एक ट्रेडर गाइड

समवाय का सिद्धान्त

समवाय का सिद्धान्त
Key Points

समवाय शिक्षण विधि – हिंदी शिक्षण विधि

इस विधि में तारतम्यता नहीं समवाय का सिद्धान्त रहती क्योंकि अध्यापक पद्य पढ़ा रहा है और बीच में व्याकरण पढ़ाने चले तो बच्चों का ध्यान व्याकरण पर हो जाता है। तो बालक न तो पद्य पाठ पढ़ पाता है न व्याकरण। इससे विद्यार्थियों का ध्यान भंग हो जाता है और किसी भी विषय का अधिगम समवाय का सिद्धान्त नहीं कर पाते हैं।

1. इसे सहयोग विधि के नाम से जाना जाता है।
2. इस समवाय का सिद्धान्त विधि में मौखिक या लिखित कार्य कराते समय गद्य शिक्षण कराते समय या रचना शिक्षण कराते समय प्रसंगिक रूप से व्याकरण के नियमों की जानकारी की जाती है।
3. व्याकरण की व्यावहारिक शिक्षा देने के लिए यह एक स्वाभाविक और रूचिकर विधि है।

4. परन्तु इसमें व्याकरण की नियमित शिक्षा नहीं दी जाती है।
5. इसमें व्याकरण के नियमों का तार्किक एवं व्यवस्थित ज्ञान नहीं दिया जाता है।
6. मूल पाठ से भटक जाने का क्षय रहता है।

समवाय विधि के सिद्धान्त –

  • हरबर्ट का संप्रत्यात्मकता का सिद्धान्त
  • हरबर्ट का सहसम्बन्ध का सिद्धान्त
  • जिल्लर का केन्द्रीकरण का सिद्धान्त
  • फ्राॅबेल की जीवन केन्द्रित शिक्षा
  • डिवी का सामंजस्यीकरण का सिद्धान्त
  • गांधी जी का समवाय का सिद्धान्त।

समवाय के प्रकार

लम्बीय सहसम्बन्ध:

एक विषय का उसी विषय के साथ सम्बन्ध स्थापित करना।

क्षैतिज सहसम्बन्ध:

एक विषय का अन्य विषय के साथ सम्बन्ध स्थापित करना।
गुण:
1. इस विधि में व्याकरण की कक्षा अलग से नहीं लगानी पङती।
2. एक अध्यापक से ही अध्यापन सम्भव हो जाता है व समय की बचत होती है।
दोष:
1. यह विधि किसी भी विषय का सटीक ज्ञान कराने में सक्षम नहीं।
2. विद्यार्थियों का ध्यान केन्द्रित नहीं रहता व विषय की तारतम्यता।
3. भाषा के कौशलों का पूर्ण विकास कराने में सक्षम नहीं और न ही भाषा की पूरी जानकारी करवाती है।

समवाय विधि

Samvay vidhi
समवाय विधि


समवाय विधि के केन्द्र एवं क्षेत्र

समवाय प्रणाली में ज्ञान और कर्म के विभिन्न सम्बन्ध पर जोर दिया जाता है। हरबर्ट ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया, कि जब तक नए पाठ को पूर्व-ज्ञान के साथ न जोड़ा जाए, तब तक नया पाठ पूर्ण-रूप से हृदयंगम नहीं हो सकता। हरबर्ट का सहसम्बन्ध का सिद्धांत-हबार्ट ने दो प्रकार का सहसम्बन्ध दर्शाया - क्षैतिज सहसम्बन्ध एक विषय का अन्य विषयों के साथ कह सकते हैं। सहसम्बन्ध या लम्बीय सहसम्बन्ध एक ही विषय के विभिन्न अंगों का फ्रोबेल की जीवन केन्द्रित शिक्षा- फ्रोबेल ने पहली बार शिक्षा केन्द्र के धुरै को पाठ्य-विषयों से हटा कर बालक की ओर लगाया। बालक खेल-खेल में ही भाषा सीखें। डिवी का सामंजस्यीकरण का सिद्धांत , फ्रोबेल के केन्द्रीकरण के सिद्धांत में दो सुधार किए।

