दलाल पर राय

बरेली: रेडियोथेरेपी की विधियों और मात्रा पर सर्वमान्य राय बनानी जरूरी
बरेली, अमृत विचार। कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। इसका भी पूर्णतः उपचार संभव है। इसमें जागरूकता की कमी, लापरवाही और विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी बड़ी बाधा बनती है। यह बात एसआरएमएस में एसोसिएशन आफ रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट आफ इंडिया के तत्वावधान में यूपी चैप्टर की दो दिवसीय 33वीं साइंटिफिक कांफ्रेंस के पहले दिन निकलकर सामने …
बरेली, अमृत विचार। कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। इसका भी पूर्णतः उपचार संभव है। इसमें जागरूकता की कमी, लापरवाही और विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी बड़ी बाधा बनती है। यह बात एसआरएमएस में एसोसिएशन आफ रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट आफ इंडिया के तत्वावधान में यूपी चैप्टर की दो दिवसीय 33वीं साइंटिफिक कांफ्रेंस के पहले दिन निकलकर सामने आई। एसआरएमएस में शनिवार को आरंभ हुई कांफ्रेंस का उद्घाटन ट्रस्ट के संस्थापक एवं चेयरमैन देवमूर्ति ने किया।
इसमें कालेज के डायरेक्टर आदित्य मूर्ति, एसोसिएशन आफ रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट आफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. राजेश वशिष्ठ (बटिंडा), राष्ट्रीय सचिव डा. जीवी गिरि (बंगलुरु), प्रेसिडेंट इलेक्ट डा. मनोज गुप्ता (ऋषिकेश), स्टेट प्रेसिडेंट डा. शालीन कुमार (लखनऊ), स्टेट सेक्रेटरी डा. सुरभि गुप्ता (आगरा), प्रिंसिपल डा एसबी गुप्ता, डा. आरके चितलांगिया (बरेली), कांफ्रेंस की आयोजन समिति के अध्यक्ष व आरआर कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के विभागाध्यक्ष डा. पीयूष कुमार और सचिव डा. पवन मेहरोत्रा शामिल हुए।
कांफ्रेंस में ऋषिकेश एम्स के कैंसर विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा. मनोज गुप्ता को डा. बीएन लाल ओरेशन अवार्ड और मध्यप्रदेश के वर्धा स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा. निलाय रंजन दत्ता को डा. एमसी पंत ओरेशन अवार्ड दिया गया। उद्घाटन सत्र को डा. राजेश वशिष्ठ, डा. मनोज गुप्ता, डा. शालीन कुमार, डा. सुरभि गुप्ता ने भी संबोधित किया।
अतिथियों का स्वागत डा. पीयूष कुमार और डा. पवन मेहरोत्रा ने किया। पहले दिन पांच सत्र हुए। पहले सत्र में एसजीपीजीआई लखनऊ की डा. पुनीता लाल ने सरवाइकल कैंसर के साथ हेड और नेक कैंसर के विषय में जानकारी दी। टाटा मेमोरियल वाराणसी के डा. बीके मिश्रा ने कैंसर के इलाज में आरटी और सीटी की जानकारी दी। होमी भाभा कैंसर हास्पिटल वाराणसी के डा. आशुतोष मुखर्जी ने मुंह के कैंसर और उसके उपचार की जानकारी दी।
दूसरे सत्र में एसजीपीजीआई लखनऊ के डा. नीरज रस्तोगी ने गाल ब्लैडर, एसजीपीजीआई लखनऊ की डा. सुषमा अग्रवाल ने पेनक्रियाटिक कैंसर और इसके अत्याधुनिक उपचार की विधियों को बताया। तीसरे सत्र में मैक्स हास्पिटल गाजियाबाद की डा. राशि अग्रवाल और केजीएमयू की डा. मृणालिनी वर्मा ने मुंह के कैंसर में कीमो रेडिएशन और प्राइमरी कीमो रेडिएशन को समझाया।
चौथे सत्र में यूनाइटेड किंगडम से आए डा. युद्धवीर सिंह नागर ने प्रोस्टेट कैंसर के इलाज की अत्याधुनिक तरीकों की जानकारी दी। नई दिल्ली की शिखा हैदर और डा. अनुरीता श्रीवास्तव ने लिंफ नोड और कैंसर में प्राथमिक कीमोरेडियोथेरेपी की जानकारी दी। पांचवें सत्र में अपोलो कैंसर सेंटर की डा. सपना नांगिया ने फेफड़ों के कैंसर के इलाज की अत्याधुनिक विधियों को बताया।
थोड़ी भी शर्म नहीं आई इन्हें सुब्रत राय की तारीफ में लेख लिखते हुए!
