदे में इस अधिकार पर अंकुश लगाने का एक आधार ‘राजद्रोह’ को माना गया है। राजद्रोह को भारतीय दंड संहिता के भाग 124-ए के तहत ऐसा आपराधिक कृत्य माना गया है, जिसके लिए उम्रकैद एवं जुर्माने के दंड का प्रावधान है।
- प्रिवी काऊंसिल ने सरकार के प्रति असंतोष या बुरी भावनाओं को उत्तेजक शब्दों में व्यक्त करने को राजद्रोह माना था। मुख्य न्यायाधीश मॉरिस ग्वायर की अध्यक्षता में फेडरल कोर्ट ने कहा एक सीमा आदेश क्या है कि, ‘सरकार की असफलता पर प्रहार करने वाली अभिव्यक्ति को राजद्रोह नहीं माना जा सकता।’
- इसी संदर्भ में 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने फेडरल कोर्ट के आदेश को अपनाते हुए कहा कि ‘सरकार की कटु से कटु आलोचना को भी तब तक राजद्रोह नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसमें हिंसात्मक तत्वों का समावेश न किया गया हो।’
- 1995 में भी ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने वाले के विरूद्ध 124-ए के अंतर्गत राजद्राह का मुकदमा चलाए जाने से उच्चतम न्यायालय ने इंकार कर दिया था। अगर कोई व्यक्ति हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाता है या भारत देश को अत्याचारी कहकर उसके पराभव की बात कहता है, तो संभवतः इसे राजद्रोह माना जा सके।
- सरकारी विरोध को बर्दाश्त न करने वाली कई अभियोजन एजेंसी ने अनुच्छेद 124-ए का दुरुपयोग किया है। इसका एक हास्यास्पद उदाहरण वित्त मंत्री अरुण जेटली पर भी इस प्रकार का अभियोग चलाया जाना है। ऐसे मामलों में अभियोग चलाने का खंडन किया जाना चाहिए।
कुछ मामलों में अनुच्छेद 124-ए के दुरुपयोग होने से इस अनुच्छेद की सार्थकता को नकारकर इसका पूर्ण खंडन नहीं किया जा सकता। उचित प्रकार से व्याख्यायित एवं आरोपित किए जाने पर यह प्रावधान निश्चित रूप से देश की गरिमा, एकता और अखंडता की रक्षा करने का उत्तम अस्त्र है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सोली जे सोराबजी के लेख पर आधारित।
EWS Reservation: क्या 50% से ज्यादा हो सकता है जातिगत आरक्षण, EWS पर सुप्रीम फैसले के बाद क्यों हो रही यह बात?
सवाल उठ रहा है कि क्या इंदिरा साहनी केस में तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत सीमा का बैरियर टूट गया है? क्या अब SC-ST, OBC के आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया जा सकता है? कोर्ट के आदेश का मतलब क्या है? आइए जानते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग यानी EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया है। मतलब अब EWS आरक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से आरक्षण पर एक नई लकीर खींच दी है। इस फैसले बाद कई लोग कह रहे हैं कि अब SC-ST, OBC के आरक्षण का दायरा भी बढ़ सकता है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इंदिरा साहनी केस में तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत सीमा का बैरियर टूट गया है? क्या अब SC-ST, OBC के आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया जा सकता है? कोर्ट के आदेश का मतलब क्या है? आइए जानते हैं.
पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप एक सीमा आदेश क्या है से कमजोर तबके को 10% आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता पर मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि यह संविधान संशोधन किसी भी तरह से असंवैधानिक नहीं है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि आरक्षण के लिए 50 फीसदी की तय सीमा के आधार पर भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है।EWS आरक्षण के साथ केंद्रीय संस्थानों में आरक्षण की कुल सीमा 59.50% तक पहुंच गई है। कोर्ट में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आर्थिक आरक्षण को सही ठहराया, जबकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने इसके विरोध में अपनी राय रखी।
तो क्या अब 50% से भी ज्यादा हो सकेगा जातिगत आरक्षण?
इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय से बात की। उन्होंने कहा, 'जो लोग बोल रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जातिगत आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से भी आगे बढ़ सकता है, उन्हें इस जजमेंट को फिर से समझने की जरूरत है। कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से EWS आरक्षण को सही ठहराया है। इसका मतलब यह नहीं है कि अब जातिगत आरक्षण 50% से अधिक हो सकता है।'अश्वनी आगे कहते हैं, 'कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जातिगत आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत तक ही रहेगा। EWS कैटेगिरी इस 50 प्रतिशत दायरे में नहीं आती, बल्कि इससे हटकर है। यह जातिगत आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर दिया जाता है। यह एक नई व्यवस्था है, इसलिए संविधान के संशोधन में कोई त्रुटि नहीं है।'
- ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट के लिए वे लोग आवेदन कर सकते हैं, जिनकी सालाना पारिवारिक आमदनी 8 लाख रुपये या उससे कम है। इसमें स्रोतों में सिर्फ सैलरी ही नहीं, कृषि, व्यवसाय और अन्य पेशे से मिलने वाली आय भी शामिल हैं।
- वहीं, अगर कोई व्यक्ति गांव में रहता है। ऐसे में उसके पास पांच एकड़ से कम आवासीय भूमि होनी चाहिए, साथ ही 200 वर्ग मीटर से अधिक आवासीय जमीन नहीं होनी चाहिए।
- शहरों में रहने वाले लोगों के पास भी 200 वर्ग मीटर से अधिक आवासीय जमीन नहीं होनी चाहिए।
- EWS के पात्र के पास आरक्षण का दावा करने के लिए 'आय और संपत्ति प्रमाण पत्र' होना जरूरी है। यह प्रमाण पत्र तहसीलदार या उससे ऊपर पद के राजपत्रित अधिकारी ही जारी करते हैं। इसकी वैधता एक साल तक ही रहती है।
- अगर आप EWS सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करने जा रहे हैं। ऐसे में आपके पास पहचान पत्र, राशन कार्ड, स्वयं घोषित प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, आयु प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र, मोबाइल नंबर, पैन कार्ड और दूसरे दस्तावेजों की जरूरत होगी।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग यानी EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया है। मतलब अब EWS आरक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से आरक्षण पर एक नई लकीर खींच दी है। इस फैसले बाद कई लोग कह रहे हैं कि अब SC-ST, OBC के आरक्षण का दायरा भी बढ़ सकता है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इंदिरा साहनी केस में एक सीमा आदेश क्या है तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत सीमा का बैरियर टूट गया है? क्या अब SC-ST, OBC के आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया जा सकता है? कोर्ट के आदेश का मतलब क्या है? आइए जानते हैं.
पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10% आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता पर मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि यह संविधान संशोधन किसी भी तरह से असंवैधानिक नहीं है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि आरक्षण के लिए 50 फीसदी की तय सीमा के आधार पर भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है।EWS आरक्षण के साथ केंद्रीय संस्थानों में आरक्षण की कुल सीमा 59.50% तक पहुंच गई है। कोर्ट में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आर्थिक आरक्षण एक सीमा आदेश क्या है को सही ठहराया, जबकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने इसके विरोध में अपनी राय रखी।
तो क्या अब 50% से भी ज्यादा हो सकेगा जातिगत आरक्षण?
इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय से बात की। उन्होंने कहा, 'जो लोग बोल रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जातिगत आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से भी आगे बढ़ सकता है, उन्हें इस जजमेंट को फिर से समझने की जरूरत है। कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से EWS आरक्षण को सही ठहराया है। इसका मतलब यह नहीं है कि अब जातिगत आरक्षण 50% से अधिक हो सकता है।'अश्वनी आगे कहते हैं, 'कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जातिगत आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत तक ही रहेगा। EWS कैटेगिरी इस 50 प्रतिशत दायरे में नहीं आती, बल्कि इससे हटकर है। यह जातिगत आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर दिया जाता है। यह एक नई व्यवस्था है, इसलिए संविधान के संशोधन में कोई त्रुटि नहीं है।'
दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुरेंद्र सरोज कहते हैं, 'आरक्षण किसी भी रूप में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता था। इंदिरा साहनी का यह जजमेंट आज तक माना जाता था। तमिलनाडु, केरल, बिहार समेत कई राज्यों ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग हुई थी, लेकिन तब भी इंदिरा साहनी के इस जजमेंट का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी जाती थी। अब सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से आरक्षण का दायरा बढ़ने की एक नई उम्मीद जगी है।'
संविधान का 103वां संशोधन क्या है?
जनवरी 2019 में देश में EWS आरक्षण की अधिसूचना जारी हुई। संविधान के 103वें संशोधन के आधार पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने यह अधिसूचना जारी की। इसके जरिए नौकरी और एक सीमा आदेश क्या है शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण दिया गया। इसका लाभ उन लोगों को मिलता है, जो SC, ST या OBC आरक्षण के दायरे में नहीं आते और जिनके परिवार की सकल वार्षिक आय आठ लाख से कम है। हालांकि, एक सीमा आदेश क्या है इसके साथ ही आरक्षण को लेकर कुछ शर्ते भी थीं।Fatehpur
फतेहपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है जो कि पवित्र नदियों गंगा एवं यमुना के बीच बसा हुआ है। फतेहपुर जिले में स्थित कई स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जिनमें भिटौरा , असोथर अश्वस्थामा की नगरी) और असनि के घाट प्रमुख हैं। भिटौरा, भृगुऋषि की तपोस्थली के रूप में मानी जाती है। फतेहपुर जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है और इसका मुख्यालय फतेहपुर शहर है।