समवाय का व्यापक रूप

- व्यापक रूप में समवाय सिद्धांत में वे सभी मुख्य बातें आ जाती है, जो हार्बर्ट आदि शिक्षा शास्त्रियों ने प्रतिपादित की हैं जैसे : भाषा के विभिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध गद्य पाठ के साथ शेष अंगों का सम्बन्ध भाषा का अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध भाषा का उद्योग, भौतिक वातावरण या सामाजिक वातावरण के साथ समवाय ।

समवाय की आवश्यकताएँ-

समय सारिणी का न्यूनबन्धन हेतु कक्षा-अध्यापक की व्यवस्था हेतु उपकरण के उचित प्रयोग हेतु प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा शिक्षण हेतु परीक्षा या जाँच कार्य हेतु

समवाय के केन्द्र

औद्योगिक कार्य-कताई, बुनाई, कृषि, लकड़ी का काम, रसोई का काम, सिलाई, रंगाई, धुलाई आदि। भौतिक वातावरण सामाजिक वातावरण गद्य - पाठ जिसको केन्द्र मान कर, उच्चरण, वाचन, शब्दावली, साहित्य परिचय, व्याकरण, मौखिक तथा लिखित रचना की शिक्षा दी जा सकती है। समवाय समवाय का सिद्धान्त मुक्त पाठ- भाषा शिक्षण में निम्न पाठ समवाय के बिना पढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं ,प्रयोग द्वारा व्याकरण (मिडिल कक्षाओं में) ,साहित्यिक व्याख्या और समीक्षा गद्य-पाठ पर रचना ,नये वातावरण पर रचना।

समवाय प्रणाली में शिक्षण होता है -

समवाय शिक्षण विधि- साथ-साथ अर्थात् दो तत्वों का एक साथ चलना। इस विधि में सभी विधाओं का अध्ययन एक साथ कराया जाता है। इसलिए इसे समवाय का सिद्धान्त सहयोग विधि भी कहते है। समवाय शिक्षण विधि में विभिन्न विषयों में निहित ज्ञान की एकता को स्पष्ट करने के लिए सहसम्बन्ध आवश्यक है।

Key Points

  • यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि के द्वारा व्याकरण की शिक्षा को स्वतंत्र रूप से प्रदान नहीं किया जाता है।
  • इस विधि में व्याकरण शिक्षण को गद्य पद्य के माध्यम से सीखाया जाता है।
  • इस विधि में व्याकरण की शिक्षा व्याकरण की अलग पुस्तकों तथा कालांश में न देकर गद्य पद्य रचना आदि पढ़ाते हुए ही दे दी जाती है।
  • समवाय विधि को सहयोग विधि समवाय का सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है इसका प्रमुख गुण विषय वस्तु के साथ-साथ ही व्याकरण का ज्ञान कराना है।
  • इस विधि के द्वारा उच्च प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्धियों को व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

​अतः निष्कर्ष निकलता है कि समवाय प्रणाली में गद्य, पद्य शिक्षण के साथ व्याकरण शिक्षण कराना है।

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Last updated on Nov 25, 2022

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"समवाय" शब्दकोश में मराठी का अर्थ

भीड़-आर। 1 समुदाय; समूह; समूह। "हालांकि tayam चिया समवाया आनंद धनंजय। ' IX 18.12 9 0 2 (न्याय) नियमित संबंध; बंद संबंध; निरंतर संबंध; संयोजन। 'फाइबर कहां हैं?' 9 .106 3 संतुलन; समवाय —पु. १ समुदाय; जमाव; समूह. 'तरी तयां- चिया समवाया । अनुरूप धनंजया ।' -ज्ञा १८.१२९०. २ (न्याय.) नित्यसंबंध; निकट संबंध; सतत संबंध; संयोग. 'तेथ तंतू समवाय पटीं ।' -ज्ञा ९.समवाय का सिद्धान्त १०६. ३ समष्टिरूप;

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का अनुवाद समवाय

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समवाय के उपयोग का रुझान

«समवाय» पद के उपयोग की प्रवृत्तियां

रुझान

मराठी साहित्य, उद्धरणों और समाचारों में समवाय के बारे में उपयोग के उदाहरण

मराठी किताबें जो «समवाय» से संबंधित हैं

निम्नलिखित ग्रंथसूची चयनों में समवाय का उपयोग पता करें। समवाय aसे संबंधित किताबें और मराठी साहित्य में उसके उपयोग का संदर्भ प्रदान करने वाले उनके संक्षिप्त सार।.