भड़ास फॉर मीडिया पर सहारा के चैयरमेन सुब्रत राय के बारे में एक लेख पढ़ा। सिद्धार्थ ताबिश नाम के किसी सज्जन ने सहारा के चैयरमेन सुब्रत राय को निर्दोष बताते हुए सहारा के डूबने के जिम्मेदार सहारा इंडिया के एजेंटों और दलाल पर राय विशेषकर के क्रांतिकारी पत्रकार को बता रखा है।
इन सज्जन के इस लेख का हेडिंग ये है-
निश्चित रूप से सिद्धार्थ ताबिश जैसे ऐसे कितने लोग होंगे जो सुब्रत राय के हितैषी हैं। वैसे मैं इन सज्जन को जानता नहीं हूं पर जिस लहजे में इन्होंने दलाल पर राय लिखा है ये व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के पत्रकार लगते हैं। वैसे मैं इस तरह के लेख पर किसी तरह की टिप्पणी करने से बचता हूं पर भड़ास फॉर मीडिया जैसे धारधार पोर्टल पर यह लेख ऐसे समय लिखा गया है जब पूरे देश में सहारा से भुगतान लेने के लिए हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे पारिस्थिति में भी भाई यशवंत जी ने इन सज्जन की भावनाओं का ख्याल रखा और इनके लेख को तवज्जो दी।
मैं इन सज्जन से पूछना चाहता हूं कि भाई, सुब्रत राय के बारे में कितना जानते हो ? क्या सेबी गलत है ? देशभर में आत्महत्या कर चुके सैकड़ों एजेंट गलत थे ? देशभर में अपना पैसा मांग रहे करोड़ों लोग गलत हैं ? सही तो बस सुब्रत राय हैं, जिंदगी भर जनता के पैसे पर अय्याशी करता रहा। सिद्धार्थ जी जरा बताइये कि सुब्रत राय का फायदा का धंधा क्या था ? कहां से इन महाशय ने अपने बेटों की शादी में हजारों करोड़ रुपये लगाए ? कहां से बाबा राम देव को 100 करोड़ रुपये दिए ? कहां से अमिताभ बच्चन को 100 करोड़ रुपए दिए ? राजा महाराजाओं जैसे जिंदगी किसके दम पर जीता रहा है इनका परिवार ?
बस कुछ भी दिमाग में आया और लिख दिया। हां यह लिख सकते थे कि यूपीए सरकार में कांग्रेस सुब्रत राय के पीछे पड़ गई थी। वह भी तब जब सुब्रत राय सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के मामले में अपनी टांग अड़ा रहे थे। इन सज्जन ने सहारा की बर्बादी का जिम्मेदार एक क्रांतिकारी पत्रकार को बताते हुए के बाद ज्यादा गिरकर लिख दी है कि इस पत्रकार को सुब्रत राय का अहसान मानना चाहिए नहीं तो वह कुछ भी करा सकते थे। मतलब कोई पत्रकार किसी के काले कारनामों को इसलिए उजागर न करे क्योंकि उसे मरवा भी दिया जा सकता है। भाई अमर कोई है क्या ? मरना तो सभी को है। कुछ करके मर जाओ।
दरअसल सुब्रत राय मीडिया के क्षेत्र में आया था ही अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए। सुब्रत राय अपने कर्मचारियों और एजेंटों को इमोशनल ब्लैकमेल किया है। शायद ये सज्जन भी सुब्रत राय के इसी हथियार की चपेट में आये हैं।
सिद्धार्थ जी, मैंने देखा है सुब्रत राय का असली चेहरा, तिहाड़ जेल में। जब सहारा मीडिया में वेतन को लेकर आंदोलन हुआ था तो मैं सहारा मीडिया में ही था। आंदोलन की अगुआई कर रहे हम लोगों को सुब्रत राय ने तिहाड़ जेल में बुलाया था। पहले तो सुब्रत राय ने हम लोगों को धमकी देने के लहजे में कहा कि कोई सहारा में नेता बनने की कोशिश न करे। सहारा में बस एक ही नेता है और वह मैं हूं। हालांकि जब हम लोग उनकी किसी धमकी में न आये तो उन्होंने अंत में कहा था कि मेरा सिर काटकर ले जाओ। मेरे पास पैसे नहीं है।
क्या सुब्रत राय को ऐसा हम लोगों से कहना चाहिए था। मैंने तो उनसे इतना भी कह दिया था कि मीडिया हम लोग चला लेंगे आपसे सेलरी भी नहीं मांगेंगे पर आप अपने महंगे अधिकारियों को अपने पास रखिये। पर सुब्रत राय ने मुस्करा कर मेरी बात टाल दी थी। हमें पता चला था कि भले ही कर्मचारियों को पैसा न मिल रहा हो पर तिहाड़ जेल में सुब्रत राय का सारा खर्चा मीडिया के पैसे से उठाया जा रहा था। इतना नहीं जब सहारा मीडिया में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा था तो नोएडा स्थित सहारा परिसर में इनकम टैक्स के छापे में डेढ़ सौ करोड़ रुपए मिले थे। जहां तक भागने की बात है तो उनके विदेश जाने पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध लगाने की वजह से वह विदेश नहीं भाग पाए हैं। हां यदि उनके सारे रास्ते बंद हो गए तो नेपाल के रास्ते भाग सकते हैं।
सिद्धार्थ के अनुसार सुब्रत राय को कुछ क्रांतिकारियों ने चोर साबित करके जेल भिजवा है। इनके अनुसार सहारा में लूट सुब्रत राय ने नहीं बल्कि एजेंटो ने मचाई है। इनके अनुसार एजेंटो ने गरीब लोगों से पैसे लिए और उन्हें फ़र्ज़ी रसीदें दी और सारा पैसा अपने पास रख लिया और एक भी सहारा में जमा नहीं किया। इनके अनुसार उत्तर भारत के हर शहर में आपको ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने अपने रिश्तेदारों, मोहल्ले वालों और गरीबों का पैसा खा लिया। भतीजा अपने चाचा चाची का पैसा खा गया और बेटा अपने बाप का.. ये बोल के कि आपका दलाल पर राय पैसा मैं सहारा में जमा कर रहा हूँ। शायद इन सज्जन को पता ही नहीं है कि सहारा इंडिया में सुब्रत राय के प्रति इतनी भक्ति थी कि एजेंटों ने तो अपने घर का पैसा ही सहारा में जमा कर दिया। गड़बड़झाला करने वाले लोगों को तो सहारा में रखा जाता था ही नहीं। सुब्रत राज्य 12-14 तक एजेंटों को ब्रैनवॉश करते थे। सब सुब्रत राय के एक इशारे पर जान छिड़कते थे। जब सुब्रत राय ने जेल से छुड़ाने के लिए अपने कर्मचारियों को मदद करने के लिए एक पत्र लिखा तो सहारा से कर्मचारियों की ओर से साढ़े बारह सौ करोड़ रुपए जमा हुए थे। पता है ये पैसे कर्मचारियों ने उस समय दिए थे जब मीडिया में वेतन नहीं मिल रहा था। पैसे देने में एजेंट भी शामिल थे।
इन सज्जन के अनुसार ये पूरा घोटाला मध्यम और निम्न वर्गीय परिवार के लोगों का था। जाली रसीद छपवा के उन्होंने ये किया। इन महाशय के अनुसार एक क्रांतिकारी “पत्रकार” सुब्रत राय के पीछे पड़ गया था और उसे जेल भिजवा दिया। इनको तो यह भी नहीं पता है कि सुब्रत राय जेल में नहीं बल्कि पैरोल पर बाहर घूम रहा है। इनके अनुसार जो यह पत्रकार दो टके का दलाल पत्रकार था पर इन्होंने यह नहीं बताया कि सुब्रत राय को फंसा कर वह यह पत्रकार दलाली खा किससे रहा था ? इन सज्जन ने ढाई से तीन लाख सहारा में नौकरी करने वाले कर्मचारियों और उनके बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता तो जताई है पर इनको संकट में डालने के लिए ये सुब्रत राय या सहारा के प्रबंधन को जिम्मेदार नहीं मानते बल्कि एजेंटो और एक क्रांतिकारी पत्रकार को मानते हैं। इन महाशय के अनुसार क्रांतिकारी पत्रकार दो कौड़ी के और शातिर होते हैं। मतलब गणेश शंकर विद्यार्थी और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी पत्रकार भी दो कौड़ी के और शातिर थे। मतलब एक दलाल पर राय पत्रकार किसी पर भी केस लगवा सकता है। मतलब सुब्रत राय जैसे मक्कारों के यहां उनके काले कारनामों को छिपाने के लिए काम करते रहो।