अस्थात वैशेषिकदर्शन में भी-'अयुब सिद्धानामाधायधित्रभूलभ य: संबन्ध: इहेति प्रत्ययों-तु: स समवाय: ।' यह लक्षण किया गया है । यहाँ पर अमले से अभिप्राय अ१मभूह का है । आधायधिपव से .

अत्त: स्वतोध्यावृत्तस्वरूप लक्षण की हानि के भय से विशेष पदार्थ को जाति का आश्रय नहीं माना जा सकता 1 ( ६ ) असम-न्या- असमय का अर्थ है सम्बन्ध का-समवाय समवाय का सिद्धान्त का अभाव । यह अभाव पदार्थ को .

लिए प्रवृत हुए नैयायिक के लिये) अथन्दिर अर्थात जिस वस्तु को सिद्ध करना हो, उसके बदले अन्य को सिद्ध कर देना) नामक दोष हुआ, (शत्-त्र का उत्तर देते हैं) क्योंकि यदि इस प्रकार समवाय .

समवाय संबंधि मानीत असल- पण समवाय का सिद्धान्त तो नी संबधी जे गुशणुणी वदि पदार्थ स्वीकबाहुत भिन्न आहे की अभिन्न आहे हैं प्रथभ पक जर स्वीकार. अणजे तो समवाय आयत्या संबधी पद-हून ।जेराजा आहे, असे जर .

इसउवरणमेन्दोपांयुलवस्तुअंन्यारिक-प३गे-क्रियशील एवं गतिशील है । जब दो विपरीत दिशाओं से आती हुई गेंदे संयुक्त होती है तो वहाँ दोनों वस्तुओं में गति चीख पड़ती है । परन्तु समवाय .

किया गया है : भाप मीमांसक भी समवाय का खंडन करने में वेदा१लयों का साथ देते है । नैयायिकों का परमाणुवाद भी समवाय के सिद्धान्त पर आधारित है । ब्रह्मसूत्र की टीका में शद्धराचार्य .

समवाय नित्य होता है और अयुतसिद्ध वस्तुओं में रहता है । अयुतसिद्ध वे वस्तुएँ होती हैं जिनका पृथक अस्तित्व नहीं रह सकता। अवयबी और अवयव, गुण और द्रव्य, कर्म और द्रव्य, सामान्य और .

सन्निकट कतिविध: काच सा हैं---. प्रत्यक्षज्ञानहेतुरिनियर्थसवर्ष: षडूविध:--संयोगा, संयु- मवाय:, संयु-समवेता-मवाय:, समवाय:, समवेत-मवाय:, विशेषणविशेष्यभावर्शति, घट ( द्रव्य ) प्रत्ययों .

किब, समवाय: समवययाँ भिछो७भिओं वा 7 अजित समवाय: समवायिनि केन सम्बन्ध वर्तते संयोजन समवायेनान्देन वा 1 नाथ द्रव्यधम्मीवात् संयोगस्य । न द्वितीय:, अनवस्थाप्रसथ 1 न तृतीय:, .

जब तव संयोग से बनी सता ही विनष्ट न हो जाय [ यल-यव के सिद्धान्त में असत्-सिद्धि का विचार समाहित है [ समवाय शमम:ध समवेत ढंग को कारण को आर्य रो समय करता है 1 उहेदमिति का आशय है- इसको .

«समवाय» पद को शामिल करने वाली समाचार सामग्रियां

इसका पता लगाएं कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस ने निम्नलिखित समाचार सामग्रियों के बारे में क्या चर्चा की है और इस संदर्भ में समवाय पद का कैसे उपयोग किया है।

सिलीगुड़ी. राज्य भर में फैले सेक्स वर्करों का समवाय संगठन 'उषा' अब 20 वर्ष का हो गया. संगठन में पूरे बगाल से अब-तक 21 हजार 9 सौ 42 सदस्य हैं. संगठन से मिले आंकड़ों के अनुसार, 'उषा' का वार्षिक लेन-देन करीब 21 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. कोलकाता व . «प्रभात खबर, अगस्त 15»

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