वैसे इन सज्जन की घटिया सोच को दाद देने होगी कि इन्होंने लिखा है कि सुब्रत राय चाहते तो उस पत्रकार का नामोनिशान नहीं मिलता। इनकी राय में सुब्रत राय जैसे लोगों को बेनकाब करने वाले लोगों को मरवा देना चाहिए। इन्होंने तो और गिरकर सुब्रत राय को एक सच्चा और ईमानदार आदमी भी बता दिया।
यह सज्जन कम से कम यह तो मान रहे हैं कि ये ऐसे लोगों से मिल रहे हैं, जिनका हंसता खेलता परिवार बिखर गया है। वो सब बहुत अच्छी और संपन्न ज़िन्दगी जी रहे थे सहारा इंडिया में। जॉब करके और एकदम से सब ख़त्म हो गया। लोग पूरी तरह से बर्बाद हो गए और अभी तक संभल नहीं पाए हैं। इन्होंने यह नहीं लिखा कि कैसे हो गए ? यह नहीं लिखा कि इसी सुब्रत राय ने वेतन मांगने पर सहारा मीडिया से 49 लोगों की नौकरी ले ली थी। किसी कर्मचारी को कोई पैसा देने को तैयार नहीं। अभी भी सुब्रत राय और उनका परिवार राजा महाराजाओं वाली जिंदगी जी रहे हैं। खुद सुब्रत राय 8 साल से पैरोल पर है।
इन सज्जन की नजरों में क्रांति करना गलत है। इनकी नजरों में आजादी की लड़ाई भी गलत होगी। ये तो कहते हैं कि इतने लोग आजादी की लड़ाई में क्यों शहीद हो गए ? ऐसे ही लोग तो अंग्रेजों के शासन की पैरवी करते हैं। ऐसे लोगों की वजह से तो गलत लोग मनमानी करते हैं और नौकरीपेशा लोग दम तोड़ते रहते हैं। इनकी नजरों में तो सहारा मीडिया में जो आंदोलन हुआ है या फिर जो निवेशकों और एजेंट अपने भुगतान के लिए आंदोलन कर रहे हैं वे गलत हैं। सही तो बस सुब्रत राय हैं।
क्यों दलाल हमेशा तटस्थ रहना चाहिए
लोग एक संपत्ति दलाल क्यों किराया करते हैं? यह एक मजबूत सवाल है और उत्तर बहुत स्पष्ट करता है लोग अपनी संपत्ति खरीदने वाली यात्रा में सहायता करने के लिए दलालों की तलाश करते हैं। उन्हें उन लोगों की आवश्यकता है जो अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को समझ सकते हैं और उन्हें प्रासंगिक विकल्पों की एक श्रृंखला प्राप्त कर सकते हैं। वे यह भी उम्मीद करते हैं कि विक्रेता या डेवलपर से निपटने के दौरान उनकी संपत्ति दलाल पहले अपने हितों को आगे बढ़ाएंगे। संक्षेप में, वे चाहते हैं कि उन्हें पेशेवर पेश करने के लिए। प्रॉपर्टी दलालों जो इन पहलुओं को समझते हैं, वे कुछ नियमों का पालन करते हैं जो अनसाम हैं वे अपने ग्राहकों को अपने व्यक्तिगत राय से प्रभावित करने से विरोध करते हैं यही कारण है कि संपत्ति दलालों को उनके दृष्टिकोण में तटस्थ रहने की जरूरत है: दलाल अपने ग्राहकों की आंखों के माध्यम से इस प्रक्रिया को देखते हैं जब कोई घर खरीदने का फैसला करता है, तो उनके पास पहले से ही विशिष्ट आवश्यकताओं के सेट हैं उदाहरण के लिए, एक घरदार ने एक बहु-मंजिला अपार्टमेंट इमारत में भू-जमीन की संपत्ति खरीदने के लिए अपना मन बना लिया हो। आप इस विचार को पसंद नहीं कर सकते क्योंकि आपको लगता है कि ऐसे गुण ऐसे मुद्दों से भरे हुए हैं जो स्वामी की जीवन शैली को प्रभावित दलाल पर राय करते हैं और परिणाम उच्च रखरखाव लागत में पड़ते हैं आप क्या करेंगे? क्या आप जाकर अपने ग्राहक को बताएंगे कि वे कितने गलत हैं? कुछ हद तक, अपने अनुभव को साझा करना ठीक है, लेकिन अगर आपको लगता है कि ग्राहक इस स्थिति में रहना चाहता है, तो आपको पीछे हटाना चाहिए और स्थिति पूरी करने के लिए अपने सभी प्रयास करना चाहिए। क्लाइंट को एक मजबूत कारण हो सकता है, जो वह आपके साथ साझा नहीं कर सकता या हो सकता है इसके अलावा, यह एक फर्क पड़ता है कि आप अपनी राय कैसे व्यक्त करते हैं ऐसे दलालों हैं जो अपने ग्राहक के विकल्प या ध्वनि व्यंग्यात्मक का उपहास करते हैं। कुछ लोग अपने ग्राहक को अपने परिवार या विक्रेता से पहले गूंगा बना सकते हैं। वही बजट के साथ चला जाता है संपत्ति दलालों अपने ग्राहकों को अपने बजट को बढ़ाने के लिए मजबूर करते हैं। "आपको इस बजट में अच्छी संपत्ति नहीं मिलेगी", "गोन उस दिन थे, जो 2 बीएचके की संपत्ति को नोएडा में 40 लाख रुपये में प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था"। ऐसे बयान क्लाइंट को अपमानित करते हैं यह निश्चित रूप से आपके ग्राहक को आपसे घृणा करता है, और जाहिर है, वे आपके साथ नहीं रहेंगे। कैसे तटस्थ हो? संपत्ति दलाल मानव हैं और इंसान के दृष्टिकोण हैं। हालांकि, एक पेशेवर के रूप में, आपको तटस्थ होना चाहिए आपकी नौकरी एक संपत्ति खरीदने के सभी पेशेवरों और विपक्ष की व्याख्या करना है, और फिर ग्राहक को निर्णय लेने दें क्या आप सोच रहे हैं कि यह राय व्यक्त करने से अलग है? यह है। जब आप पेशेवरों और विपक्षों को एक-एक करके समझाते हैं, तो आप अपने ग्राहक द्वारा बताए गए विशेष विकल्पों को इंगित करने का जोखिम निकाल सकते हैं। जब आप सामान्य तौर पर बात करते हैं, तो ग्राहक आपके शब्दों को लेकर मन नहीं लेगा और बातचीत सकारात्मक हो सकती है एक अंगूठे नियम के रूप में, याद रखें कि आपका काम जानकारी प्रदान करना है और राय नहीं है। इस नियम का पालन करें और आपको एहसास होगा कि आपकी रूपांतरण दर कितनी तेजी से सुधारेगी।
दलाल पर राय
ग्वालियर (म.प्र.) में जन्मे, खरगोन (म.प्र.) में पले बढ़े और बड़ौदा (गुजरात) में स्थाई रूप से बस चुके आशीष दलाल मानवीय संवेदनाओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति देने में माहिर हैं। उनके सरल, सहज व्यक्तित्व की छाप उनके लेखन में उतरती रहती है। उनकी १०० से भी अधिक रचनाएँ विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘उसके हिस्से का प्यार’ उनका प्रथम कहानी संग्रह है। साहित्य सृजन कार्य में लगे आशीष पेशे से बड़ौदा की एक प्रतिष्ठित फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। उनके प्रथम कहानी संग्रह के प्रकाशन पर मातृभाषा.कॉम को दिया साक्षात्कार आपके समक्ष प्रस्तुत है।
स्वभाव से मैं अन्तर्मुखी हूँ। अपने आसपास के परिवेश और देश-दुनिया में घटित होती घटनाएँ मुझे लिखने पर विवश करती हैं। घटनाओं पर सोचकर उसपर विश्लेषण करना मेरी आदत है जो शब्दों के रूप में व्यक्त होती रहती है।
लेखन की शुरुआत मैंने समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में पत्र लेखन से की थी। पत्र लेखन से शुरू हुई अभिव्यक्ति धीरे-धीरे लघुकथा का रूप लेने लगी। लघुकथा और कहानी मेरी प्रिय विधा हैं। इसके अतिरिक्त लेख, संस्मरण, नाटक तथा यदा कदा कविताओं पर भी मेरी कलम आसानी से चलती है।
ज्यादा दूर नहीं जाता हूँ। अपने एक पुराने दोस्त को काफी सालों के बाद मेरी पहली पुस्तक के प्रकाशन के कुछ दिनों पहले मिलना हुआ। पुरानी बातों का स्मरण करते हुए वह मुझे अपने स्कूल और कॉलेज के समय में खींच ले गया। कहने लगा ‘यार, जब हम सब क्रिकेट, गिल्ली डंडा खेलने और लड़कियों को देखने में मस्त रहते थे तब तू हमें अपना विषय बनाकर कहानियाँ लिखकर नाम कमाने में लगा हुआ था। कई बार हम तुझ पर हँसते भी थे पर आज गर्व होता है कि कहीं न कहीं तेरी जिन्दगी में हमारा नाम भी शामिल है।’ उस वक्त दोस्तों की हँसी का बुरा मानकर अगर कलम छोड़ देता तो शायद ‘उसके हिस्से का प्यार’ आज न होता।
‘मेरा प्रथम कहानी संग्रह ‘उसके हिस्से का प्यार’ पढ़ने के बाद कुछ लोगों ने प्रतिक्रिया स्वरूप कहा कि संग्रह की एक या दूसरी कहानी हमें हमारी खुद की या अपने परिचितों की जिन्दगी की कहानी प्रतीत होती है। जब पाठक किसी अनजान व्यक्ति द्वारा लिखी कहानियों से अपने को जुड़ा पाने लगे तो यह लेखक के लेखन की सफलता और सार्थकता होती है। एक लेखक घटनाओं को कल्पना के रंग से रंग कर उसे शब्दों से श्रृंगारित कर दलाल पर राय अपने पाठकों के समक्ष इस तरह से पेश करता है कि उसमें कुछ हद तक वास्तविकता न होते हुए भी हर किसी को वह कहानी अपनी सी लगे।
मैंने लेखन की शुरुआत जब मैं १५ साल का था तब ही से कर दी थी । लेखन के शुरूआती दौर में भोपाल से निकलने वाली ‘चकमक’ बाल पत्रिका में मेरी अभिव्यक्ति सादे शब्दों में प्रकाशित होती रहती थी । फिर कुछ अनुभव होने पर जयपुर से निकलने वाली बाल पत्रिका ‘बालहंस’ में बाल कहानियाँ प्रकाशित होने लगी । प्रकाशन का दायरा बढ़ते हुए दैनिक भास्कर, नईदुनिया, सुमन सौरभ, चौथा संसार, दैनिक ट्रिब्यून आदि राष्ट्रीय स्तर के पत्र पत्रिकाओं तक पहुँच गया । इस मुकाम तक पहुँचने के पहले अम्बाला छावनी हरियाणा के कहानी लेखन महाविद्यालय एवं इसी विद्यालय की मुखपत्रिका ‘शुभतारिका’ का मेरी लेखनी को तराशने में बेहद योगदान रहा है ।
कॉलेज की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद लेखन और प्रकाशन का सिलसिला जीवन में आर्थिक और सामाजिक रूप से एक मुकाम पर पहुँचने तक लगभग थम सा गया था । ‘उसके हिस्से का प्यार’ लगभग १३ साल के विराम के बाद लेखन के क्षेत्र में फिर से सक्रिय होते हुए पाठकों को पुस्तक के रूप में मेरी पहली भेंट है।
दुनिया में हर इंसान के पास कहने को कम से कम एक कहानी अवश्य होती है पर इस कहानी को शब्दों का श्रृंगार कर पेश करने का हुनर सभी के पास नहीं होता । सच कहूँ तो कहानी लिखने के लिए मुझे काफी सोचना या परिश्रम नहीं पड़ता है । जीवन में देखी, सुनी और घटित कोई भी संवेदनशील बात मेरे लेखन का विषय बनकर कहानी के रूप में व्यक्त हो जाती है । किसी अत्यन्त अहम मुद्दे पर कहानी लिखना थोड़ा मुश्किल जरुर होता है क्योंकि एक कहानीकार के रूप में सभी पात्रों के साथ न्याय करते हुए पाठकों को घटना का एक समाधान भी देना होता है । कई बार जब मुझे कहानी का अंत नहीं सूझ रहा होता है तो उस पर विचार करते हुए रात को मैं सो जाता हूँ और सुबह तक एक पूरी कहानी मेरे दिमाग में तैयार हो जाती है । यहाँ शर्त यही होती है कि कई दफा मुझे आधी रात को या सुबह बहुत जल्दी उठकर भी मन में उठते भावों को शब्दों के रूप में उतार लेना पड़ता है । संग्रह में समाहित ‘एक रात की मुलाकात’, ‘अंतिम संस्कार’, ‘अग्नि परीक्षा’ एवं ‘तुम्हारा हिस्सा’ ऐसी ही कहानियों में से है जो मैं आसानी से नहीं लिख पाया। एक कहानीकार अपने पाठकों की भावनाओं के साथ कभी भी खिलवाड़ नहीं कर सकता । बस यही बात उसे अपने कहानी के पात्रों के साथ भी अमल में रखनी होती है और यही बात सबसे कठिन होती है क्योंकि कहानीकार को खुद ही सारे पात्रों की संवेदनाओं को व्यक्त करना होता है ।
प्रेम पाने के लिए प्रेम करना जरुरी है यह बात मैं अक्सर कहता रहता हूँ । जिन्दगी में प्रेम को अलग से परिभाषित करने की जरूरत नहीं होती है । यह तो हर इन्सान में जन्म से ही मौजूद होता है । वह सर्वशक्तिमान अदृश्य शक्ति बच्चे की आंखों में प्यार भरकर ही भेजती है । बच्चा आप ही पहली नजर में ही अपनी माँ से प्यार करने लगता है । फिर तो जिन्दगी के हर एक पड़ाव पर वह प्यार के जरिये ही तो रिश्ते जोड़ता है । प्यार करने या व्यक्त करने के लिए मौके तलाश करने की जरूरत ही नहीं होती । जिन्दगी ये मौके दिन में कई बार देती है । बचपन में माँ, फिर शादी होने तक बहन, (कुछ किस्सों में प्रेमिका की भी मौजूदगी होती है) और शादी हो जाने के बाद पत्नी। कहते हैं, मातृत्व प्राप्त कर एक स्त्री सही मायनों में पूर्णता को प्राप्त होती है। माँ बनकर उसका स्त्रीत्व धन्य हो जाता है । मैं कहता हूँ, एक स्त्री को सच्चे दिल से प्यार करने पर पुरुष पूर्णता हासिल करता है। उसका पुरुषत्व शक्ति जताने से नहीं एक स्त्री का सम्मान करने से उजास को प्राप्त होता है।
अगर आँखों में एक अहसास को पाने की प्यास सदैव हो तो प्यार को ढूँढने की जरुरत नहीं होती। सम्बन्ध प्यार के धरातल पर ही पनपते हैं। इस एक शब्द की व्याख्या सम्बन्धों के हिसाब से बदलती रहती है। प्रेमी-प्रेमिका के रूप में यह रोमान्स बन कर आता है। पति पत्नी के बीच पहले आकर्षण, फिर सामंजस्य के रूप में बहने लगता है । माँ बेटे के सम्बन्ध में यह वात्सल्य कहलाता है। भाई बहन के रिश्तों में यह स्नेह के रूप में मौजूद होता है। पर सच्चाई तो यह है कि प्यार के हर रूप में एक स्त्री की मौजूदगी इसे जीवन्त बना देती है। वह उसे सब कुछ सौंपकर कुछ पाना चाहती है तो पुरुष भी उसे भरपूर प्रेम देकर कुछ पाना चाहता है। इसी कुछ को पाने की कशमकश में दुःख – दर्द, घुटन, स्वार्थ, विरह, इन्तजार और थोड़ी सी बेवफाई जाने अनजाने में उसके हिस्से के प्यार में शामिल हो ही जाते हैं। बस यही प्यार है।
साहित्य की सार्थकता तभी होती है जब वह व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया को एक नई दिशा प्रदान करे। अच्छा साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं होता है अपितु इससे जीने की राह मिलती है। जो भावनाएँ बोलकर व्यक्त नहीं की जा सकती वह शब्दों के रूप में आसानी से कही जा सकती हैं।
लोग आजकल अंग्रेजी साहित्य पढ़ना ज्यादा पसन्द करते हैं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हिंदी साहित्य का भविष्य उज्जवल नहीं है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और ज्यादातर प्रदेशों में यह मातृभाषा भी है। आजकल के कई युवा लेखक हिंदी में भी अपनी अभिव्यक्ति दे रहे हैं। हिंदी में लिखी पुस्तकें भी पढ़ी और पसंद की जा रही हैं। अच्छा साहित्य कभी भी धूमिल नहीं होता। हिंदी साहित्य का वर्तमान बेहतर है तो भविष्य भी आशावान है।
लेखन के अतिरिक्त मुझे पेड़-पौधों से प्यार है लेकिन यह बात और है कि मैं अपनी इस शौक के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाता। पुराने हिन्दी गाने सुनना भी मुझे बेहद पसन्द है। मैं जब कोई रोमान्टिक कहानी लिख रहा होता हूँ तो पुराने हिन्दी रोमान्टिक गाने मेरे कमरे में गूंज रहे होते हैं।
इसके अतिरिक्त स्टेज पर नाटक निर्देशित करना भी मुझे एक प्रकार की संतुष्टि प्रदान करता है। अपने ऑफिस के वार्षिक समारोह में हर वर्ष मैं अपना लिखा एक नाटक अवश्य निर्देशित करता हूँ।
अपने लेखन के प्रति ईमानदार रहें और प्रसिद्धि पाने के लिए अपने लेखन और उसूलों से कभी भी समझौता न करें। आप दिल से लिखेंगे तो प्रसिद्धि और सफलता अपने आप ही पीछे-पीछे आएँगी।
आढ़तियों की हड़ताल के बावजूद भी शुरू होगी एक अक्टूबर से फसल की खरीद: जेपी दलाल(VIDEO)
भिवानी(अशोक): कृषि मंत्री जेपी दलाल ने आढ़तियों की हड़ताल को लेकर तेवर दिखाया। इस दौरान उन्होंने कहा कि फसल खरीद के समय हड़ताल करना गलत है। साथ ही कहा कि आढ़ती हड़ताल खत्म करें या ना करें,लेकिन हर हाल में एक अक्टूबर से फसल की खरीद शुरू हो जाएगी। आज सुबह कृषि मंत्री जेपी दलाल अपने आवास पर जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्याएं सुन रहे थे। इस दौरान उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए हरियाणा में आढ़तियों की हड़ताल व कांग्रेस में मचे कोहराम से लेकर तीसरे मोर्चे पर अपनी बेबाक़ राय रखी।
आढ़तियों की हड़ताल से तंग होकर किसान राजनीति कर रहे है: जेपी दलाल
उन्होंने कहा कि किसानों की मेहनत से ही आढ़तियों का व्यापार चलता है। आज बेमौसमी बारिश से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई है। जो फसल बची है उसकी खरीद करने की बजाय आढ़ती हड़ताल पर बैठे हैं। जेपी दलाल ने कहा प्रकृति की मार झेल रहे किसानों को आढ़ती परेशान ना करें। इसके साथ ही उन्होंने विपक्ष व किसान संगठनों पर भी निशाना साधा और कहा आढ़तियों की हड़ताल से परेशान होकर किसान राजनीति कर रहे है,जबकि विपक्ष दलाल पर राय और किसान संगठन चुप्पी साधे हुए है। उन्होंने दावा किया की आढ़ती माने या ना माने, एक अक्टूबर से हर हाल में फसलों की ख़रीद शुरू हो जाएगी। इसके लिए चाहे गाँवों में या खेल स्टेडियमों में एफपीओ या पंचायतों के माध्यम से ख़रीद क्यों ना करनी पड़े।
कांग्रेस में चंद लोग ही बचे हैं: जेपी
जेपी दलाल ने कहा कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा व राजस्थान में मचे कोहराम पर कहा कि कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर है। अब चंद लोग इस परिवार की भक्ति करने वाले है, वो भी कांग्रेस से निकल जाएंगे और थोड़े दिनों बाद देश में कांग्रेस नाम की कोई चीज नहीं बचेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस डमी को अध्यक्ष बनाना चाहती थी। लेकिन अशोक गहलोत ने अपना असली रंग दिखा ही दिया। जेपी दलाल ने विपक्ष द्वारा तीसरे मोर्चे के गठन की कोशिश पर कहा कि चुनावों के साम्य ये हर बार होता है। उन्होंने नीतीश कुमार द्वारा 2024 में भाजपा को 50 सीटों पर समेटने पर कहा कि देश की जनता ने अपना आशीर्वाद पीएम मोदी व उनके कामों को दिया है। समेटने का काम नीतीश की नहीं, जनता का है, जो भाजपा की बजाय विपक्ष को समेटेगी।
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